Thursday, April 25, 2024
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प्रताप को महाराणा बनाने वाली रानी अजब दे

यह एक सत्य तथ्य है कि पुरुष के निर्माण में नारी का अत्यधिक योगदान होता है| जहाँ माता अपनी संतान के निर्माण के माध्यम से पुरुष के भावी जीवन का निर्माण करती है, वहां पत्नियां भी अपने पति के जीवन के निर्माण का कार्य करती हैं| हमारी एतिहासिक पत्नियों ने अपने पति के गौरव को बढाने के लिए अपने जीवन का सब कुछ न्यौछावर कर दिया दिया| आज की अधिकाँश नारियाँ अपने पतियों को कुमार्ग पर ले जाने का कारण बन रही हैं और इसे बढाते हुए अपने जीवन का प्रत्येक क्षण लगा रही है| हमें हमारे देश की एतिहासिक नारियों, माताओं, बहिनों और पत्नियों पर गर्व है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए, इसके नवनिर्माण के लिए स्वयं तो कष्टों को सहन किया ही, इसके साथ ही साथ अपने पतियों को भी कष्ट सहने के लायक बनाए रखा, देश की आन बाण शान के लिए अपने पतियों से भी आगे चल कर अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया| इस कारण ही इन नारियों की गाथाएँ आज इतिहास का अंग बन गई हैं और हम सदा इन के गुणों का गान करते ही रहते हैं|

अपने पतियों को देश की रक्षा का कर्तव्य बताते हुए उन्हें बलिदान के मार्ग पर जिन भारतीय नारियों ने आगे बढाने का कार्य किया, उन नारियों में चित्तोड़ अधिपति महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम हम मुख्य रूप से लेते हैं, जिसने अपने पति को उसके कर्तव्य पथ से कभी विचलित न होने दिया, स्वयं ही कष्टों का मार्ग चुना और महाराणा को मोहमाया को त्याग कर जंगलों में रहते हुए ठीक उस प्रकार शत्रु का विनाश करने की सलाह दी, जिस प्रकार हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने जंगलों में रहते हुए जंगली लोगों की सेना लेकर महानˎ तथा अद्भुत पराक्रमी राक्षस राजा लंकाधिपति रावण से लोहा लिया और उसको सपरिवार मारकर विजय प्राप्त की|

हम जानते हैं कि महाराणा प्रताप ने देश की स्वतंत्रता, स्वराज्य और स्वभिमान के लिए अपना तन, अपना मन ही नहीं, अपना सब कुछ ही न्यौछावर कर दिया| महलों के सुखों को त्याग दिया, राजा होते हुए उसने और उसके बच्चों ने घास की रोटी खा कर अपना जीवन यापन किया और कई बार तो यह घास की रोटी भी उन्हें नहीं मिल पाती थी| इस प्रकार की समस्याओं का उन्हें सामना करना पडा| इस कथा को देश का ही नहीं विश्व का प्रत्येक बालक आज जानता है|

यह उन दिनों की चर्चा है, जिन दिनों अकबर के नाम से देश के सब राजा भयभीत थे और एक एक कर के न केवल उसकी अधीनता ही स्वीकार कर रहे थे अपितु उसके साथ अपनी रोटी-बेटी तक का समबन्ध भी जोडने लगे थे| इस प्रकार की संधियान कर और अपने पारिवारिक सम्बन्ध बना कर बहुत से राजा जब आराम की नींद सो रहे थे, उस समय महाराणा प्रताप एक अकेले ही इस प्रकार के वीर योद्धा थे जो लगातार अकबर से युद्ध कर रहे थे| प्रताप ने म्लेच्छों से किसी परकर की भी संधि करते हुए स्वयं को अपमानित करने के स्थान पर मरना ही उत्तम समझा| क्या इतनी दृढ़ता उनके अन्दर स्वयं ही आ गई थी?, नहीं| वह जीवन में अनेक बार डावांडोल हुए, अकबर के सामने नतमस्तक होने को तैयार हुए किन्तु वह एक वीर, देशभक्त नारी के पति थे, जो यह भली प्रकार से जानती थी कि बलिदान का मार्ग ही सर्वोत्तम होता है| इस बलिदान के पथ का पथिक इतिहास में अपना स्थायी स्थान बना लिया करता है|

इस प्रकार की पत्नी पाने के कारण महाराणा प्रताप को सदा ही गर्व था, जिसने उन्हें कभी मुगलों के सामने झुकने नहीं दिया| वह स्वयं कान्टो से भरा हुआ मार्ग चुनती रही, स्वयं महलों के सुखों को त्याग कर जंगल के कष्ट सहने को तैयार थी, किन्तु वह अपनी पति के मस्तक कप झुकता हुआ नहीं देख सकती थी| वह स्वयं काँटों की सेज पर सोने को तैयार थी किन्तु उसका पति किसी म्लेच्छ के सामने सर झुकाते हुए अपना सब कुछ उसके अर्पण कर दे, यह उसके लिए अत्यधिक पीड़ा देने वाला था| यह ही कारण था कि जब जब प्रताप के सामने समस्याएं आईं और उसने झुकने का विचार बनाया तो पत्नी की उत्तम वाणी से निकले शब्द उनके साहस को एक बार फिर से बढ़ा देते थे| इस प्रकार महाराणा को दृढ देशभक्त बनाए रखने में उनकी धर्म पत्नी अजबदे का अत्यधिक हाथ था|

अजबदे पवार वंश से सम्बन्ध रखती थी और उसका विवाह चित्तौड के राजपरिवार के राजकुमार प्रताप के साथ बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ था| वह एक स्वतंत्रता की प्रेमी और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना सब कुछ अर्पण करने को सदा तैयार रहने वाली आत्मसम्मान रखने वाली महिला थी| संकट के समय उसने सदा ही अपने पति महाराणा प्रताप को आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तैयार किया| उनके आत्मविश्वास को सडा ही बढाती रही| जब जब भी महाराणा प्रताप पर कोई संकट आया तो यह अजबदे ही थी, जिसने उनके धैर्य को बनाए रखा| जब जब महाराणा प्रताप के अंत:करण में कभी प्रश्न उठा कि इन संकटों से बचने के लिए वह अकबर की आधीनता स्वीकार कर ले, तब तब अजबदे ने महाराणा का साहस बढ़ाकर उन्हें तलवार उठाने के लिए तैयार किया| इस प्रकार स्वराज्य की स्थापना के लिए वह सदा ही अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती रही|

हल्दीघाटी का युद्ध विश्व इतिहास में अपनी स्थायी जगह बनाए हुए है| इसकी चर्चा के बिना आज विश्व का इतिहास अधूरा है| इस युद्ध में राजपूत सेना ने जैसा साहस और शौर्य दिखाया और जिस वीरता के साथ यह युद्ध लड़ा उसकी चर्चा आज भी विश्व समुदाय के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है| इस युद्ध की वीरता की गाथाएँ हमारी प्राथमिक कक्षा की पुस्तकों में हमारे बालकाल में पढ़ाई जातीं थी| इन कथाओं से वीरता की धाराएँ हमारे अन्दर भी उमंग लेने लगती थी किन्तु स्वाधीन भारत की पंगु सरकार ने योजना बद्ध ढंग से इन कथाओं को पाठ्यक्रम से निकाल दिया। बार बार मुंह की खाने वाले मुगलों-विदेशियों की वीरता को दर्शा कर हमें पंगु बना दिया और पढ़ाया कि हल्दीघाटी के युद्ध में मुग़ल विजयी हुए, जबकी यह असत्य है क्योंकि यह युद्द विजय की दृष्टि से तो महाराणा प्रताप ने जीता था किन्तु परिणाम की दृष्टि से देखें तो यह युद्ध देश को कोई परिणाम नहीं दे सका क्योंकि एक पराजय के बाद मुग़ल दूसरी तीसरी और..,.. बीसवीं बार भी युद्ध को आ जाया करते थे, उनका संघर्ष तब तक समाप्त ही नहीं होता था, जब तक वह छल बल से ही सही विजय न प्राप्त कर लें| एक और शत्रु धूर्त अकबर की अत्यधिक विशाल सेना थी और दूसरी और छोटे से चितौड राज्य की एक छोटी सी सेना थी, जिसने हल्दीघाटी के अत्यंत सुरक्षित माने जाने वाले मैदान में मुग़ल सेना को इस प्रकार घेर कर मारा कि उस मरते हुए पानी तक नहीं माँगने दिया|

इस प्रकार के युद्धों में फंसे और निरंतर संघर्ष करते करते महाराणा की शक्ति अत्यधिक क्षीण हो गई थी| अवस्था इस प्रकार की आ गई थी कि अत्यधिक बलवानˎ शत्रु से किले के अन्दर रहते हुए भी वह स्वयं को प्रतिरोध के योग्य नहीं पा रहे थे| किले में रहते हुए पराजय निश्चित थी| इस अवस्था को देखकर किला छोड़ जंगलों में जाने का विचार देने वाली उनकी धर्म पत्नी अजबदे ही थी| आरम्भ में उसका सुझाव प्रताप को अट पटा सा लगा किन्तु जब मर्यादाओं से बंधे हुए श्री राम का उदाहरण देते हुए अजबदे ने समझाया कि जिस प्रकार जंगलों में रहते हुए श्रीराम ने जंगली लोगों की सेना तैयार कर अत्यधिक पराक्रमी राजा रावण को मारने में सफलता पाई थी, तेरह वर्ष तक जंगलों में रहते हुए पांडवों ने जंगली लोगों को अपना सहयोगी बना लिया था तो हम जंगलों में सुताक्षित रहते हुए जंगली भीलों की सहायता से एक बार फिर से मुग़ल बादशाह अकबर को पराजित क्यों नहीं कर सकते? अजबदे के सुझाव में दम देखते हुए महाराणा प्रताप ने उसके सुझावों पर फूल चढाते हुए युद्ध नीति को स्वीकार किया और अपने कुछ गिने चुने सैनिकों को साथ लेकर राजमहलों का त्याग कर जंगलों की और प्रस्थान किया|

अब जंगल ही उनका राजमहल था, वृक्षों की छाया ही उनका राज दरबार था और जंगल में रहने वाले भील ही उनके लिए द्वारपाल, रक्षक, और सेनानायक थे, वह ही उनके पालक थे और वह ही उनके लिए अभिभावक तक भी बन चुके थे| इस सब अवस्था में आने के उपरांत भी महाराणा प्रताप ने अपनी स्वाधीनाता का संघर्ष निरंतर बनाए रखा| उनकी धर्मपत्नी अजबदे की दृढ़ता उनके लिए वरदान बन गई थी और उसके सुझाव उनका गौरव बढाने वाले अतिउत्तम होते थे| इन सुझावों से न केवल निश्चिन्त और उत्साहित ही होते थे अपितु उनका मनोबल भी बढ़ जाता था|

अवस्था अब यह थी कि राजमहल के ठाट बाट, सुख सुविधाओं से दूर, जंगल की यातनाओं से भरा जीवन जीने लगे| अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन का स्थान अब जंगल की सूखी घास ने ले लिया| अनेक बार तो घास की यह रोटी भी जंगली जानवर छीनकर ले जाते और उन्हें यह घास की रोटी भी नहीं मिल पाती और भूखे सोना पड़ता| एसी ही एक अवस्था आई जब उनके बेटे से उदबिलाव घास की रोटी छीनकर ले गया तो प्रताप का मन एक बार फिर से डोल गया और उनके मन में एक बार फिर से अकबर की आधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव घूमने लगा| अब तक सब प्रकार के संकटो में अपना जीवन चला रही अजबदे को प्रताप की इस स्थिति का आभास हो गया तो उस समय जब महाराणा प्रताप अपनी संतान की अत्यधिक पीड़ा देख कर कमजोरी आने के कारण अकबर के लिए संधि का पत्र लिख रहे थे, तो अजबदे एक बार फिर से सामने आती है और कहती है कि “ प्राणनाथ तुर्कों की आधीनता में हमें फूल भी शूल के समान कष्टदायी होंगे| आप हमारे कष्टों से विचलित न हों| संधि का विचार अपने मन में लाना तक आपको शोभा नहीं देता| यह आपकी बहुत बड़ी भूल है|”

इस प्रकार के विचार महाराणा प्रताप के सामने रखते हुए इस वीर रानी अजबदे ने अपने पति महाराणा प्रताप को इतिहास की एक नहीं अनेक घटनाएँ सुनाईं और उन्हें बताया कि शत्रु तो आपकी वीरता के गुण गा रहा है और कथा भी सुना रहा है कि हल्दी घाटी के युद्ध में हमारा एक हाथी,जिसका रामप्रसाद था, शत्रु के हाथ लग गया था| यह हाथी अकबर के पास भेजा गया किन्तु इस हाथी ने भी अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की और आपकी याद में रहते हुए उसने म्लेच्छ घर से पानी तक भी नहीं पिया और भूख प्यास से दम तोड़ दिया| अकबर कहता है कि जिस प्रताप के पशु भी इतने स्वामी भक्त हैं, उसे कौन जीत सकता है ओर आप हैं कि थोड़े से कष्ट को ही नहीं देख पा रहे हो और संधि की तैयारी में लगे हो| महारानी के इन कथनों से महाराणा का साहस फिर से लौट आया तथा वह एक बार फिर से मैदान में आ डटे|

इस प्रकर की घटनाएँ अनेक बार आईं किन्तु जब जब महाराणा का साहस पीछे को जाता, त्यों ही महारानी अजबदे उनको सम्भाल लेती| वह प्रताप के जीवन में अंत तक उनका साहस बढाती रही और कभी भी उन्हें झुकने के लिए तैयार न होने देती| महारानी का बल ही था जिस ने प्रताप को महाराणा प्रताप बनाए रखा| यदि महारानी अजबदे न होती तो प्रताप कभी का अकबर की छत्रछाया में चला गया होता| यह महारानी अजबदे की प्रेरणा का ही परिणाम था कि महाराणा प्रताप अपने जीवन के पच्चीस अमूल्य वर्ष तक निरंतर अकबर से लोहा लेते रहे और कभी पीछे मुडकर देख नहीं पाए| उन्होंने मुगलों से लगातार टक्कर लेते हुए मेवाड में एक बार फिर से केसरिया झंडा फहरा दिया|

महारानी ने अपने जीवन के दु:खों को कभी दु:ख नहीं माना और वह स्वाधीनता को ही अधिमान देती रही| उसने देश की आन, देश की बाण और देश कि शान को अपने सुखों से कहीं ऊपर मानते हुए जंगल के कश्तोंको तो स्वीकार किया किन्तु देश के झंडे को कभी नीचे नहीं होने दिया| इस प्रकार उसने महाराणा प्रताप के गौरव को बचाने के लिये उनके कंधे से कंधा मिलाते हुए शत्रु से लोहा लिया| उसने सदा ही अपने पति के दु:ख को अपना दु;ख माना और पति के सुख में ही सुखी हुई| जब इस प्रकार की देवी किसी को अर्धांगिनी के रूप में मिल जाती है तो वह अपने आपको धन्यभागी मानता है| मेवाड़ की स्वाधीनता और उसके भविष्य को अक्षुण बनाए रखने में महाराणा प्रताप की धर्म पत्नी अजबदे का जो योगदान रहा, उसे इतिहास कभी भुला नहीं सकता| यथा नाम तथा गुण, अजबदे वास्तव में नी एक अजब प्रकार की महिला थी| वह सुख में कभी हंसती नहीं थी और दु:ख में कभी घबराहट के चिन्ह उसके चेहरे पर दिखाई ही नहीं दिए| इस प्रकार की इतिहास में स्थाई स्थान पाने वाली इस महिला अजबदे के जितने गुणों का गान किया जावे, वह कम ही होता है| उसका नाम इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया|

डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६ e mail [email protected]

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