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भारतीय सौर उत्सवों की वैश्विक परम्परा

विश्व में सर्वत्र उत्तरायण व दक्षिणायन संक्रान्ति और वसन्त व शरद सम्पात का दिन व समय समान ही रहता है। वेदांग ज्योतिष आधारित इन सौर उत्सवों को मनाने की ईसा पूर्व की परम्पराएं विश्व में आज भी अनेक स्थानों पर पूर्ववत् सजीव हैं। इन संक्रान्ति पर्वोें को विश्व में कई स्थानों पर भारत से भी वृहद स्तर पर मनाया जाता है।

संक्रान्ति व सम्पात दिवसों का महत्व
अयन संक्रान्ति अर्थात् सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायन की संक्रान्ति एवं सूर्य के दक्षिण व उत्तर गोल में प्रवेश की सम्पात संक्रान्ति का वैदिक व पौराणिक साहित्य और लोकजीवन में अत्यधिक महत्व रहा है। दैनिक स्नान व नित्यकर्म से लेकर बड़े-बड़े अनुष्ठानों के संकल्प में सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन के सन्दर्भ और उत्तर अथवा दक्षिण गोल में स्थिति के सन्दर्भ होते ही हैं। भीष्म ने तो दक्षिणायन में देहत्याग के स्थान पर शारशप्या की वेदना सह कर भी उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी। भगवान शंकर द्वारा सप्तर्षियों को योग-ज्ञान की सहमति भी ग्रीष्म अयनान्त अर्थात् 21 जून को सूर्य के दक्षिणायन के अवसर पर ही दी गई थी। इसी भारतीय परम्परा के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र ने भी 21 जून को ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मान्य किया।

भारतीय व पाश्चात्य संक्रान्ति तिथियां
ग्रीष्म अयनान्त अर्थात् दक्षिणायन और शीत अयानान्त अर्थात् उत्तरायण संक्रान्ति की तिथियां क्रमश: 22 दिसम्बर व 21 जून मानी जाती हैं। पृथ्वी के अयन चलन के कारण प्रति 25,771 वर्षों में होने वाले पृथ्वी के अक्ष परिवर्तन के कारण भारत में निरयन कर्क व मकर संक्रान्ति को 21 जून व 22 दिसम्बर के स्थान पर हम खगोल शुद्ध गणनाओं के आधार पर क्रमश: 16 जुलाई व 14 जनवरी को मनाते हैं। भारतीय पंचांगों में सायन मकर संक्रान्ति 22 दिसम्बर को व सायन कर्क संक्रान्ति 21 जून को रहती है। इसलिए सूर्य की सायन कर्क व मकर संक्रान्ति से ही सूर्य के दक्षिणायन व उत्तरायण का प्रारम्भ क्रमश: 21 जून व 22 दिसम्बर से ही मानकर तद्नुसार संकल्प में प्रयोग करते हैं। तथापि, अयन चलन की खगोल शुद्ध गणनानुसार निरयन मकर व निरयन कर्क संक्रान्ति हम क्रमश: 14 जनवरी व 16 जुलाई को ही मनाते हैं।

सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायन अर्थात् अयनान्त दिवस क्रमश: 22 दिसम्बर व 21 जून को मानकर ईसा पूर्व काल की परम्परा के अनुरूप सभी महाद्वीपों में अयनान्त को ही सूर्य उपासना पर्वों के रूप में मनाये जाने की परम्परा आज भी पूर्ववत् है।

यूरोपीय व अमेरिकी देशों में संक्रान्ति के सूर्योपासना स्थल

शनि की छवि वाला रोमन सिक्का
प्राचीन ईसा पूर्व काल के कई सामूहिक सक्रान्ति उत्सव स्थल आज भी विद्यमान हैं। इनमें प्रमुख अग्रलिखित हैं-इंग्लैण्ड का स्टोनहेंज, एरिजोना में सॉयल उत्सव स्थल, रोम में सेटर्नालिया, पेरू में इंका लोगों का इति रेमी उत्सव स्थल, पारसी त्योहार याल्दा, अण्टार्कटिका का मिडविण्टर, स्कैण्डिनेविया का नोर्स साल्टरिस, चीनी व दक्षिण कोरियाई पर्व ‘डांग झी’, न्यू मेक्सिको का ‘चाकों केन्योन’, आयरलैण्ड का न्यू ग्रेंज, जापान का ‘तोजी’, वैंकूवर का लालटेन महोत्सव (लैण्टर्न्स फेस्टीवल), ग्वाटेमाला की माया सभ्यता का अयनान्त उत्सव ‘सेण्टो टोमस’, इंग्लैण्ड के ब्राइटन नगर का अयानान्त, इंग्लैण्ड में ही कॉर्नवाल नगर का मेण्टाल उत्सव (मेण्टाल फेस्टीवल) आदि जैसे सैकड़ों स्थानों पर अयानान्त अर्थात् दक्षिणायन व उत्तरायण संक्रान्ति को मनाने की सुदीर्घ व ईसा पूर्व कालीन सांस्कृतिक परम्परा पूर्ववत् है। इन पर भारतीय प्रभावों का सेटर्नालिया का एक उदाहरण यहां भी देना समीचीन है।

रोमन सेटर्नालिया अर्थात् शनिचरालय
सेटर्नालिया रोम का अति प्राचीन उत्तरायण उत्सव है। ईसा पूर्व काल में रोम में सर्वत्र मित्र सम्प्रदाय अर्थात् सूर्योपासक सम्प्रदायों के होने से सूर्य के उत्तरायण के अवसर पर कई दिनों तक खेलों व समूह भोजों का आयोजन करते रहे हैं। उस दिन दासों से भी काम न लेकर उनकी भी पूजा की जाती रही है। भारत में भी मकर संक्रान्ति के दिन याचकों में भगवान वासुदेव को देखकर उनके परितोष की परम्परा रही है।

पुराणों व भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर राशि पर शनिदेव का आधिपत्य होने से सूर्य के शनि की राशि मकर में प्रवेश को शनि के घर सूर्य का आगमन माना जाता है। इसलिए रोम में यह पर्व शनिचरालय अर्थात् सेटर्नालिया कहलाता है। रोम (इटली) में भव्य शनि मन्दिर में यह पर्व मनाया जाता रहा है। वहां शनि के सिक्के भी चलन में रहे हैं और वृहस्पति, सूर्य आदि वैदिक देवताओं के प्राचीन मन्दिर भी हैं। (देखे, चित्र 1, 2, 3)

वृहत्तर भारत में मकर संक्रान्ति
भारत में मकर संक्रान्ति लगभग सभी प्रदेशों में उल्लास के साथ मनाई जाती है। इनमें प्रमुख हैं छत्तीसगढ़, गोवा, ओडिशा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू।

मकर संक्रान्ति के प्रादेशिक नाम
ताइपोंगल, उझवरतिरुनल: तमिलनाडु
भोगाली बिहु: असम
उत्तरायण: गुजरात, उत्तराखण्ड
खिचड़ी : उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार
उत्तरैन, माघी संगरांद: जम्मू
पौष संक्रान्ति: पश्चिम बंगाल
शिशुर सेक्रंत: कश्मीर घाटी
मकर संक्रमण: कर्नाटक
माघी: हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब

पड़ोसी देशों में मकर संक्रान्ति
बांग्लादेश : शक्रैन/पौष संक्रान्ति
नेपाल: माघे संक्रान्ति, ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी संक्रान्ति’
थाईलैण्ड : सोंगकरन
लाओस: पि मा लगाओ
म्यांमार: थिंयान
कम्बोडिया: मोहा संगक्रान
श्रीलंका : पोंगल, उझवर तिरुनल
मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए कपिल मुनि के आश्रम से गंगा-सागर में मिली थीं।

भारतीय पर्व का सार्वभौम प्रसार
भारत में सूर्यदेव की उपासना के साथ ही सभी धार्मिक कृत्यों में सूर्य के अयन व उत्तर व दक्षिण गोल में स्थित होने के सन्दर्भ भी अनिवार्यत: रहते हैं। ईसा व इस्लाम पूर्व काल के इन वैदिक सूर्योपासना पर्वोें को न्यूनाधिक अन्तर के साथ मनाने का सार्वभौम प्रसार रहा है।

(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

साभार- https://www.panchjanya.com/ से