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पाँच पैसे रोज में मच्छरों से छुटकारा पाईये!

भारत में जन्मे ब्रिटिश डॉक्टर सर रॉनल्ड रॉस को 1902 में मच्छरों द्वारा फैलाए जाने वाले मलेरिया के परजीवी की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इससे मलेरिया से लड़ने का आधार तैयार हुआ। अब लगभग 113 साल बाद एक अन्य भारतीय इग्नेशियस ऑरविन नरोन्हा भारत को 2019 तक मलेरिया से मुक्त करने का सपना देख रहे हैं।

कॉमर्स ग्रेजुएट इग्नेशियस की यह ख्वाहिश बचपन में उनकी असहायता से उपजी है। वे बताते हैं, 'जब मैं 5 साल का था, तो मैंने अपनी मां से पूछा था कि उनका बायां पैर सूजा हुआ क्यों है। उन्होंने बताया कि यह फाइलेरिया के कारण है, जो कि मच्छरों से होने वाला रोग है। बड़ा होते हुए मेरे मन में हमेशा यही ख्याल रहा कि मैं अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर सका। मैं चाहता था कि मैं मच्छर रूपी इस दुश्मन का खात्मा कर दूं।

उस घटना के 48 साल बाद मैंने एक मशीन डिजाइन की और उसका नाम रखा मॉजीक्विट।'मॉजीक्विट बाजार में प्रचलित मच्छर-रोधी उपायों की तरह नहीं है। इसमें न तो किसी प्रकार का रसायन इस्तेमाल होता है और न ही कोई तरल पदार्थ। इससे न धुआं होता है, न राख। इसे इस्तेमाल करने की लागत 5 पैसे प्रति दिन आती है। यह दरअसल मच्छरों को फांसने की मशीन है।

इसकी कार्यप्रणाली समझाते हुए इग्नेशियस कहते हैं, 'हमारे द्वारा सांस के माध्यम से उगली जाने वाली कार्बन डायऑक्साइड, हमारे खून के तापमान, पसीने आदि से मच्छर हमारी ओर आकर्षित होते हैं। हमारी मशीन में खास तरह का पावडर डला होता है, जिससे मच्छर को वहां मानव के होने का आभास होता है और वह उसकी ओर आकर्षित होता है। यह पावडर मनुष्यों के लिए नुकसानदायक नहीं होता क्योंकि यह फूड-ग्रेड होता है। जब भी मच्छर मॉजीक्विट के पास से गुजरता है, तो इससे आकर्षित होकर इसकी ओर जाने लगता है। कुछ पास जाने पर मशीन निर्वात के जरिये मच्छर को भीतर खींच लेती है। अंदर खिंचते ही वह तत्काल मार दिया जाता है।

बाहर निकाले जा सकने वाले एक कंटेनर में मरे हुए मच्छर इकट्ठा होते हैं।" इस उपकरण का उपयोग केवल घरों में ही नहीं होता, पशुओं को भी इससे लाभ हुआ है। बीदर स्थित कर्नाटक वेटरनरी, एनिमल एंड फिशरीज साइंस यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आया कि जिन गौशालाओं में इस उपकरण का उपयोग किया गया, वहां की गायें ज्यादा दूध देने लगीं तथा उनका वजन भी बढ़ा। पोल्ट्री फार्म में उपयोग करने पर वहां के पशुओं को भी लाभ हुआ।

इग्नेशियस को 12 साल तक प्रयोग करने के बाद यह सफलता मिली है। सन् 2002 में उनके द्वारा बनाया गया उपकरण 2 घंटे में 1 हजार मच्छर पकड़ रहा था लेकिन इसकी लागत बहुत ज्यादा आ रही थी। 2006 में वे लागत घटाने में सफल हो गए और 4 साल बाद पेटेंट के लिए आवेदन किया। इग्नेशियस का दावा है कि यदि उनकी मशीन का उचित तरीके से उपयोग किया गया, तो भारत अगले 3 से 5 साल में विश्व का पहला मलेरिया मुक्त देश बन सकता है।

54 वर्षीय इग्नेशियस ने अपना प्रोफेशनल जीवन बहरीन में कंस्ट्रक्शन उद्योग में शुरू किया था। फिर वे सऊदी अरब में मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस करने लगे। 1994 में वे भारत लौट आए। उन्होंने कम लागत में सड़क बनाने की तकनीक भी विकसित की है। आज भी उनका दिमाग नए-नए आविष्कार करने की दिशा में सोचने में व्यस्त रहता है।

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