Friday, March 29, 2024
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‘3सी’ के साये में सरकार और सुधार

संघात्मक संविधान के अंतर्गत दो प्रकार की सरकारों का निर्माण किया जाता है, अर्थात संसदीय एवं अध्यक्षात्मक सरकार होती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान अध्यक्षात्मक है, संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रधान होता है,अर्थात समस्त कार्यकारिणी/ समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है । अध्यक्षीय प्रणाली में राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता द्वारा किया जाता है, राष्ट्रपति की कार्यकाल 4 वर्ष का होता है। वह मंत्रिमंडल के सदस्यों को नियुक्त करता है और उन्हें जब चाहे पदच्युत करता है ।मंत्रिमंडल के सदस्य कांग्रेस के सदस्य नहीं होते हैं ;क्योंकि मंत्रिमंडल के सदस्य राष्ट्रपति के मित्र ,सहयोगी एवं सलाहकार होते हैं।मंत्रिमंडल के सदस्य व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदाई होते हैं। मंत्रिमंडल के सदस्य अपने विधाई, कार्यकारी और अन्य प्रशासकीय कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदाई होते हैं।

भारत के संविधान ने संसदीय सरकार की स्थापना किया है एवं संसदीय सरकार” मूल संरचना सिद्धांत” का अवयव है। संसदीय शासन प्रणाली केंद्र( संघीय स्तर) व राज्य( इकाई स्तर )लागू है। भारत सरकार का यह स्वरूप इंग्लैंड की संसदीय व्यवस्था के समान है। सरकार का यह स्वरूप क्रियान्वित करने के पीछे यह मंतव्य था कि इसको भारत की जनता लगभग 200 वर्षों एवं अनेक भारत सरकार अधिनियम के माध्यम से अभ्यस्त थी। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत सरकार का ढांचा इसी प्रकार का था।संविधान सभा ने इसको बिना किसी संदेह को अपना लिया ;क्योंकि तमाम परिस्थितियों में इसने इस व्यवस्था को अभ्यस्त किया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से संसद(लोकसभा+राज्यसभा+राष्ट्रपति) के प्रति जिम्मेदार होती है।

राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत “राजनीतिक आभार” होता है अर्थात शासक शासित के प्रति किस प्रतिशत तक जिम्मेदारी है? लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था के अंतर्गत शासक अपने शासकीय व प्रशासकीय कार्यों के प्रति जनता के प्रति उत्तरदाई होता है; दूसरे शब्दों में कहें तो इसका आशय है कि शासक जनता के सुख एवं दुख के लिए जिम्मेदार है। जनता का सुख शासक का सुख है, जनता का दुख शासक का दुख होता है। शासकीय आभार सरकार या सत्ता में बैठे राजनीतिक दल के स्तर पर पूरी तरह से लागू नहीं की जा सकती है, इसकी सफलता के लिए स्थानीय स्तर पर कार्यशैली और सोच में बदलाव से संभव होता है। संसदीय शासन व्यवस्था में “3C”का उपादेयता सिद्ध कर रही है।राजनीतिक व्यवस्था में कुछ राज्यों/ केंद्र- शासित प्रदेश “3C”के पर्याय होती जा रही हैं अर्थात
C=cut (कटौती);
C=Corruption (भ्रष्टाचार);
C=Commission (कमीशन) अर्थात् सरकारें जो पारदर्शिता, सुशासन एवं जवाबदेही को आधार बनाकर जनाधार लेकर आई थी ,उन्होंने प्रत्येक मंत्रालय के विभागों के बजट में कटौती कर रही हैं। विकास का सीधा आशयब समाज का समावेशी विकास हो ;लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली व संसदीय प्रणाली के कार्यपालक अपने को” C “के दायरे में ला दिए हैं। अर्थात विकास के बजट को कटौती करके अपने स्वार्थ की पूर्ति/ अपने पसंदीदा को कार्य दिलवाना। इसी प्रकार “C”से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है। लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों में भ्रष्टाचार सर्वाधिक उचस्थ स्थान पर है एवं “C” रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना है। लोकतांत्रिक शासन में दीमक रूपी व्यक्तियों से सतर्क रहना होगा; क्योंकि इनके विचार लोकतंत्र को ‘ भीड़ तंत्र’ में बदलने के लिए राजनीतिक पर्यावरण तैयार कर रहा है।

(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं )

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