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लुधियाना में लिखा गया स्वर्णिम अध्याय

लुधियाना । जैन समाज के मुमुक्षु जैनम बंसल ने रविवार को संयम पथ अंगीकार किया। श्री एस. एस. जैन सभा, सिविल लाइन के तत्वावधान में आयोजित दीक्षा समारोह में श्रमण संघीय प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि ने दीक्षा मंत्र प्रदान करते हुए जैनम को रजोहरण प्रदान कर संयम पथ अंगीकार करवाया। हर कोई आज के इस भौतिक युग में भौतिकता को छोड़ संयम स्वीकार करने वाले दीक्षार्थी की दीक्षा देखने के लिए उत्साहित एवं उत्सुक नजर आ रहा था। प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि व सलाहकार दिनेश मुनि सहित दो दर्जन से अधिक साधु साध्वियों के पावन सन्निधि में प्रातः 9 बजे नमस्कार महामंत्रोंच्चार के साथ दीक्षा समारोह का शुभारंभ हुआ।

मूलतः अंबाला-कैंट ( हरियाणा) निवासी 15 वर्षीय बाल ब्रह्मचारी जैनम बंसल को इस तरह सांसारिक जीवन का परित्याग कर अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर होने पर नया नाम पार्श्वेन्द्र मुनि दिया गया, साथ ही नवदीक्षित पार्श्वेन्द्र मुनि को प्रवर्तक डॉ. राजेन्द्र मुनि का शिष्य घोषित किया गया। विदाई के दौरान मुमुक्षु के परिजनों व उपस्थित जनसमूह की आंखें छलछला उठी और वातावरण ममतामयी हो गया।

मुख्य उद्बोधन प्रदान करते हुए प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि ने कहा कि आदमी के जीवन में खूब पैसा आ सकता है, समाज में उँच्चे पद और भौतिक चीजें भी जा सकती है परंतु संयम का आना दुर्लभ है। संयम के सामने पैसे, पद, भौतिक संसाधन सब बौने होते हैं, तुच्छ होते हैं। त्याग के द्वारा व्यक्ति शांति को प्राप्त करता है।

प्रवर्तक श्री ने आगे कहा कि व्यक्ति के मन में दीक्षा का भाव जागना अपने आप में विशेष है। कितने ही अवस्था प्राप्त व्यक्तियों के मन में भी दीक्षा लेने का विचार नहीं आता। यह पूर्व जन्म के संस्कार ही है जिनसे मन में साधत्व स्वीकार करने की भावना उत्पन्न होती है। जिसमें भी स्थानकवासी श्रमण संघ में दीक्षा लेना विशेष बात है।

नमोत्थुणम् के पाठ से भगवान महावीर एवं श्री अमर परंपरा के प्रथमाचार्य आचार्य अमरसिंह एवं सभी पूर्वाचार्य व उपाध्याय गुरु पुष्कर व आचार्य श्री देवेंद्र मुनि को श्रद्धा वंदन करते हुए प्रवर्तक श्री ने दीक्षा संस्कार के शुभारंभ किया। सर्वप्रथम मुमुक्षु को पूर्व जीवन में लगे दोषों की आलोचना कराई गई तत्पश्चात् दीक्षा संस्कार के तहत प्रवर्तक श्री ने नवदीक्षित मुनि के केश कुंचन करते हुए चोटी गुरु के हाथ में रहती है उक्ति को सार्थक किया। नामकरण संस्कार में गुरुदेव ने पार्श्वेन्द्र मुनि का नाम संबोधन दिया।

अहिंसा का ध्वज रजोहरण प्रदान करते हुए नव दीक्षित बालमुनि को प्रेरणा देते हुए कहा कि संयम जीवन में अब हर कार्य गुरु इंगित के अनुसार करना है। गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरि होती है। खाने में, चलने में, बैठने-सोने में हर चीज में संयम हो इसका ध्यान रखना है। कठिनाइयों को सहन करने की प्रेरणा प्रदान की।

पांच दिवसीय महोत्सव के दौरान लुधियाना का माहौल धर्ममय रहा। प्रातःकाल मुमुक्षु जैनम जैन की शोभायात्रा निकाली गई । इस दौरान मुमुक्षु रथ में सवार था। बैंडबाजों की धुन पर निकाली गई इस शोभायात्रा सुमधुर स्वर लहरियों पर श्रावक श्राविकाएं झूमते हुए चल रहे थे । वहीं युवा वर्ग वंदे वीरम के जयघोष के साथ वातावरण में भक्ति रस का संचार कर रहे थे । शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए शोभायात्रा गुरु ज्येष्ठ पुष्कर देवेन्द्र दरबार पहुंची। जहां मुमुक्ष जैनम बंसल ने सांसारिक जीवन के अपने अंतिम विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज का दिन हजारों खुशियां लेकर आया है । मैं संयम पथ स्वीकार कर मोक्ष मार्ग पर बढ़ रहा हूँ, संयम कायरों का नहीं वीरो का आभूषण है । तीन वर्ष पूर्व देखा गया सपना आज मूर्त रूप लेने जा रहा है।

अपने 15 वर्षों के जीवन के दौरान माता पिता , भाई और अन्य सगे – संबंधियों की ओर से मिले स्नेह का स्मरण करते हुए मुमुक्षु ने कहा कि आज व्यक्ति सौ सुखों की कामना करते हुए एक दुख जीवन में आने पर परेशान हो जाता है वह यह नहीं सोचता कि उसके पास 99 सुख हैं , बस यहीं मुझे सांसारिक जीवन को छोड़ने की प्रेरणा बनी और शाश्वत सुख के राज को समझकर संयम की दिशा में चल पड़ा। मुमुक्षु ने संसारिक जीवन में हुई भूलों के लिए अपने माता पिता और श्रावक श्राविका समाज से क्षमा याचना की।

इस अवसर पर संसारिक माता पिता श्रीमती अंजु अशोक बंसल, भाई – अंकित डॉ. अरुण बंसल व धर्म परिवार श्री अरिदमन शशि जैन, भाई तरुण – अरुण जैन, श्रीमती रुचि नेहल जैन सहित उपस्थित जनसमूह ने जयकारे लगाते हुए मुमुक्षु को वेश परिवर्तन के लिए प्रस्थान करवाया।

सलाहकार दिनेश मुनि ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि संयम के प्रति जागरूकता और निर्देश संयम से प्रत्येक क्रिया तुम्हें करनी है। जागरूकता रखनी है । आत्मशोधन की प्रक्रिया ही दीक्षा है । जैन शासन की दीक्षा के बारे उन्होंने कहा कि दीक्षा तो व्रतों का संग्रहण | उपप्रवर्तक सुमंतभद्र मुनि ने ‘दीक्षा’ शब्द पर विवेचन करते हुए बताया कि साधक इस मार्ग पर अपने व दूसरों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है, अपने ज्ञान बल से सान्निध्य में आने वाले को ज्ञान देता है।

डॉ. द्वीपेंद्र मुनि व डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि दीक्षा एक बदलाव है। बिना बदले दीक्षा तक नहीं पहुँचा जा सकता, अनादि से भक्ति के मार्ग पर चलना दीक्षा है। साहित्य दिवाकर सुरेंद्र मुनि ने कहा कि जो भाग्यशाली होता है वहीं जैन धर्म में दीक्षित होता है, दीक्षार्थी ने अपने वर्तमान को पहचान कर वर्धमान बनने के मार्ग पर कदम बढ़ा दिए हैं। इस संसार में संयम के बिना मुक्ति संभव नहीं है। साध्वी पुनितज्योति ने कहा कि दीक्षा लेना रण क्षेत्र में लड़ने के समान है । जिस प्रकार हम युद्ध लड़ने जाने से पहले पूरे अस्त्र – शस्त्रों से लैस होते हैं हैं उसी प्रकार आज का दिन भी दीक्षार्थी को संयम के पथ पर आगे बढ़ने के लिए सभी उपकरण दिए गये ताकि पथ पर आने वाले कपाय रुपी दुश्मनों से वह डटकर मुकाबला कर सके ।

साध्वी डॉ. चन्दना ने बताया कि भिक्षु वह होता है जो गृह त्याग कर, संयोग से मुक्त होकर, निष्क्रमण करने वाला एवं आगम वाणी में जिसका चित्त स्थिर हो। आज ये इक्षु जैसा मीठा बालक भिक्षु बन रहा है।

साध्वी रजनी ने गीतिका के माध्यम से संयम शब्द की सारगर्भित व्याख्या करते हुए कहा कि जिसका मन धर्म में लगा होता है उसे देवलोक के देवता भी नतमस्तक होते है। साध्वी मनीषा ने दीक्षित संत को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यह प्रभु महावीर के शासन का प्रभाव जो वर्तमान में युवा पीढ़ी धर्म पथ पर अग्रसर है। समारोह में उपप्रवर्तक श्री सुमंतभद्र जी को उनके 75वें हीरक जयन्ती व डॉ. द्वीपेंद्र मुनि को ‘डी. लिट’ उपाधि मिलने पर प्रवर्तक श्री राजेंद्र मुनि जी द्वारा ‘चादर’ भेंट की गई । समारोह में सलाहकार दिनेश मुनि द्वारा लिखित भगवान महावीर के गणधर ग्रंथ का लोकार्पण विजय जैन – मुकेश जैन के कर कमलों से संपन्न हुआ।

पुष्कर संप्रदाय के संत समुदाय में 12वीं दीक्षा
उपाध्याय पुष्कर मुनि के वर्तमान संप्रदाय के शिष्य परिवार में दी गई दीक्षा के बाद साधु क्रम में संत का 12वां क्रम बन गया । इसकी जानकारी दरबार में मिलते ही समूचा श्रावक समाज खुशी से झूम उठा।

दीक्षा महोत्सव में समारोह शिरोमणि मानवरत्न रामकुमार जैन (श्रमण शाल), समारोह स्तंभ श्रीमती नीलम विश्वा जैन (कंगारू ग्रूप), समारोह अध्यक्ष सुभाष विपिन जैन ( महावीर सूटिंग) स्वागताध्यक्ष जितेंद्र जैन (श्रमण यार्न) ध्वजारोहणकर्ता अनिल जैन (सिद्ध हौजरी) श्री गुरु ज्येष्ठ पुष्कर देवेंद्र दरबार उद्घघाटनकर्ता मातेश्वरी श्रीमती नीरू विजय जैन (जैन पैकवेल) थे।

दीक्षा शोभायात्रा लाभार्थी श्रीमती कांतादेवी सुपुत्र विनोद जैन (गोयम स्कू प्रेस), अल्पाहार लाभार्थी श्री सुरेंद्र कुमार जैन( राजेश गारमेंट) व गौतम प्रसादी के लाभार्थी धर्मवीर महेंद्रकुमार जैन (मिनीकिंग) परिवार ने लिया। दीक्षा महोत्सव को सफल बनाने में श्री एस. एस जैन सभा- सिविल लाइन, श्री महावीर जैन नवयुवक संघ सहित लुधियाना के समस्त संघों- मंडलों- महिला मंडलों नें सहयोग प्रदान किया।

समारोह का सुंदर संचालन साहित्य दिवाकर श्री सुरेंद्र मुनि ने किया व सभा की और से आभार महामंत्री प्रमोद जैन ने ज्ञापित किया।

उल्लेखनीय है कि 14 जनवरी को दीक्षा के मांगलिक कार्यों की शुरुआत में सर्वप्रथम हल्दी रस्म संपन्न हुई। 15 जनवरी को मुमुक्षु जैनम जैन को 120किलो गुड़ से तोल कर गुड़ तोलन रस्म अदा की गई। रविवार 16 जनवरी को प्रातः काल शुभ मुहूर्त में केसर छाँटने की शुरुआत हुई व मुमुक्षु के श्वेत परिधानों पर केसर के छींटे दिए गए। 22 जनवरी को गीतों के साथ मेंहदी रस्म संपन्न हुई। मुख्य उल्लेखनीय यह है कि पिछले 44 दिनों से प्रतिदिन प्रवचन दौरान मुमुक्षु जैनम जैन के तिलक रस्म संपन्न होती रही, जिसका लाभ गुरुभक्त परिवारों व लुधियाना के विभिन्न श्री संघों- संगठनों ने लिया।