Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeहिन्दी जगतमुक्तिबोध को कुछ यूँ याद किया डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने

मुक्तिबोध को कुछ यूँ याद किया डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने

राजनांदगांव। शहर के ख्याति प्राप्त वक्ता और शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने नैक द्वारा ए ग्रेड प्राप्त राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में गजानन माधव मुक्तिबोध पर अपना अतिथि विशेषज्ञ वक्तव्य दिया। दो दिवसीय ऐतिहासिक संगोष्ठी समकालीन साहित्य, समाज, संस्कृति और वैचारिक चुनौतियाँ विषय पर एकाग्र थी। डॉ. जैन ने समृद्ध मंच से कुलगुरु प्रो सिद्धार्थ विनायक राणे,प्रख्यात चिंतक और साहित्यकार पद्मश्री रमेशचंद्र शाह, जाने-माने चिंतक और विश्लेषक प्रो. पुष्पेश पन्त ,प्रो. नंदकिशोर आचार्य, प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव, वर्धा के प्रति कुलपति प्रो आनदवर्धन, प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी की अहम मौजूदगी में मुक्तिबोध की लेखनी के तेज और प्रभाव पर मर्मस्पर्शी उदगार व्यक्त किया।

मुक्तिबोध के अँधेरे में वैचारिक उजाले की पहचान विषय पर बोलते हुए डॉ. जैन ने कहा कि उनकी कविता आज भी प्रासंगिक है। मुक्तिबोध का योगदान साहित्य जगत और विशेषकर संस्कारधानी राजनांदगांव के लिए एक धरोहर के समान है। मुक्तिबोध स्मारक त्रिवेणी संग्रहालय के रूप में ख़ासकर हिन्दी समाज का प्रत्येक व्यक्ति अब राजनांदगाँव को अलग अंदाज़ में जानता है। वह कालजयी कवि मुक्तिबोध की इस रचना भूमि के नाम और महत्व से परिचित है। इस त्रिवेणी संग्रहालय में छत्तीसगढ़ के तीन मूर्धन्य साहित्यकारों, गजानन माधव मुक्तिबोध, डॉक्टर पदुमलाल पुन्नलाल बख्शी और डॉक्टर बलदेव प्रसाद मिश्र की स्मृतियों को बड़े भव्य रूप में सहेजा गया है। तीनों ही हिन्दी साहित्य के प्रख्यात सर्जक हैं और तीनों का देहावसान 20वीं सदी के उत्तरकाल में हुआ था।

डॉ. जैन ने अपने संबोधन में कहा कि राजनांदगाँव एक बहुत छोटी-सी रियासत थी। इसके पुराने क़िले का निर्माण वर्ष 1877 में पूरा हुआ था। यही क़िला लगभग खण्डहर के रूप में पड़ा था। इसी के अंतिम द्वारवाला हिस्सा मुक्तिबोध को आवास के लिए दिया गया था। यहीं वो दिग्विजय कालेज में हिंदी साहित्य के प्राध्यापक थे। मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी कविता और समीक्षा के प्रतिमान बन गये। उन्होंने साहित्य के साथ सांस्कृतिक चिंतन के एक नये युग का किया। वे मुक्तिबोध ही नहीं बल्कि आधुनिक प्रगतिशील चेतना के स्वयं युगबोध बन गये थे। वे आम आदमी के पक्ष में अडिग खड़े रहने वाले एक प्रखर चिंतक और दुर्दम्य कवि थे।

गरिमामय आयोजन के अन्य विशिष्ट वक्ताओं में प्रो, अनूपकुमार, प्रो. शशिभूषण शीतांशु, प्रो. गजेंद्र पाठक, प्रो. संजय नवले, प्रो. रामप्रकाश, डॉ. गिरीश गांधी आदि शामिल थे । संगोष्ठी के निदेशक और संयोजक प्रो. मनोज पांडे ने विशेष भूमिका निभायी।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार