Thursday, March 28, 2024
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एक मुलाकातः हरफनमौला किशोर से

ज़रूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति फिल्मी दुनियाॅ, खेल या राजनीति जैसे क्षेत्रों में ही अपने कुछ कारनामें दिखाये तभी उसके चाहने वालों की फौज इकट्ठी होगी। आज सोशल साइट्स का ज़माना है और बहुत से लोग अपने विभिन्न मस्ती भरे जलवों से फेसबुक, ट्वीटर और वाट्सअप आदि जैसी सोशल साइट्स पर लोगों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहते हैं। जी हां, आप तलाशें तो कभी आपको इन साइट्स पर एक चेहरा कभी राजकपूर की याद दिलाता अभिनय करता दिख जायेगा, तो कभी किशोर कुमार, तलत, हेमंत या मुकेश दा आदि की आवाज़ में गाना गाते हुए उछलता-कूदता। कभी वही कवि सम्मेलन के मंचों पर होगा तो कभी पत्र/पत्रिकाओं में कार्टूनिस्ट व हास्य-व्यंग्य लेखक के रूप में। जी हाँ, मैं बात कर रही हँू अनेक सोशल साइट्स पर अपनी विभिन्न कलाओं के जलवे बिखेरने वाले एक नेक दिल इंसान ‘‘श्री किशोर श्रीवास्तव’’ की।

यहां मैं यह भी कहना चाहूंगी संभवतः इंसान जो होता है, वह छुपाने की कोशिश करता है और जो हकीकत में वो नहीं होता, उसे दिखाना चाहता है…ऐसे चेहरों को परिभाषित करना मुश्किल होता है….लेकिन कुछ चेहरे अपने जीवन में पारदर्शिता लेकर चलते हैं…और जीते हैं…उनके चेहरे पर कोई मुखौटा नहीं होता। शीशे की तरह आर-पार दिखने वाले ऐसे ऐसे लोग विरले ही होते हैं। जी हाँ, ऐसे ही हैं हम सबके प्यारे किशोर।

आज मैं, खुद के जीवन को भरपूर जीने वाले, दूसरों के जीवन में खुशियाँ बिखेरने वाले और नौकरी के बाद के बचे समय में लोगों को विभिन्न सामाजिक बुराइयों के प्रति आगाह करने के लिये अपनी जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी ‘खरी-खरी’ लेकर देश भर में घूमते रहने वाले कवि, साहित्यकार, व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट, चित्रकार, मिमिकरी आर्टिस्ट, सफल मंच संचालक और एक अच्छे मार्गदर्शक से अपने पाठकों को रूबरू कराती हूं। तो दोस्तों… आज आप और मैं भी.. किशोर जी की जिंदादिली और कलाकारी से परत दर परत वाकिफ़ होते हैं और जानते हैं उनसे अपने मन में उमड़ते कुछ प्रश्नों के जवाब।

150125-215232नेहाः कार्टूनिस्ट, लेखक, संपादक, कवि, गायक, व्यंग्यकार/कॉमेडियन और क्या-क्या संबोधन दूं , आपको? यह सब गुण यानि रुचि कब और कैसे पनपी आपमें?
किशोरः परिवार में मेरे मझले भाई, जिन्हें हम मुन्ना भैया के नाम से जानते थे, अच्छा गाते थे। और एक छोटी बहन रचना की आवाज भी अच्छी थी। सबसे छोटी बहन सृष्टि भी कलाकार थी। लोग बताते हैं कि उस वक्त मेरी आवाज़ पतली और लता जी जैसी थी सो मुझ पर लता जी के गाने खूब फबते थे। हमारे गानों की शुरूआत बचपन में बहराइच में हुई। वहां घंटाघर के भव्य मैदान में अक्सर सांस्कृतिक समारोह हुआ करते थे और उनमें बालक किशोर के नाम से मुझे बुलाया जाता था। हजारों की भीड़ में मुझे वहां गाने में बहुत आनन्द आता था। हम सब भाई-बहनों में ये गुण पैतृक थे। कुल मिलाकर सबसे पहले संगीत का ही शौक पनपा और वह भी मुन्ना भैया की देखा-देखी। बाद में उन्हीं का अनुसरण करते हुए मैं साहित्य की लाइन में आया। 80 के दशक में झांसी में रहते हुए कार्टूनिस्ट काॅक जी से प्रभावित होकर मैंने कार्टून बनाना शुरू किया। उन्हीं दिनों मुन्ना भैया के संपादन में निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘मृगपाल’ से जुड़ा। और बाद में दैनिक जागरण, झांसी में उप संपादक और कार्टूनिस्ट के रूप में काम करने का अवसर मिला। इसके साथ-साथ सांस्कृतिक मंचों से भी जुड़ा रहा और पढ़ाई भी करता रहा। बाद में दिल्ली आकर सरकारी पत्रिका का संपादन करने का अवसर भी मिला।

नेहाः देश की तमाम पत्र/पत्रिकाओं में आपके लेख, कहानी, व्यंग्य मैं पढ़ती रहती हूं। आपके प्रिय लेखक/कवि/कार्टूनिस्ट कौन हैं?
किशोरः जैसा कि सबके साथ होता है, बचपन से ही मैं प्रेमचन्द की कहानियां पढ़-पढ़ कर उनका फैन बन गया था। स्कूल के दिनों में हिंदी की क्लास में सुभद्रा कुमारी चैहान का गीत ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ गाते-गाते चौहान जी मेरी प्रिय कवयित्री बनीं, कवियों में नीरज जी का भी मैं बड़ा फैन रहा। और कार्टून के क्षेत्र में मैं सबसे ज़्यादा काॅक जी से प्रभावित रहा। और बहुत से अन्य लेखक, कवि भी हैं जिन्होंने मुझे समय-समय पर अपनी कृतियों से प्रभावित किया।

नेहाः आप एक उम्दा कार्टूनिस्ट भी हैं। आप अपनी ‘खरी-खरी’ कार्टून पोस्टरों के माध्यम से सबको समाज की कड़वी सच्चाई से अवगत कराते हैं। आपके पोस्टरों की प्रदर्शनी के वक्त लोगों की क्या प्रतिक्रिया रहती है?
किशोरः प्रायः लोग मेरे ‘खरी-खरी’ पोस्टरों से काफ़ी प्रभावित होते हैं। अनेक विषय जहां उन्हें गुदगुदाते हैं वहीं कई विषय उन्हें देश और समाज के बारे में कुछ सोचने पर भी विवश करते हैं। ऐसा दर्शकों की मौखिक और लिखित प्रतिक्रियाओं से भी पता चलता है।

नेहाः आप अक्सर अपनी वीडियो में मस्ती के बीच गीत गुनगुनाते हुए देखे जाते हैं। आपके प्रिय गायक भी किशोर ही हैं क्या?
किशोरः जैसा कि मैंने अभी बताया कि शुरूआती दौर में मैं लता जी के गाने गाता था। बाद में तलत, हेमंत, मुकेश और प्रदीप जी मेरे पसंदीदा गायक रहे। हाल के दिनों में मैंने किशोर जी के गानों के साथ भी काफ़ी जो़र आजमाईश की। उनके गाये गये अनेक गंभीर और मस्ती भरे गीत गाने में मुझे काफ़ी मज़ा आता है। वैसे समय-समय पर मैंने मो. रफी, यशुदास आदि के गाने भी खूब गाये हैं। इन सभी गायकों में मैंने अलग-अलग अनेक विशेषतायें पायी हैं।

नेहाः आपकी मेहमाननवाजी तो दूर दूर तक प्रसिद्ध है। दिल्ली और दिल्ली से बाहर के लोगों को आपकी मेहमाननवाजी बहुत लुभाती है। इस महंगाई के युग में ऐसा आप कैसे कर पाते हैं।
किशोरः सब ऊपर वाला करवाता है। बेशक कभी-कभी कुछ विपरीत स्वाभाव के मेहमान सिरदर्द भी बन जाते हैं और ऐसे लोगों के घर आने से मुझे कोफ़्त भी महसूस होती है परन्तु कुछ अच्छे लोगों के आवागमन के चलते मेहमाननवाज़ी में मेरा आनंद बना ही रहता है। इसे आप मेरा खानदानी शौक भी कह सकती हैं। पिता जी के ज़माने में भी हमारे घर में मेहमानों का तांता लगा रहता था। मुझे लगता है जिसके हिस्से का जो होता है, वही वह पाता है। आजकल के महंगाई के युग में किसी के घर आने वाले लोगों पर भी कुछ न कुछ बोझ रहता ही है। और मुझे लगता है कि लोग भी वहीं जाते हैं जहां उन्हें जाना अच्छा लगता है। बेवजह या बेढंगे लोगों के यहां कोई नहीं जाता।

नेहाः आप मिमिक्री भी बहुत अच्छी कर लेते हैं। ये गुण क्या आप में बचपन में अपने टीचर या दोस्तों आदि की नकल करते हुए आये?
किशोरः टीचरों का मैंने कभी मज़ाक नहीं उड़ाया पर हां नेताओं, कार्यालय और साथ के लोगों तथा फिल्मी कलाकारों की अदायें और हरकतें देख-देख कर कुछ गुण ज़रूर मेरे भीतर आ गये।

नेहाः आपका स्वाभाव काफी जाॅली (हंसी-मज़ाक) वाला है। भीड़ में आपका एक अलग आकर्षण रहता है। सबको अपने से बांधने का कोई ट्रैक है क्या आपके पास?
किशोरः शायद यह सब ईश्वरीय देन है। मेरा मानना है कि हम यदि किसी को कुछ दे सकते हैं तो चेहरे पर हँसी ही क्यों न दें। वैसे भी आजकल की मारामारी और आपाधापी वाली दुनिया में अधिकांश लोग घर, दफ्तर या देश, समाज में घट रही घटनाओं से दुखी या तनावग्रस्त रहते हैं। ऐसे में यदि हम किसी के ओठों पर रंच मात्र भी मुस्कान ला सकें तो इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं।

नेहाः आजकल चारों ओर स्वार्थ पनप रहा है। रिश्तों में मधुरता, अपनापन गुम हो गया है। ऐसे समय में भी आपके रिश्ते सबसे स्नेहमयी हैं। आपके देश भर में बहुत सारे बेटे-बेटियां भी हैं। इतने सारे बच्चों के पिता को इस बारे में कुछ कहना है?
किशोरः आपकी बातें सही हैं। पर हमारी संस्कृति तो सदा यही रही है कि हम निस्वार्थ भावना से रिश्तों को जियें। परन्तु शायद पश्चिमी सभ्यता की अंधी दौड़ में हमने अपने सभी रिश्तों को दर-किनार कर दिया है। हालांकि फेसबुक और ट्वीटर जैसी सोशल साइट्स ने हमें फिर से रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना सिखाया है। मैं और खुद मेरे माता-पिता, भाई-बहन आदि रिश्तों के प्रति सदैव सजग रहे हैं और यही वजह है कि फेसबुक आदि पर मेरे बहुत से बेटे-बेटियां, भाई-बहन बने हुए हैं। जहां कई बेटियां मेरी हम उम्र भी हैं वहीं कुछ माता-पिता मुझसे उम्र में छोटे भी। पर इससे कोई फ़क्र नहीं पड़ता। रिश्ते कोई भी हों, उन्हें जीना और निभाना आना चाहिये। और आजकल ‘बेटा’ शब्द तो प्रेम और अपनापन का पर्याय सा ही बन गया है। हम जिसे अत्यधिक चाहते हैं उसे बेटा कहकर संबोधित करने में कोई बुराई नहीं। जैसे हम भाई-बहन अपनी माँ को भी अक्सर प्यार से बेटा कहकर ही पुकारते थे। कभी मेरी पत्नी कष्ट में होती है तो हमारे लिये प्यार से उसके लिये भी बेटा शब्द ही निकलता है।

नेहाः आपको अब तक अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। परन्तु आजकल सम्मान समारोहों की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। कुछ कहना चाहेंगे आप इस बारे में?
किशोरः जी, यह सही है कि मुझे अनेक सम्मान मिले हैं परन्तु पहले सम्मानों को लेकर मन में जो क्रेज़ रहता था अब वैसा नहीं रह गया है। वर्तमान में मुझे सम्मानों से कहीं अधिक विभिन्न स्थानों पर अपनी जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी ‘खरी-खरी’ लगाने या अपनी विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन में आनन्द आता है। सच् मानिये तो आजकल बिना योग्यताओं का सही आंकलन किये आये दिन थोक के भाव बंटने वाले सम्मान समारोहों ने अपनी अहमियत भी खो दी है। भाई-भतीजावाद और अंधा बांटे रेवड़ी के दृश्य आये दिन देखने को मिलते हैं। आजकल भारी शुल्क लेकर सम्मान देने का प्रचलन भी खूब फल-फूल रहा है। ऐसे में प्रतिभा का उचित आंकलन नहीं हो पाता और पैसा खर्च करने वाले व्यक्ति बिना योग्यता के भी सम्मान की सूची में शामिल हो जाते हैं। यही नहीं बहुत से लोग तो आजकल अपना सम्मान समारोह खुद ही प्रायोजित करने लगे हैं। यह ज़रूर है कि कुछ संस्थायें जो योग्यता का सही मूल्यांकन करके सम्मान देती हैं उनकी वजह से अनेक ऐसी प्रतिभायें भी लाभान्वित हो जाती हैं जो पैसों या जान पहचान के अभाव में उचित सम्मान से अब तक वंचित रहा करती थीं।

नेहाः आजकल देश में चारों ओर उथल-पुथल मची हुई है। भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे कई मुद्दे हैं, रोज़-रोज़ के घोटाले ईमानदार लोगों को उद्वेलित कर रहे हैं। एक लेखक और अच्छे नागरिक होने के नाते इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
किशोरः यह बातें मुझे भी उद्वेलित करती हैं। पर हर जगह अपना वश तो नहीं चलता। कई बार हालातों से समझौता करना पड़ता है। दुख की बात तो ये है कि जो साहित्य कल तक दूसरों को रौशनी दिखाता था वह आज खुद अंधकार में डूबा हुआ नज़र आता है। सबको आज़माते-आज़माते हम सब थक चुके हैं। फिर भी निराशा के बीच ही आशा उपजती है। निश्चय ही वह दिन ज़रूर आयेगा जब हम अपने मन के अनुरूप अपना देश बना पायेंगे।

krishnajanmashtmiनेहाः आपका एक फेसबुक पेज है ‘किशोर से मिलें’ आपकी चुलबुली हरकतें, आपका गायन वास्तव में आपको खुद किससे प्रेरित लगता है?
किशोरः आप जैसे सभी लोगों से, जो कष्ट में भी मुस्कुराते रहने को अपने जीवन का ध्येय बना लेते हैं। इसके अलावा खुद खुश रहते हुए सबको खुश रखने की चाहत भी मुझे यह सब करने को प्रेरित करती है।

नेहाः आप अपनी ‘खरी-खरी’ जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी और कविता, संगीत आदि के कार्यक्रमों के माध्यम से जगह-जगह घूमते रहते हैं, पिछले दिनों नेपाल में भी आपके कार्यक्रम हुए। इन यात्राओं के बीच का कोई ऐसा लम्हा या किन्हीं ऐसे लोगों के बारे में बताइये जिन्होंने आपको काफ़ी प्रभावित किया हो।
किशोरः बेशक मैं अनेक जगहों पर अपनी प्रदर्शनी और कलाकर्म को लेकर घूमता रहता हूं। अक्सर मुझे किसी न किसी रूप में प्रभावित करने वाले लोग मिल जाते हैं। आजकल तो मैं जहां कहीं जाता हूं तो लोग अक्सर पूछ बैठते हैं, ‘आप वही किशोर जी हैं जिनकी फेसबुक पर गानों आदि की वीडियो हम देखते रहते हैं।’ पिछले दिनों मैं राज्य सभा सांसद श्री आर. के. सिन्हा जी के एक कार्यक्रम में पहुंचा तो उन्हांेने भारी भीड़ में छूटते ही मुझे पहचान लिया और बताया कि वह भी मेरे गानों की वीडियो देखते रहते हैं। कुछ समय पूर्व जब मैं नेपाल गया था तब वहां अपने फेसबुक मित्रों सर्वश्री बिनोद पछाई-जानुका ढकाल, किरन-सरिता श्रेष्ठ और ऊषा भट्ट आदि की मेहमाननवाजी, उनका प्यार और अपने प्रति सम्मान देखकर हतप्रभ रह गया था। वहां मैं एक चैरिटी शो के सिलसिले में गया था।

उस कार्यक्रम में मेरी काॅमेडी और गीतों की वजह से मुझको जिस तरह से श्रोताओं ने हाथों हाथ लिया और मेरे अनेक अन्य अत्यन्त प्रतिष्ठित और कला से जुड़े व्यक्ति मित्र बने उससे मैं गदगद रहा। ऐसे ही पिछले दिनों गंगतोक में मेरी कार्टून प्रदर्शनी और कलाकारी देखकर अस्मिता नाम की नृत्य कला से जुड़ी एक नन्हीं सी कलाकार बच्ची जब मेरे से आ लिपटी तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने भी उसे बाहों में भरते हुए उसको दिल्ली आने का निमंत्रण दे डाला। अब उस नन्हीं बिटिया से आये दिन मेरी उसकी पढ़ाई और कला आदि को लेकर वाट्सअप पर बातें होती रहती हैं।

नेहाः सबसे ज़रूरी प्रश्न यह कि आपकी पत्नी, आपकी हमसफ़र आपके साहित्यिक क्षेत्र या निजी जीवन में आपको कैसे और कितना सहयोग करती है। या घर-परिवार का कोई अन्य सदस्य जिसने कला के क्षेत्र में आपको बहुत प्रोत्साहित किया हो?
किशोरः घर में तो कला के क्षेत्र में मुझे अपने माता-पिता, भाई-बहनों और विशेषकर गुरूओं आदि सभी का ही सदा सहयोग व प्रोत्साहन मिला है। जब मैं छोटा था तब मेरे पिता जी मुझे गोद में लेकर भी संगीत के अनेेक कार्यक्रमों में हिस्सा दिलाने ले जाया करते थे। पढ़ाई की मार-कुटाई के बीच भी मेरे डैडी और मम्मी मेरी कला को निखारने का कोई मौका नहीं चूकते थे। बाल्यावस्था में मुझे बहराइच सहित उ. प्र. के कुछ जिलों और नेपाल के श्रोताओं का भी भरपूर प्यार और सहयोग मिलता था। मेरे गीतों के कार्यक्रम के समय बहराइच के घंटाघर का मैदान हज़ारों दर्शकों से खचाखच भरा रहता था। और प्रायः मेरे कार्यक्रम के समय वहां बाज़ार भी जल्दी बंद हो जाया करते थे।

वर्तमान में दिल्ली में मुझे अपने कार्यालय के अधिकारियों/कर्मचारियों और विशेषकर समाज कल्याण बोर्ड में बेशक कुछ ही समय सही, वहां मेरी बाॅस सहित अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों का मेरी कलाओं की वजह से मुझे जो प्यार, प्रोत्साहन और अपनापन मिला उसे मैं ताउम्र नहीं भूल पाऊंगा। इन सबके बीच मैं अपनी पत्नी शशि और बेटे दिव्यांशु का सहयोग भी सदा याद रखता हूं, जो घर में मेरे गानों, काॅमेडी आदि की रिकार्डिंग के समय अपने काम छोड़कर मेरे साथ मौजू़द रहते हैं। और मेरे बुलाये मेहमानों के स्वागत में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।

नेहाः कला क्षेत्र और सरकार के एक जि़म्मेदार पद की व्यस्तताओं के बीच आप अपने परिवार को कितना और किस तरह से समय दे पाते हैं?
किशोरः हम सभी अपने अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। शशि को भी लिखने-पढ़ने का शौक है अतः वह अमूमन ज़्यादातर कार्यक्रमों में मेरे साथ ही रहती है और वहां मेरी शुगर व बीपी के चलते मेरे खाने-पीने पर भी अंकुश लगाये रखती है। बेटा ज़्यादातर अपनी पढ़ाई और कंप्यूटर में फंसा रहता है। वह अब बड़ा हो गया है अतः हमें भी उसे घर में अकेला छोड़कर कहीं जाते समय कोई परेशानी नहीं होती।

नेहाः अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए हमारी पत्रिका के पाठकों के लिये आप अपना कोई संदेश देना चाहेंगे?ं
किशोरः भविष्य की ऐसी कोई खास योजना तो नहीं है परन्तु जब तक जिऊं जीवन को भरपूर ढंग से जियूं और अपने असंख्य दोस्तों व मिलने-जुलने वालों के चेहरों पर मुस्कान की लकीरें खींचता रहूं, यही मेरी आज की और भविष्य की योजना है। पाठकों से भी मैं यही कहना चाहूंगा कि वे सदा पाजिटिव बनकर अपना जीवन जियें। जीवन को मात्र ढोने जैसा न जीकर भरपूर जियें। फजऱ्ी ढंग से आगे बढ़ने की बजाय मेहनत और लगन से अपना काम करें। जिस क्षेत्र में भी हों, अपने आपको साबित करके दिखायें। और सबसे बड़ी बात यह कि खुद भी खुश रहें और औरों को भी खुश रखने का प्रयत्न करें, साथ ही दूसरों को दर्द देने के स्थान पर लोगों का दर्द बांटने का प्रयत्न करें। वैसे ही जैसे इस गाने के बोल कहते हैं-‘किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार…जीना इसी का नाम है….’

साक्षात्कारकर्ता का पताः .ए-2/483, सैक्टर-8, रोहिणी, दिल्ली-110085 मो.9990032932 ईमेलः [email protected]

श्री किशोर श्रीवास्तव का पताः मकान न. 321, सैक्टर-4, आर. के. पुरम, नई दिल्ली-110022,
मो. 9868709348, 9599600313, 8447673015, ईमेलः [email protected]

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एक निवेदन

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