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हिन्दू धर्म पर संकट क्यों?

एक कडुवा सच जो सनातन कहे जाने वाले हिन्दू धर्म को धीरे धीरे निगल रहा है…. हिन्दू की अज्ञानता आज उसका श्राप होती जा रही है । उसे यह ज्ञान ही नहीं है कि “काफ़िर” कौन है और उनका शत्रु कौन ? कौन है जो उनको लूटता, महिलाओं से बलात्कार करता व कत्ल करने से भी नहीं चूकता ? कौन है जो निर्दोषो को केवल धार्मिक घृणा के कारण जड़ से ही नष्ट करके अपना धार्मिक वर्चस्व स्थापित करने के सपने पाला हुआ है ?

सत्ता के लालची लोग जो उनका नेतृत्व करते है उनको इन सबसे कोई सरोकार नहीं…वे मुर्ख नेता ये नहीं सोचते कि जिस बहुमत के भरोसे सत्ता पाते हो उसका अगर अस्तित्व संकट में आ जायेगा तो भविष्य में किसके दम पर राजनीति करोगे ? इसी प्रकार मन्दिरों व मठो के महंतो व पुजारियों को अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली को बनाये रखने के लिए उस समाज की सुरक्षा तो करनी ही पड़ेगी जो सदियों से उनको चढ़ावे के नाम पर अरबो-खरबो का दान करता आ रहा है, परंतु उसकी सुरक्षा की कोई चिंता नहीं, क्यों ?

क्योंकि उसे पता ही नहीं कि कौन शत्रु है और कौन मित्र ? तो फिर कैसा व किससे संघर्ष ? उसको यह भी नहीं पता कि अपने धर्म की रक्षा करोगे तभी धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा… अर्थात हिन्दूओ को अपने वर्तमान व भविष्य की रक्षा स्वयं करनी होगी तभी धर्म की रक्षा होगी। लेकिन धर्म की रक्षा किससे और क्यों करनी है यह तो सभी को बताना ही होगा। शत्रु व शत्रुता के ज्ञान का अभाव ही हिन्दुओं को कर्तव्यविमुख कर रहा है।

गांडीव धारी अर्जुन के समान लक्ष्य को निश्चित जान कर ही तो शत्रु का संहार किया जा सकता है। परंतु उसके लिए सुर्दशन चक्र धारी भगवान श्री कृष्ण भी तो मार्गदर्शन के लिए चाहिये । आचार्य चाणक्य के समान राष्ट्रभक्त, चिंतक व दूरदर्शी भी चाहिए जिन्होंने अपनी संकल्प शक्ति से एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को सम्राट चन्द्रगुप्त बना कर राष्ट्र रक्षा का दायित्व निभाया।अतः आज हमको अपने प्रेरणादायी इतिहास को स्मरण करके धर्म व देश की रक्षार्थ मार्गदर्शन करने के लिए राष्ट्रभक्ति पूर्ण नेतृत्व व शिक्षको के अभाव को दूर करना होगा।

सधन्यवाद
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद