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गोपाष्टमीः गो-वंश की रक्षा,वंशवृद्धि तथा पूजन का एक महापर्व

गोपाष्टमी गो-वंश की रक्षा, वंशवृद्धि तथा पूजन का महापर्व है जिसकी शुरुआत द्वापर युग से माना गया है। बाबा नन्द के पास कुल लगभग आठ लाख लायें थीं। बाबा नन्द गायों की अधिकता,उनके संरक्षण तथा उनके वंशवृद्धि के लिए मशहूर थे। वे अपनी गायों का अलग-अलग नामकरण भी किये थे। नन्द के लाल किशन-कन्हैया को अपनी धवरी गाय का दूध बहुत पसंद था। वे जब भी अपनी गायों से बात करते तो गायों को वे उनके नाम लेकर पुकार कर करते थे। वे स्वयं गो-सेवा करते थे और गायों को चराते भी थे।

भारतीय शाश्वत परम्परा में चार माताओं की चर्चा है-अपनी मां,धरती मां,भारत मां तथा गौ मां का। कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है। उस दिन गोमाता,उनके बछडे तथा गोवंश को नहलाकर उनका अति सुंदर श्रृंगारकर पूजा की जाती है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस पूजन की शुरुआत की थी।

गाय इस सृष्टि की सबसे पवित्र पशु है।यह भारतीय धर्म तथा संस्कृति की प्रतीक है। इसीलिए आदिशंकराचार्य ने सबसे पहले भारत के चार धामों के चारों मठों में रहनेवाले मठाधीशों,साधु-संन्यासियों तथा वहां के ब्रह्मचारियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए चार गोशालाएं आरंभ की। गो-पूजन आरंभ किया। गो-सेवा आरंभ की तथा गोपाष्टमी मनाने का प्रचलन आरंभ किया।वास्तव में गाय अर्थ,धर्म,काम तथा मोक्ष की संवाहिका है। उसके पूजन से हमारा भूत,वर्तमान तथा भविष्य सुधर जाता है। 1970 के दशक में कुछ ऐसे गोभक्त भुवनेश्वर में हुए जो गाय तो खरीद नहीं सकते थे। गाय को रखकर सेवा नहीं कर सकते थे तो वे स्थानीय ओल्डटाऊन में शाम को गायों के लिए घास खरीदकर गोशालाओं को फ्री देते थे। गोपाष्टमी के दिन गायों की सजवाट की सामग्री आदि भी वे शौक से खरीद कर देते थे और गायों के गले में लटके घंटे की आवाज सुनकर वे अति आनंदित होते थे। कटक की श्री गोपाल कृष्ण गोशाला तो सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी गोशाला है जहां पर उत्कृष्ट गोशेड के साथ-साथ गो-चिकित्सालय है। नियमित पशु चिकित्सक हैं।गोशाला में रहनेवाली गायों को खुले में चरने के लिए अपना बडा-सा चरागाह है।चरागाह में उगाई जानेवाली घास विदेशों से मंगाकर लगाईं हैं। गोशाला सेवा समिति के लोग उनकी नियमित देखभाल करते हैं।कहते हैं कि गोशाला बनानेवाले लोग अपने मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं इसीलिए हमारे बुजुर्गगण अपनी अंतिम अभिलाषा के रुप में अपने बेटे को अपने नाम पर गोशाला बनाने की नेक सलाह देते हैं।

गो-माता की दयालुता का एक उदाहरण देखिए कि गाय सूखा तृण भी खाकर हमें पौष्टिक और सुपाच्य दूध देती है ।गाय से तैयार पंचगब्य सभी प्रकार से पवित्र होता है।धन्य हैं हमारे ऋषि-मुनिगण जो सूक्ष्म और दिव्य दृष्टि से गो माता के अन्दर के समस्त गुणों को पहचाना उनके उपयोग को स्पष्ट किया।श्रीजगन्नाथ पुरी गोवर्द्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य पुरी परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग प्रतिवर्ष गोपाष्टमी के दिन अपनी मठ-गोशाला की गायों की पूजा करते हैं तथा उनके बछडों को अपना दिव्य स्नेह देते हैं। वास्तव में गोपाष्टमी निःस्वार्थभाव से गो-सेवा ही है जिसके आयोजन से यज्ञ कराने का लाभ प्राप्त होता है।गोमाता इस सृष्टि की माता है जिसकी सेवाकर,गोवंश का संरक्षण कर तथा गोपाष्टमी के दिन ही नहीं अपितु प्रतिदिन गो-पूजनकर हमें अपने मानवजीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

(लेखक राष्ट्रपति से सम्मानित हैं और विविध विषयों पर उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है)