Thursday, April 18, 2024
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Homeप्रेस विज्ञप्तिमूकमाटी पर डॉ. चन्द्रकुमार जैन के शोध ग्रन्थ का भव्य विमोचन

मूकमाटी पर डॉ. चन्द्रकुमार जैन के शोध ग्रन्थ का भव्य विमोचन

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आचार्य प्रवर विद्यासागर जी महाराज ने दिया आशीर्वाद
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राजनांदगांव। समाजोपयोगी और जीवननिर्माणकारी शोध की दिशा में एक अविस्मरमीय कड़ी जोड़ते हुए संस्कारधानी की लेखनी एक बार फिर सम्मानित हुई है। दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन के शोध ग्रन्थ आचार्य विद्यासागर कृत मूकमाटी का सांस्कृतिक अनुशीलन की तृतीय आवृत्ति का विमोचन सागर, मध्यप्रदेश में स्वयं आचार्य विद्यासागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में संपन्न हुआ। ग्रन्थ के आवरण में लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह के सन्देश अंकित हैं । बड़ी संख्या में उपस्थित जन की हर्ष ध्वनि के मध्य मूकमाटी के मर्म को वाणी देने वाले बहुप्रशंसित शोध कार्य हेतु लेखक डॉ. चन्द्रकुमार जैन को बधाई दी गयी। आचार्य प्रवर विद्यासागर जी महाराज ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डॉ. जैन को आशीर्वाद दिया। गणमान्यजन, साहित्यकारों और शोध शिल्पकारों ने शुभकामना दी।

उल्लेखनीय है कि डॉ. चन्द्रकुमार जैन के साथ भारतीय ज्ञानपीठ के गौरव ग्रन्थ मूकमाटी पर अग्रिम पंक्ति में रहकर उच्च कोटि का शोध कार्य करने का यश सहज रूप से जुड़ा है। इसे डॉ. जैन अपना परम सौभाग्य मानते हैं कि मूकमाटी जैसे मनुष्य और उसके व्यक्तित्व के विकास तथा मुक्ति के इतने महान रूपक पर चिंतन और लेखन का सुअवसर उन्हें मिला। डॉ. जैन ने मूकमाटी के संदेशों पर देश में कई व्याख्यान देने के अलावा भोपाल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की विशेष उपस्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय मूकमाटी राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल संयोजन जी जिम्मेदारी भी संभाली। बहरहाल संस्कारधानी राजनांदगांव और क्षेत्र के उच्च शिक्षा संसार में भी यह पहला अवसर है कि किसी शोध ग्रन्थ की तीन आवृतियाँ प्रकाशित होकर को जन-मन को श्रेष्ठ साहित्य से अनुरंजित कर रही हैं। इससे शहर और प्रदेश का नाम भी रौशन हो रहा है। सभी क्षेत्रों से डॉ. चन्द्रकुमार जैन को निरंतर बधाई सन्देश प्राप्त हो रहे हैं।

स्मरण रहे कि इससे पहले क्रमशः 2010 और हाल ही में 2018 में भी डॉ. जैन के शोध ग्रंथ का प्रकाशन हो चुका है। उन्होंने यह शोध कार्य सेवानिवृत्त प्राचार्य और साहित्यकार डॉ. गणेश खरे के मार्गदर्शन में 1997 पूर्ण कर डॉक्टर ऑफ फिलॉसोफी की उपाधि प्राप्त की थी। उसके बाद लगातार इस उत्कृष्ट शोध कार्य की प्रतिध्वनि देश-विदेश में सुनी जाती रही है। ज्ञात रहे कि मूकमाटी पर ज्ञानपीठ द्वारा तीन खण्डों में करीब 250 चिंतकों, दार्शनिकों और साहित्यकारों की मीमांसा के अतिरिक्त अंग्रेजी सहित लगभग दस भाषाओं में उसका अनुवाद भी किया गया है।

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