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दम तोडती वैश्विक हिन्दी

बंधुओं, आज जब मैं विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष में इसरो के वैज्ञानिकों को हिन्दी की गौरव गाथा सुना रहा था तो एक वैज्ञानिक ने सहसा मुझे पूछ लिया – सर हिन्दी का भविष्य कैसा है। यह सुनकर तो मैं सहम सा गया । आज भले ही हिन्दी विश्वभाषा बन रही है, इसका साहित्य सम्पन्न है, वगैरह वगैरह । परन्तु हिन्दी रूपी वटवृक्ष के तने जिस प्रकार से मजबूती के साथ काटे जा रहे हैं, उससे भविष्य में हिन्दी हालांकि बोलचाल व संपर्क की भाषा बनी रहेगी, परन्तु व्यवहार की भाषा निश्चित रूप से अंग्रेजी ही होगी।

जो हिन्दी दो दशक पूर्व तक विश्व की दूसरी बड़ी भाषा थी, एक गणना के अनुसार अब यह चौथे नम्बर पर आ गई है । मालूम क्यों – क्योंकि मैथिली व संथाली अष्टम अनुसूची में आ चुके हैं और शीघ्र ही भोजपुरी व राजस्थानी भी अष्टम अनुसूची में आने वाले हैं । फिर अभी भारत सरकार के पास 38 बोलियां अष्टम अनुसूची के लिए विचाराधीन हैं, जिनमें से 21 हिन्दी की बोलियां या क्षेत्रीय भाषाएं हैं । अर्थात व्रज, अवधी, हरयाणवी, हिमाचली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मालवी व मेवाती वगैरह । जब ये सारी बोलियां अष्टम अनुसूची में आ जाएंगी तो हिन्दी भाषी कितने लोग रह जाएंगे । शायद एक डेढ प्रतिशत । फिर हिन्दी किस राज्य की या किस देश की भाषा रहेगी । और जो काम लार्ड मैकाले व उसकी अवैध संतानें भारत में नहीं कर पाई वह काम हमारे लोकभाषा प्रेमी आसानी से कर देंगे । आपकी क्षेत्रीय बोलियां तो अष्टम अनुसूची में आ जाएंगी, परंतु हिन्दी की तब क्या दुर्दशा होगी और जब हिन्दी ही नहीं रहेगी तो भोजपुरी, अवधी, मैथिली आदि का अस्तित्व क्या रहेगा, इस पर हमने कभी विचार भी नहीं किया । आज कबीर की वाणी, सूर का सूरसागर व तुलसी का रामचरितमानस, हिन्दी साहित्य के कारण राष्ट्रीय स्तर के साहित्य बने हुए हैं । कल जब ये साहित्य अष्टम अनुसूची के कारण ही हिन्दी से अलग हो जाएंगे तो पेड से टूटे पत्तों की तरह ये भी इधर उधर बिखर जाएंगे।

हिंदी केवल हिन्दी प्रदेशों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह भारत को आजादी दिलाने वाली भाषा भी है । इससे राष्ट्र एकजुट हुआ है । आज हर भारतवासी हिन्दी पर गर्व करता है । परंतु जब हिन्दी के प्रहरी ही अपने क्षेत्रीय स्वार्थवश या मातृबोली के लोभ में हिन्दी का अहित करने लगेंगे तो निश्चित रूप से आने वाले समय में हिन्दी की क्षेत्रीय बोलियां भी धाराशाही होती जाएंगी ।

इसलिए अभी भी समय है कि हम अपनी बोली-भाषाओं का मान रखते हुए हिन्दी का पूरा सम्मान करें तभी हमारा व हमारी बोलियों का भी सम्मान बचा रहेगा । नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि जो अंग्रेजी हमारे ऊपर हावी हो रही है वह हमारे भाषाओं की रानी बन जाए और हमारी बोली भाषाएं नौकरानी की तरह घर के कौने में सिसकती रहे
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डॉ. राजेश्वर उनियाल, मुंबई
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