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आस्था और निष्ठा के मेल से ही जीवन में प्रतिष्ठा मिल सकती हैः डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगाँव । प्रज्ञानिधि आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब की दिव्य प्रेरणा व मागदर्शन में दुर्ग के नवकार भवन में चातुर्मास महोत्सव के दौरान आयोजित राष्ट्रीय युवा उत्कर्ष शिविर में संस्कारधानी के दिग्विजय कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने प्रमुख अतिथि व्याख्यान दिया । उन्होंने युवाओं को व्यक्तित्व निर्माण, समाज कार्य और जैन श्री संघ में रचनात्मक कार्य करने के अविस्मरणीय और प्रभावी टिप्स दिए । आचार्य प्रवर ने डॉ. जैन के उदगारों को श्रीसंघ और समाज के साथ-साथ जीवन क्रम के लिए भी अमल के योग्य कहते हुए उन्हें भरपूर मंगल आशीष दिया ।

स्वयं आचार्य श्री तथा समस्त साधु-साध्वी गण की पावन उपस्थिति में देश के कोने-कोने से आए लगभग 350 शिविरार्थियों और समाज के सुधी जनों को डॉ. जैन के उदबोधन ने झकझोर दिया । एक घंटे तक पूरे मनोयोग से सुन रहे श्रोताओं की तलब तब पूरी हुई जब डॉ. जैन ने व्याख्यान के बाद भगवान महावीर के उपकारों को समर्पित एक मधुर गीत के साथ-साथ चंद प्रेरक मुक्तक भी सुनाया ।

आरंभ में आयोजक दुर्ग जैन श्री संघ और शांत क्रांति जैन श्रावक संघ द्वारा आत्मीय स्वागत करते हुए अतिथि वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन का परिचय दिया गया । समाज और राष्ट्रीय महत्व के कार्यों में उनके योगदान की चर्चा की गयी । बाद में गरिमामय सभा को संबोधित करते हुए डॉ. जैन ने युवा चिंतन और निर्माण शिविर के आयोजन को मील का पत्थर निरूपित करते हुए कहा कि इससे समाज में बेहतर सोच और उच्चतर कार्यों की नयी दिशा तय होगी । डॉ. जैन ने आचार्य प्रवर श्री विजयराज जी म.सा. के दर्शन और प्रवचन के प्रत्यक्ष लाभ को परम सौभाग्य बताते हुए शिविर के सहभागियों को शुभ कामना दी ।

युवाओं से मुख़ातिब डॉ. जैन ने कहा कि तकनीक के ज़माने में भी धर्म की नीत और सत्कर्म की नेक नीयत को आबाद रखना आज की बड़ी चुनौती है । धर्म, बेशक मानव को धारण करता है, किन्तु बात तब बनेगी जब मानव भी धर्म को धारण करे । उन्होंने कहा कि मनुष्य की आस्था आगर अडिग रहे तो उसकी निष्ठा परवान चढ़ सकती है । आस्था और निष्ठा का मेल हो जाये तो जीवन में प्रतिष्ठा अवश्य प्राप्त होगी । उन्होंने कहा कि युवाओं को समाज से जोड़ने के लिए उनकी मानसिकता को समझकर चलना होगा । निंदा या आलोचना से आज की युवा पीढ़ी दूरियां बना लेती है । इसलिए, उनके अच्छे कार्यों और विचारों की पड़ताल कर, उनकी सराहना करते हुए ही उनकी शक्ति का रचनात्मक कार्यों में उपयोग संभव है ।

डॉ. जैन ने कई रोचक उदाहरण और दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए शिविर की सार्थकता पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि किसी भी सूरत में किसी साधर्मिक या किसी भी इंसान को नुकसान ना पहुँचाना और हर कष्ट सहकर भी किसी की पीड़ा दूर करने का भाव व प्रयास जीवंत बनाये रखना जीवन की बड़ी साधना के समान है । ऐसा वातावरण देखकर युवा सहज आकर्षित होंगे । जहाँ जीवन मूल्य हैं, वहीं जीवन धन्य होता है । इस अवसर पर दुर्ग श्रीसंघ और शिविर समिति के सक्रिय पदाधिकारियों सहित आयोजन में शहर के कर्मठ सहयोगी सुशील छाजेड़ खास तौर पर उपस्थित थे ।