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‘हिंदी साहित्य ज्ञान कोश’ राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद को भेंट किया

नई दिल्ली। भारतीय भाषा परिषद और वाणी प्रकाशन के तत्वाधान से निर्मित ‘हिंदी साहित्य ज्ञान कोश’ दिनांक 16 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति महोदय श्री राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति निवास में भेंट किया गया। इस अवसर पर वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी, निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल, प्रधान संपादक शंभूनाथ, कुसुम खेमानी, अध्यक्ष भारतीय भाषा परिषद, विमला पोद्दार, मंत्री, भा.भा.प. विवेक गुप्त, सन्मार्ग अख़बार के मुख्य संपादक एवं पूर्व सांसद, राज्यसभा उपस्थित थे। राष्ट्रपति महोदय द्वारा हिंदी साहित्य ज्ञानकोश को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया गया।

इसके उपरांत इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नयी दिल्ली में ‘हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश’ पर एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें इस महत्त्वपूर्ण परियोजना के मुख्य संपादक श्री शंभूनाथ एवं वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने पत्रकारों से कोश में लगे विशद शोध एवं इसकी निर्माण प्रक्रिया पर बातचीत की।

आपको यह सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि वाणी प्रकाशन और भारतीय भाषा परिषद् के तत्वावधान में निर्मित सात खण्डों का ‘हिन्दी साहित्य ज्ञान कोश’ अब हिन्दी के पाठकों के लिए उपलब्ध है। हिन्दी साहित्य, दर्शन, इतिहास, आलोचना आदि सभी विषयों को समाहित किये हुए यह सात खण्डों का महती ज्ञान कोश हिन्दी साहित्य में पहला ऐसा प्रयास है जो शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों के अतिरिक्त आम पाठकों के लिए भी उतना ही लाभप्रद है।

श्री शंभूनाथ जी ने पत्रकारों से बात करते हुए ज्ञानकोश के इतिहास एवं उसके निर्माण प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने बताया कि ‘हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश’ पूरे हिन्दी संसार का एक सपना था। जिस भाषा में अद्यतन ज्ञानकोश न हो, उसे दरिद्र मानना चाहिए। एक स्वतन्त्र देश में हरेक को अपनी राष्ट्रीय भाषा में उच्च ज्ञान और अध्ययन का अधिकार है। अंग्रेज़ी की ओर झुकने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए। हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश इसमें यह आत्मविश्वास पैदा कर सकता है कि हिन्दी उच्च ज्ञान का द्वार बन सकती है। हिन्दी में ज्ञान के आकाश की विस्तृत घटनाओं को जाना जा सकता है और आनन्द लिया जा सकता है।

1958 से 1965 के बीच धीरेन्द्र वर्मा द्वारा बना ‘हिन्दी साहित्य कोश’ करीब पचास साल पुराना हो चुका था। इसके अलावा, आज साहित्य का अर्थ विस्तार हुआ है। साहित्य का ज्ञान अब एक व्यापक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य और दुनिया के बहुत से विचारों, सिद्धान्तों और अवधारणाओं को जाने बिना संभव नहीं है। साहित्य आज भी ज्ञान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानवीय रूप है। यह आम नागरिकों के लिए पानी और मोबाइल की तरह जरूरी है।

वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी ने बताया कि इसमें हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश में 2660 प्रविष्टियाँ हैं। यह 7 खण्डों में 4560 पृष्ठों का है। इसमें हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित इतिहास, साहित्य सिद्धान्त आदि के अलावा समाज विज्ञान, धर्म, भारतीय संस्कृति, मानवाधिकार, पौराणिक चरित्र, पर्यावरण, पश्चिमी सिद्धान्तकार, अनुवाद सिद्धान्त, नवजागरण, वैश्विकरण, उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श आदि कुल 32 विषय हैं। हिन्दी की प्रकृति और भूमिका अन्य भारतीय भाषाओं से विशिष्ट है। इसलिए ज्ञानकोश में हिन्दी राज्यों के अलावा दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्व और अन्य भारतीय क्षेत्रों की भाषाओं-संस्कृतियों से भी परिचय कराने की कोशिश है। इसमें हिन्दी क्षेत्र की 48 लोक भाषाओं और कला-संस्कृति पर सामग्री है। श्री शंभुनाथ जी के अनुसार पिछले पचास सालों में दुनिया में ज्ञान के जो नये विस्फोट हुए हैं, उनकी रोशनी में एक तरह से भारतीय भाषाओं में हिन्दी में बना यह पहला ज्ञानकोश है। यह विद्यार्थियों और आम हिन्दी पाठकों के बौद्धिक क्षितिज के बहुतरफा विस्तार में सहायक हो सकता है। देश भर के लगभग 275 लेखकों ने मेहनत से प्रविष्टियाँ लिखीं और उनके ऐतिहासिक सहयोग से ज्ञानकोश बना।

श्री शंभुनाथ जी ने बताया कि इस ज्ञानकोश के निर्माण में राधावल्लभ त्रिपाठी, जवरीमल्ल पारख, अवधेश प्रसाद सिंह और राजकिशोर जैसे ख्याति प्राप्त विद्वानों ने बहुत श्रम किया है। हमने कोलकाता में कार्यशालाएँ की। इंटरनेट की सुविधाएँ लीं और नयी पद्धतियों को अपनाया। हमारा लक्ष्य था कि एक बृहद, तथ्यपूर्ण, समावेशी और सारवान ज्ञानकोश बने। यह ज्ञान का एक विकासशील कोश है और एक राष्ट्रीय शुरुआत है। हमारा विश्वास है कि हिन्दी की आने वाली पीढ़ियों द्वारा इसकी नींव पर ज्ञान की बहुमंजिला इमारत बनती रहेगी।

अंग्रेज़ी में इन्साइक्लोपीडिया में पुरानी चीजें और अवधारणाएँ हैं, जबकि हम 21वीं सदी के अत्याधुनिक मोड़ पर है। विकीपीडिया पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, ख़ास यहाँ हिन्दी में बहुत भ्रामक और सीमित सूचनाएँ हैं। हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश के वरिष्ठ और नये लेखकों ने इन्टरनेट सहित कई स्रोतों से सूचनाएँ लीं, सत्यता को जाँच कर तथ्यों को चुना और यथासंभव प्रविष्टियों को अद्यतन रूप दिया। अंग्रेज़ी ग्रन्थों और ज्ञान भण्डार को अलग रख कर कोई ज्ञानकोश नहीं बन सकता। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि पश्चिम में बने इन्साइक्लोपीडिया ने आधुनिक ज्ञान व्यवस्था के नाम पर अज्ञान और यूरोप केन्द्रिकता का प्रचार अधिक किया है। हमने कोशिश की है कि न अतीत से आक्रान्त हों और न औपनिवेशिक ज्ञान व्यवस्था से। श्री शंभुनाथ ने पत्रकारों का उत्तर देते हुए कहा कि हिन्दी भाषी लेखकों और आम लोगों में उस जातीयता का बोध नहीं जो अन्य भाषाओं के लेखकों में है। यही वजह है कि अन्य भाषाओं की तुलना हिंदी में यह काम देर से हुआ। हिंदी साहित्य में व्यक्तिवाद और आंतरिक कलह अधिक है। अगर हमने ख़ुद को ‘हिंदी’ समझा होता तो यह बहुत पहले तैयार हो गया होता। यह हिंदी की सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है।

हिन्दी का पहला ‘हिन्दी विश्वकोश’ नगेन्द्रनाथ बसु के सम्पादन में 1916 से 1931 के बीच तैयार किया था। यह उनके बांग्ला विश्वकोश की ही हिन्दी छाया था। इसके पश्चात ‘हिन्दी साहित्य कोश’ 1956 में आया था। नागरी प्रचारिणी सभा ने 1960 से 70 के बीच हिन्दी विश्वकोश प्रकाशित किया था। अब इसके बाद भारतीय भाषा परिषद के ‘हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश’ को हम एक बड़े हस्तक्षेप के रूप में देख सकते हैं। इसको ग्रन्थ रूप देने और वितरण व्यवस्था में वाणी प्रकाशन की ऐतिहासिक भूमिका है। कोलकाता के सन्मार्ग ने इसे मुद्रित किया है। पत्रकारों के प्रश्न का उत्तर देते हुए अरुण माहेश्वरी ने बताया की यहाँ जुड़ा साहित्य शब्द अपने विशद अर्थ में है। इसके अंतर्गत दर्शन, राजनीति, इतिहास आदि सब समाहित है। यह विश्व कोश से कहीं आगे की बात है और साहित्य शब्द के जुडने से व्यापक विस्तार ले लेता है। प्रेस वार्ता में पत्रकारों की तरफ़ से आए इन सुझावों का उन्होने स्वागत किया कि हर साल इसमें नए संसोधन जोड़ें जाएँ और उनसे पाठकों को परिचित कराया जाये। साथ ही इसके डिजिटल संस्करण को भी शीघ्र लाने की बात कही।

भारतीय भाषाओं में विदेशी भाषाओं की तरह सुगठित रूप में विश्वकोशों का न बन पाना और बने कोशों का अद्यतनीकरण न हो पाना इस देश के बौद्धिक पिछड़ेपन के प्रमुख कारणों में एक है। अपनी भाषा के एक सुगठित ज्ञानकोश का होना राष्ट्रीय जागरण का चिह्न है।

इन्टरनेट के तीव्र सूचना प्रवाह के युग में मुद्रित ज्ञानकोश कितना उपयोगी हो सकता है। सूचना क्रान्ति ने ‘अज्ञानता का शास्त्र’ बड़े पैमाने पर गढ़ा है। इस युग में भ्रामक सूचनाओं का जाल बिछा हुआ है। सूचनाओं की इतनी अधिक दिशाओं से इतनी अधिक भरमार हो गयी है कि उनके बीच ज्ञान खो सा गया है।

ज्ञान और सूचना में फ़र्क होता है। ज्ञान सूचनाओं के पारस्पर सम्बन्ध और टकराव से जन्मी एक विकासशील चेतना है। ज्ञान की पहचान यह है कि एक ज्ञान दूसरे ज्ञान का मार्ग खोलता है। ज्ञान ही है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है, उसे प्रेम करना सिखाता है, ख़ुद सोचने की शक्ति देता है और मनुष्य के स्वातन्त्रयबोध का विस्तार करता है। हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश की प्रविष्टियों में कोई अन्तिम कथन नहीं है। यह आगे की जानकारियों के लिए मार्ग खोलता है और अपने पाठकों को जिज्ञासु और गतिशील बनाता है। जहाँ तक इसके मुद्रित रूप का प्रश्न है, हाथ में लेकर कुछ पढ़ने और जानने का अलग ही आनन्द है। समाज में पुस्तक हाथ में लेकर आत्मीय ढंग से पढ़ने के युग का कभी अन्त नहीं होगा। इन्टरनेट पर सूचना प्रवाह विज्ञापनों से बाधित होता है। आप धर्म के बारे में कुछ पढ़ रहे हैं कि तुरन्त बर्गर का विज्ञापन आ कूदेगा। मुद्रित ग्रन्थ के साथ ऐसी विडम्बना नहीं है।

वाणी प्रकाशन के बारे में…

वाणी प्रकाशन 56 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

वाणी प्रकाशन भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 18 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो, पोलिश लिटरेरी के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव सम्मान प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउन्सिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।

लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।

3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ में कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।

वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया। व वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया ।

‘किताबों की दुनिया’ में बदलती हुई पाठक वर्ग की भूमिका और दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपनी 51वी वर्षगाँठ पर गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की। फ़ाउण्डेशन की स्थापना के मूल प्रेरणास्त्रोत सुहृदय साहित्यानुरागी और अध्यापक स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ हैं। स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ ने वर्ष 1960 में वाणी प्रकाशन की स्थापना की। वाणी फ़ाउण्डेशन का लोगो विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा द्वारा बनाया गया है। मशहूर शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार वाणी फ़ाउण्डेशन के प्रेरणास्रोत हैं।

वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय और विदेशी भाषा साहित्य के बीच व्यावहारिक आदान-प्रदान के लिए एक अभिनव मंच के रूप में सेवा करता है। साथ ही वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय कला, साहित्य तथा बाल-साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोधवृत्तियाँ प्रदान करता है। वाणी फ़ाउण्डेशन का एक प्रमुख दायित्व है दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा हिन्दी को यूनेस्को भाषा सूची में शामिल कराने के लिए विश्व स्तरीय प्रयास करना।

वाणी फ़ाउण्डेशन की ओर से विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतवर्ष के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम से कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत हाशिए पर है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के इतिहास के मध्य भाषिक और साहित्यिक सम्बन्धों के आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।

वाणी फ़ाउण्डेशन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है भारतीय भाषाओं से हिन्दी व अंग्रेजी में श्रेष्ठ अनुवाद का कार्यक्रम। इसके साथ ही इस न्यास के द्वारा प्रतिवर्ष डिस्टिंगविश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड भी प्रदान किया जाता है जिसमें मानद पत्र और एक लाख रुपये की राशि अर्पित की जाती हैं। वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान प्रतिष्ठित अनुवादक, लेखक, पर्यावरण संरक्षक तेजी ग्रोवर को दिया गया है।

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