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लेखन से राष्ट्रपति भवन तक……

भारत महामहिम राष्ट्रपति महोदय का निवास राष्ट्रपति भवन का बहुत ही सलिके से सजा – सवरा आकर्षक कक्ष। हम सभी कुर्सियों पर बैठे थे और महामहिम राष्ट्रपति श्री आर.वेंकटरमन जी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। अवसर था देश की विभिन्न समाज सेवी संस्था और समाजसेवियों को समाज सेवा के उत्कृट कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का। कुछ ही समय में राष्ट्रपति जी पधारे, सभी ने खड़े हो कर अभिवादन किया। राष्ट्रीय गीत जन गण मण के साथ के समारोह शुरू हुआ। बिना एक पल गवाए पुरस्कृत होने वाली संस्थाओं और समाज सेवियों के नाम पुकारे जाने लगे। प्रतिनिधि उनके समक्ष उपस्थित होते और वे प्रशस्ति पत्र व पुरस्कार की राशि प्रदान कर सम्मानित करते रहे और उपस्थित जन करतल ध्वनि से सम्मान पाने वालों का स्वागत कर हर्ष प्रकट करते रहे।

सम्मान की श्रृंखला में कोटा की श्री करणी नगर विकास समिति का नाम पुकारा गया तो समिति संयोजिका श्रीमती प्रसन्ना भंडारी जी राष्ट्रपति जी के सम्मुख उपस्थित हुई और महामहिम ने उन्हें प्रशस्ति पत्र एवं दो लाख रुपए का चैक भेंट कर सम्मानित किया। हमारी खुशी का परिवार नहीं था और करतल ध्वनि से सम्मान का गौरव बढ़ाया। यह प्रसंग है 18 अप्रैल 1988 का जिसका साक्षी बनने का मुझे सौभाग्य मिला। मेरे लिए राष्ट्रपति भवन देखना और किसी समारोह में शामिल होना एक दिवा स्वप्न जैसा था।

उस समय मै कोटा में जन सम्पर्क अधिकारी पद पर सेवारत था। सवाल उठ सकता है मेरा समिति से क्या नाता था जो इस मौके पर उनके साथ था। सरकार के प्रचार के साथ – साथ जिले में समाज के लिए कुछ अच्छा करने वाले व्यक्तियों, कलाकारों, शिल्पियों ,साहित्यकारों, खिलाड़ियों,उद्यमियों जैसे प्रतिभाशाली सखशिय तों की प्रतिभा और कार्यों को सामने लाकर अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रचार करना भी जन सम्पर्क अधिकारी का काम है। इसी भावना के चलते समिति के निराश्रित, अनाथ और बेसहारा बच्चों के जीवन को शिक्षा और स्वरोजगार के माध्यम से संवारने, बाल गृह का संचालन, कामकाजी महिलाओं के शिशुओं के लिए पालना केंद्र चलना, इधर – उधर फेंके गए लावारिस जन्मजात शिशुओं की सम्भाल के लिए पालना गृह संचालन जैसे किए जा रहे सुकार्यों का समय – समय पर किए गए प्रचार – प्रसार कार्य से मेरे प्रति समिति सदस्यों का स्नेह भाव जाग्रत हुआ और मेरा उनसे सम्पर्क बनने लगा। समिति के बाल कल्याणकारी कार्यों का खूब प्रचार – प्रसार हुआ। आमजन और सरकार तक संस्था की उपलब्धियां पहुंची, अन्य लोग भी प्रेरित हुए।

एक दिन समिति के अध्यक्ष स्व. आंनद लक्ष्मण खांडेकर ने मुझे बुलाया। मैं यह सोच कर कि कुछ खबर देतें होंगे, हाथ का काम निपटा कर उनके पास पहुंच गया। सभी सदस्य हर्षित होते हुए चर्चा कर रहे थे, मुझे आया देख कर बोल उठे आओ तुम्हारी चर्चा चल रही थी। मैंने कहा लगता है कुछ विशेष है। खांडेकर जी ने कहा समिति के कार्यों का तुम्हारे प्रचार के प्रयासों से बाल कल्याण सेवा में राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए संस्था का चयन कर लिया गया है। संयोजिका श्री मती प्रसन्ना भंडारी ने कहा तुमने इतना हाई लाइट कर दिया कि स्थानीय, राज्य और राष्ट्र स्तर के अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की कटिंग्स ने समिति के पक्ष को मजबूत करने में बड़ा सहयोग किया है।

पुरस्कार के लिए बधाई देते हुए मैने सरल भाव से कहा मेरा क्या मैंने तो अपने जनसंपर्क धर्म का ही निर्वाह ही किया हैै। खैर खुशी की बात थी सो मैंने कहा डिटेल बताओ समाचार बनाते हैं। इसी बीच चाय की चुस्कियां भी चलती रही। खांडेकर जी ने कहा कि तुम्हें भी हमारे साथ पुरस्कार लेने चलना है। इस पुरस्कार के तुम भी बराबर के हकदार हो। मैंने कहा कलेक्टर साहब से बात करूंगा छुट्टी मिल जाएगी तो जरूर चलूंगा। बोले उन्हें हम कह देंगे, चलना है। नहीं, मै ही बात कर लूंगा, आपका कहना उचित नहीं रहेगा मैंने कहा।

सूचना केंद्र लौट कर समाचार बनाया। अगले दिन प्रकाशित होने पर संस्था के लोगों को बधाइयों का अंबार लग गया और मुझे भी बधाई मिली। जब कलेक्टर साहब को मैंने बताया तो बोले हां मैंने भी अखबार में देखा है। वे तुम्हें ले जाना चाहते हैं तो जरूर जाना चाहिए, यह तो हम सब के लिए गर्व की बात है कि हमारा जन सम्पर्क अधिकारी भी इस पुरस्कार को प्राप्त करने में भागीदार बनेगा। उन्होंने सहर्ष जाने की अनुमति प्रदान कर लिखने के प्रति मेरा हौसला बढ़ा ते हुए कहा देखा सकारात्मक लिखने का कितना महत्व है, तुम्हें राष्ट्रपति भवन देखने का मौका मिला है।

वह दिन भी आ गया जब संस्था के आंनद लक्ष्मण खांडेकर, महावीर चंद भंडारी, प्रसन्ना भंडारी और मै 17 अप्रैल की रात देहरादून एक्सप्रेस रेलगाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हुए। दिल्ली में हम भंडारी जी के एक परिचित के यहां जा कर ठहर गए। सुबह के करीब 6 बजे थे, आदत के मुताबिक मै दिल्ली की सुबह का लुत्फ लेने के लिए घूमने निकल पड़ा। करीब 10 बजे हम तैयार हो कर राष्ट्रपति भवन के लिए रवाना हुए। राष्ट्रपति भवन का विशाल हरा – भरा परिसर, भव्य भवन स्थापत्य , चारों और शांति, सुरक्षा देख चकित रह गया।

सुरक्षा जांच उपरांत अंदर प्रवेश की अनुमति से हमें समारोह कक्ष की ओर ले जाया गया। जाते समय भी मै भवन की खूबसूरती को निहारता रहा। अब हम उन यादगार पलों के साक्षी बने जहां एक कक्ष में संस्था को राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार से नवाजा गया। इसी कक्ष से नजर आ रहा था भवन का खूबसूरत वह गार्डन जिसे हर साल निश्चित अवधि के लिए जनता के दर्शनार्थ खोला जाता है।

पुरस्कार प्राप्त कर उसी दिन रात को हम ट्रेन से कोटा लौट रहे थे। ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी और राष्ट्रपति भवन की विशालता, खूबसूरती, महामहिम को नजदीक से देखना और पुरस्कार समारोह सब कुछ आंखों में चलचित्र की भांति घूम रहा था और हमेशा के लिए यादगार बन गया। मुझे परम संतोष हुआ कि सही अर्थों में जन सम्पर्क की अवधारणा को सार्थक कर सका।–

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