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गलत रास्तों से सही मंज़िलों की उम्मीद बेमानी

जीवन उचित और अनुचित के मध्य सही निर्णय से सार्थक बनने वाली एक यात्रा का दूसरा नाम है। जब नीतिगत निर्णय में हम असफल होते हैं या अनीति के साधनों को ही नीति मानने की गलती कर बैठते हैं तब ज़िंदगी अगर पटरी से उतर जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यही कारण है कि शिष्ट समाज के मान्य मानकों के विरुद्ध जब कोई आचरण या व्यवहार किया जाता है तब उसे भ्रष्टाचार कहा जाता है।

भ्रष्ट आचरण वैसे तो हर युग में एक समस्या बनकर मानव समाज के समक्ष चुनौती उत्पन्न करता रहा है किन्तु आज की तेज रफ़्तार ज़िंदगी में जिस तरह नीति-अनीति से बेखबर आदमी का स्वार्थ बढ़ा है, उसे देखते हुए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भ्रष्टाचार आज के दौर का सबसे बड़ा सवाल है। साथ ही, भष्टाचार उन्मूलन हमारे समय की एक जरूरी पुकार है।

भ्रष्टाचार का शब्दिक अर्थ है – ‘बिगड़ा हुआ आचरण’ अर्थात् वह आचरण या कृत्य जो अनैतिक और अनुचित है । आज यह महसूस किया जा रहा है कि भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती जा रही हैं । समय रहते इस पर अंकुश लगाने के हर संभव प्रयास भी किये जा रहे हैं।

भ्रष्टाचार के कई कारण हैं । जटिल समाज में इन कारणों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। परन्तु, यदि हम मूल में पहुंचकर देखें तो भ्रष्टाचार का सबसे प्रमुख कारण है मनुष्य में असंतोष की प्रवृत्ति । मनुष्य का मन है कि कभी भरता ही नहीं है।वह अपने वर्तमान से संतुष्ट नहीं हो पाता है । वह और अधिक की चाह में अंतहीन दौड़ से भी थकता नहीं है। वह सदैव अधिक पाने की लालसा रखता है ।

बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जो अपनी इच्छाओं और क्षमताओं में संतुलन रख पाते हैं । ये लोग अपनी इच्छाओं व आकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर भी संतुलन नहीं खोते हैं । जो अपनी आवश्यकता पूरी होने से संतुष्ट हो जाते हैं उन्हें भ्रष्ट तरीके अपनाने की जरूरत ही नहीं रह जाती है। लेकिन जिन्हें लालच का रोग लग गया हो, उन्हें अच्छे और बुरे में भेद नज़र ही नहीं आता है। यहीं पर व्यक्ति और समाज के जीवन में भ्रष्टाचार चुपचाप घर जाता जाता है। फिर क्या, समाज भीतर के कमजोर और जीवन में दोहरेपन का ज़ोर दिखने लगें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

ज़रा गौर करें – ज्यादातर लोग अपनी आकांक्षाओं और अपने संसाधनों में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं । उनकी लोलुपता इतनी बढ़ जाती है कि वे अनैतिकता के रास्ते पर चलकर भी इच्छा पूर्ति में संकोच नहीं करते हैं । अंतत: इससे भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है । कुछ लोगों में सम्मान अथवा पद की आकांक्षा होती है तो कुछ में धन की लोलुपता । असंतोष के कारण ही वे न्याय-अन्याय में अंतर नहीं कर पाते हैं और भ्रष्टाचार की ओर कदम बढ़ा देते हैं। धन लोलुपता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातीयता, संकीर्णता, भेदभाव, असमानता, जमाखोरी, रिश्वत, जोर-जबरदस्ती ये सब भ्रष्टाचार के ही रूप हैं । भ्रष्टाचार वर्तमान में एक नासूर बनकर समाज को खोखला करता जा रहा है । परिणामत: समाज में भय, आक्रोश व चिंता का वातावरण देखा जा सकता है ।

हम ये कभी भूलें नहीं कि भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति विशेष या समाज की नहीं अपितु संपूर्ण राष्ट्र और विश्व की समस्या है । इसका निदान केवल प्रशासनिक स्तर पर हो सके ऐसा संभव नहीं है । इसका समूल उन्मूलन सभी के सामूहिक प्रयास से ही संभव है । इसके लिए अटूट इच्छा शक्ति का होना बहुत ज़रूरी है।

व्यक्तिगत व्यवहार में हम भ्रष्ट आचरण से दृढ़ता से इंकार कर सकें, फिर चाहे कुछ नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े, कुछ जोखिम ही मोल क्यों न लेना पड़े तो समझिए भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में पहला कदम हमने उठा लिया। सामाजिक स्तर पर यह आवश्यक है कि हम ऐसे तत्वों को बढ़ावा न दें जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं या उसमें लिप्त हैं । हम यह समझें कि समाज से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का उत्तरदायित्व हम पर ही है । हम यह विश्वास करें कि भविष्य में भ्रष्टाचार रहित समाज के स्वप्न को साकार कर दिखाएँगे।

पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था – अगर किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो,मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं – पिता, माता और गुरु। बेहद ज़रूरी हो जाता है कि वे बच्चों को उच्चतम नैतिक शिक्षा का पाठ पढाएं। उनके लिए उदहारण खुद बनें।

स्मरण रहे कि भ्रष्टाचार बस कुछ लोगों तक सीमित नहीं है और ज्यादातर लोग इसमें लिप्त हैं इसलिए हमें लोगों को जगाना होगा। ये सब करना इतना आसान नहीं है, पर धीरे-धीरे ही सही इस दिशा में बढ़ा तो जा ही सकता है। नियमों, कानूनों को सरल बनाकर भी भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है। इस दिशा में तकनीक का सही और सार्थक प्रयोग लाभकारी सिद्ध हो सकता है। हमारे देश में ऐसे प्रयास इन दिनों कारगर साबित हो रहे हैं। एक कर और नगद रहित लेन-देन उसी दिशा में की जा रही पहल के उदाहरण हैं।

राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में भी जितनी शुचिता और पारदर्शिता बरती जाएगी, भ्रष्टाचार पर उतना ही नियंत्रण संभव होगा। इससे जनता का मनोबल भी बढ़ेगा। सरकारी काम काज में पारदर्शिता जितनी अधिक होगी, भ्रष्टाचार उतना ही कम होगा। सूचना का अधिकार कानून इस दिशा में एक बड़ा कदम है। इसे और सशक्त बनाने और इसके बारे में अधिक जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है।

यह कहना गलत नहीं है कि हर ईमानदार व्यक्ति कमोबेश भ्रष्टाचार के दंश से परेशान है। जो व्यक्ति ईमानदार होते हैं वे अपने सभी कार्य मेहनत के बल पर करना चाहते हैं लेकिन जब कोई अनैतिक तरीके से आगे बढ़ता है तो ईमानदार व्यक्ति के मन पर भी ठेस पहुंचना स्वाभाविक है। ऐसे में हर किसी के मुख से बस यही प्रश्न निकलता है की आखिर इस भ्रष्टाचार को कैसे रोकें ?

तो इसका सीधा सा उत्तर है कि शुरुआत खुद से कर सकते हैं। अगर हर व्यक्ति मन में ठान ले कि आज से वह कभी भी अपने कार्यों या स्वार्थों की पूर्ति के लिए गलत रास्तों का प्रयोग नहीं करेगा तो भ्रष्टाचार पर यह एक तरह का शांत प्रहार होगा। यदि लोग समझ जाएँ कि सफलता का कोई ‘शॉर्टकट’ नहीं होता है तो निश्चित ही भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को समझना होगा कि कानून और व्यवस्था का पालन एक आवश्यक नागरिक कर्तव्य है। इसलिए अधिकारों की मांग से पहले कर्तव्यों की खबर लेने की आदत का विकास करना होगा।

यदि वास्तव में हम सभी भ्रष्टाचार उन्मूलन का सपना सच करना चाहते हैं तो आज से ही हम सभी प्रण लें कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो जाएँ हम ईमानदारी की राह नहीं छोड़ेगे और अपने स्तर पर तो कभी भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा नही देंगे। इसकी शुरुआत हम खुद कर सकते हैं। सुविधा, लाभ या सफलता के लिए गलत रास्तों का प्रयोग नहीं करेंगे। सुविधा शुल्क के नाम पर रिश्वत नहीं देंगे। भ्रष्ट तरीके न तो स्वयं अपनाएंगे, ना ही ऐसे प्रयासों की सराहना करेंगे। निश्चित ही यह एक प्रयास के रूप में छोटा हो सकता है लेकिन यदि ऐसे छोटे-छोटे क़दमों की शुरुआत करके भ्रष्टाचार पर काबू पा सकते हैं और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बना सकते हैं। यह संभव है और संभव की सीमा जानने का बस एक ही मार्ग है असंभव से भी आगे निकल जाना। हम चाहें तो यह करके दिखा सकते हैं।

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डॉ. चन्द्रप्रकाश जैन
दुर्गा चौक, दिग्विजय पथ
राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )