1

बिहार नहीं जानाः कोरोना है बढ़िया बहाना…

नई दिल्ली से लेकर पटना और मुंबई से नागपुर तक सवाल उठ रहा है कि बिहार विधानसभा का चुनाव कौन लड़वा रहा है? भाजपा ने जिन देवेंद्र फडणवीस पर बहुत भरोसा करके बिहार चुनाव अभियान की बागडोर थमाई, वे तो बिहार से गायब ही हो गए हैं। दिल्ली के बीजेपी मुख्यालय और पटना की राजनीतिक हवाओं में जो सबसे प्रमुख सवाल तैर रहे हैं, वो ये हैं कि देवेंद्र फडणवीस को बिहार का चुनाव प्रभारी किसने और क्यों बनवाया? क्या यह उनको कमजोर करने की किसी योजना का हिस्सा था, जिसे देवेंद्र फडणवीस समय रहते भांप गए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में पूरी मेहनत कर रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी जमे हुए हैं। बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव बहुत भक्ति भाव से लगे हुए हैं। लेकिन चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। कोरोना के बहाने बिहार से उनको छुट्टी जरूर मिल गई, फिर भी सवाल तो सवाल हैं।

यहां यह भी जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि शुरूआती तौर पर फडणवीस को जैसे ही बिहार चुनाव में सक्रिय करने की बात चली थी, तो उन्होंने इस जिम्मेदारी को आधे मन से इसे स्वीकारा था। संभवतया उनको भनक थी कि कहीं बिहार का चुनाव उनको दिल्ली भेजने का दरवाजा न बन जाए। क्या इसी कारण फड़णवीस ने बिहार से दूरी बना ली है? कोरोना से संक्रमित होने के बहाने उनको बिहार से दूरी बनाने के मौका मिल गया हैं। लेकिन इसके बावजूद कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में बैठकर भी बिहार चुनाव का संभाल सकते थे, जैसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली में बैठकर पूरा देश संभाल रहे हैं। लेकिन उन्होंने तो बिहार से बिल्कुल ही किनारा कर लिया है। राजनीति के जानकार और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के कुछ लोग भी फडणवीस के कोरोना पॉजीटिव होने में राजनीति के रंग तलाश रहे हैं। कहा जा रहा है कि फडणवीस को बिहार के नतीजों का पूर्वाभास हो गया है, इसलिए उन्होंने खुद को प्रचार से दूर कर दिया है। जानकार कह रहे हैं कि फडणवीस समझदार राजनेता हैं, वे बिहार की हार का ठीकरा अपने सिर पर फूटने देना नहीं चाहते। वैसे भी महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार के फिर से न आने के पीछे उनको ही मुख्य कारण माना जा रहा है, ऊपर से बिहार में सरकार न आई, तो इसका कारण भी उन्हें ही माना जाएगा, इसीलिए वे बिहार से दूर हो गए हैं।

उधर, केंद्रीय नेतृत्व को भी इस बात का अहसास है कि फडणवीस किसी भी हाल में महाराष्ट्र छोड़ना नहीं चाहते। क्योंकि उनको इस बात का पता है कि दिल्ली तो राजनीति का महासमुद्र है, वहां पर उनको अपनी जगह बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी, और उसमें सफलता भी आसान नहीं है। फिर महाराष्ट्र में वे अपने सभी विरोधियों को पहले ही ठिकाने लगा चुके हैं, इसलिए भी वहीं पर राजनीति करने में उनको आसानी है। मतलब साफ है कि फडणवीस ने मुख्यमंत्री के रूप में जब कहा था कि 2024 का प्रधानमंत्री महाराष्ट्र से हो सकता है, तब उनके मन में जो भी सपना पल रहा था, वह अब लगभग टूट गया है और वे महाराष्ट्र में ही बने रहना चाहते हैं। क्योंकि यहां अब वे अपने लिए किसी को चैलेंज नहीं मान रहे हैं। लेकिन पार्टी को भी तो केंद्र में दूसरी पीढ़ी के नेताओं की तलाश है। सो, देखते हैं, बकरे की मां कब तक खैर मनाती है। कोरोना के बहाने फडणवीस बिहार से तो बच सकते हैं, लेकिन दिल्ली तो दिल्ली है, वह तो सबका हिसाब रखती है। दिल्ली के दिल में क्या है, कौन जाने! (प्राइम टाइम)

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)