Thursday, April 18, 2024
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हिन्दी साहित्य का इतिहास : अध्ययन की नयी दृष्टि

पाँचवाँ व्याख्यान : अम्बेडकरवाद और हिन्दी दलित साहित्य – राजेश पासवान

छठा व्याख्यान : आदिवासी विमर्श और हिन्दी साहित्य – गंगा सहाय मीणा


नईदिल्ली।
वाणी डिजिटल : शिक्षा शृंखला और प्रभाकर सिंह, बीएचयू वाराणसी की ओर से आयोजित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास : अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श’ का दूसरा पड़ाव के 16 दिवसीय व्याख्यानमाला में पाँचवाँ व्याख्यान ‘अम्बेडकरवाद और हिन्दी दलित साहित्य’ और छठा व्याख्यान ‘आदिवासी विमर्श और हिन्दी साहित्य’ पर आयोजित हुआ।

 

 

‘अम्बेडकरवाद और हिन्दी दलित साहित्य’ विषय पर व्याख्यान दिया युवा समीक्षक और दलित विचारक राजेश पासवान ने। उन्होंने अम्बेडकरवाद के वैचारिक और सृजनात्मक स्वरूप का दलित साहित्य पर किस रूप में प्रभाव पड़ा इसकी गहन पड़ताल की। बाबासाहेब अम्बेडकर का यह नारा शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो, दलित साहित्य का मूल मन्त्र है। हिन्दी दलित साहित्य में प्रसिद्ध ‘जूठन’ आत्मकथा में ओमप्रकाश वाल्मीकि शिक्षा से स्वाभिमान प्राप्ति की बात करते हैं। दलित साहित्य आदर्शवादी साहित्य नहीं है। उसमें आक्रोश, वेदना और करुणा है। वह जीवन सन्दर्भों से जुड़ा हुआ ईमानदार साहित्य है। दलित साहित्य में श्यौराज सिंह बेचैन, धर्मवीर, ओमप्रकाश वाल्मीकि, तुलसीराम के साथ नयी युवा सृजनशीलता इस साहित्य को विकसित कर रही है। दलित साहित्य ने साहित्य को देखने का अपना एक सौन्दर्यशास्त्र भी निर्मित किया है क्योंकि जीवन को देखने और रचने का हमारा अपना नज़रिया होना चाहिए न कि दूसरे का । भूमंडलीकरण के दौर ने एक ओर कई समस्याएं दी हैं तो इसने जाति व्यवस्था और तमाम सारी संस्थाओं को तोड़ा भी है। दलित साहित्य की रचनात्मकता का इस नये उदारीकरण से एक सकारात्मक रिश्ता भी बना है। दलित साहित्य ने साहित्य सृजन के नये स्वरूप को विकसित किया है और उसे लोकतन्त्रिक बनाया है।

छठा व्याख्यान : आदिवासी विमर्श और हिन्दी साहित्य – गंगा सहाय मीणा

छठा व्याख्यान ‘आदिवासी विमर्श और हिन्दी साहित्य’ पर केन्द्रित रहा। इस विषय पर युवा आलोचक और आदिवासी साहित्य के मर्मज्ञ गंगा सहाय मीणा ने अपने विचार रखते हुए कई नये दृष्टिकोणों के साथ आदिवासी साहित्य और चिन्तन को विवेचित किया।आदिवासी साहित्य को उन्होंने पुरखा साहित्य कहा। इस साहित्य का पहला स्रोत मौखिक परम्परा में मिलता है। दूसरा स्रोत अनुवाद और उस साहित्य में मिलता है जिसको ख़ुद अपनी मातृभाषा के साथ दूसरी भाषाओं में आदिवासी रचनाकारों ने लिखा है। तीसरा स्रोत समकालीन लेखन में है जिसमें गैर- आदिवासी भाषाओं मसलन हिन्दी, तमिल, मराठी में जो साहित्य लिखा गया। आदिवासी साहित्य में आदिवासी दर्शन हो यह ज़रूरी बात नहीं है। समकालीन हिन्दी या अन्य साहित्य में आदिवासी जीवन के बारे में लिखा तो गया है लेकिन सभी में आदिवासी दर्शन नहीं है। आदिवासी साहित्य में आदिवासी दर्शन को निम्न रूपों में तलाशा जा सकता है- जैसे आदिवासी दर्शन या आदिवासी संस्कृति में प्रकृति और पुरुषों के प्रति सम्मान भाव, सामूहिकता और पूँजीवादी भूमंडलीकरण का प्रतिरोध दर्ज किया जाता है। इन दिनों आदिवासी साहित्य लिखने वाले बहुत सारे साहित्यकारों के साथ जो प्रमुख पुराने साहित्यकार हैं उनमें सुशीला सामन्त, एलिस, रामदयाल मुंडा और पीटर पाल महत्त्वपूर्ण हैं। आदिवासी साहित्य में शोध करते समय आधार साहित्य को ठीक से समझने की ज़रूरत है तभी हम आदिवासी साहित्य को विकसित कर सकते हैं।

वाणी प्रकाशन के बारे में…

वाणी प्रकाशन, ग्रुप 57 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

वाणी प्रकाशन, ग्रुप भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 25 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो, पोलिश लिटरेरी के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव सम्मान प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउन्सिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।

लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।

3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ में कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।

वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया। व वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया ।

‘किताबों की दुनिया’ में बदलती हुई पाठक वर्ग की भूमिका और दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपनी 51वी वर्षगाँठ पर गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की। फ़ाउण्डेशन की स्थापना के मूल प्रेरणास्त्रोत सुहृदय साहित्यानुरागी और अध्यापक स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ हैं। स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ ने वर्ष 1960 में वाणी प्रकाशन की स्थापना की। वाणी फ़ाउण्डेशन का लोगो विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा द्वारा बनाया गया है। मशहूर शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार वाणी फ़ाउण्डेशन के प्रेरणास्रोत हैं।

वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय और विदेशी भाषा साहित्य के बीच व्यावहारिक आदान-प्रदान के लिए एक अभिनव मंच के रूप में सेवा करता है। साथ ही वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय कला, साहित्य तथा बाल-साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोधवृत्तियाँ प्रदान करता है। वाणी फ़ाउण्डेशन का एक प्रमुख दायित्व है दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा हिन्दी को यूनेस्को भाषा सूची में शामिल कराने के लिए विश्व स्तरीय प्रयास करना।

वाणी फ़ाउण्डेशन की ओर से विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतवर्ष के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम से कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत हाशिए पर है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के इतिहास के मध्य भाषिक और साहित्यिक सम्बन्धों के आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।

वाणी फ़ाउण्डेशन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है भारतीय भाषाओं से हिन्दी व अंग्रेजी में श्रेष्ठ अनुवाद का कार्यक्रम। इसके साथ ही इस न्यास के द्वारा प्रतिवर्ष डिस्टिंगविश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड भी प्रदान किया जाता है जिसमें मानद पत्र और एक लाख रुपये की राशि अर्पित की जाती हैं। वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान प्रतिष्ठित अनुवादक, लेखक, पर्यावरण संरक्षक तेजी ग्रोवर को दिया गया है।

विस्तृत जानकारी के लिए हमें ई-मेल करें [email protected]

या वाणी प्रकाशन के इस हेल्पलाइन नम्बर पर सम्पर्क करें : +919643331304

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