1

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद में हिंदी पखवाड़ा समापन समारोह संपन्न

हैदराबाद। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के सचिव एवं संपर्क अधिकारी श्री एस. श्रीधर की अध्यक्षता में संपन्न हिंदी पखवाड़ा समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि एनएमडीसी के उप महाप्रबंधक श्री रुद्रनाथ मिश्र ने कहा कि हिंदी की प्रकृति समावेशी है। इसी प्रवृत्ति के कारण ही वह सभी भारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ रही है। हिंदी में आज रोजगार की संभावनाएँ बढ़ चुकी हैं क्योंकि यह रोजीरोटी से जुड़ चुकी है। उन्होंने इस बात की खुलासा की कि भाषाई आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना हमारा कर्तव्य है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री एस. श्रीधर ने कहा कि हिंदी हमारी अस्मिता है और भारतीय संस्कृति की आत्मा है। आज के तकनीकी युग में हिंदी भाषा बाजार-दोस्त और कंप्यूटर-दोस्त की भाषा बन गई है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि दीपावली, दुर्गाष्टमी, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस की तरह ही हिंदी दिवस को भी मनाना चाहिए।

सभा के प्रथम उपाध्यक्ष श्री अब्दुल रहमान ने इस बात पर जोर दिया कि स्वतंत्रता आंदोलन में संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बाँधकर हिंदी ने महती भूमिका निभाई।

सभा के प्रबंध निधिपालक श्री शेख मोहम्मद खासिम ने हिंदी के वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डाला तो कोषाध्यक्ष श्रीमती जमीला बेगम ने कहा कि हिंदी में जोड़ने की शक्ति है। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. संजय एल. मादार ने कहा कि एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषा है हिंदी जो हम सबकी ताकत है। शिक्षा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सी. एन. मुगुटकर और दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. शंकर सिंह ठाकुर ने सभी को शुभकामनाएँ दी।

इस अवसर पर संपन्न भाषण प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार वितरण समारोह का संचालन शिक्षा महाविद्यालय की प्रवक्ता श्रीमती शैलेशा एन. नंदूरकर ने किया। इस अवसर पर सभा के सभी विभागों के प्राध्यापक, छात्र, व्यवस्थापक गण, कार्यकर्ता गण, नगरद्वय के विभिन्न विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से पधारे अध्यापक तथा छात्र उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ और संचालन डॉ. बिष्णु कुमार राय ने किया। डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सामूहिक राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

– सादर
डॉ नीरजा गुर्रमकोंडा
सह संपादक ‘स्रवंति’