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अपने भतीजे प्रह्लाद को बचाने के लिए होलिका ने अपना बलिदान कर दिया था

फागुन पूर्णिमा के दिन वैदिक काल के ‘वासंती नव-सस्येष्टि यज्ञ ‘ में नए अन्न को यज्ञीय ऊर्जा से संस्कारित कर उसे समाज को समर्पित करने का भाव था।

समष्टिगत कल्याण के लिए, तारकासुर के आतंक को मिटाने के लिए, व्यक्तिगत हितों को निस्पृह भाव से बलिदान करने वाले, भगवान शिव के कोप को सहते कामदेव को प्रतिष्ठा देता – मदन-दहन !! एवं अपनी ही संतान “प्रह्लाद” के समष्टिगत कल्याण भाव की, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ व अहंकार के लिए बलि चढ़ाने वाले हिरण्यकशिपु द्वारा होलिका-दहन !!

हिमाचल प्रदेश में होलिका दहन की कथा ऐसी प्रेमकथा है जिसमें होलिका अपने प्रेम के लिए सर्वस्व बलिदान कर देती है । युगों से प्रचलित इस कथा के अनुसार , दैत्य कुल की कन्या, परम शक्तिशाली दैत्यराज हिरण्यकशिपु की बहन होलिका और पड़ोसी राज्य के सर्वगुण संपन्न इलोजी। इस सौंदर्यवान युगल को जन – साधारण प्रशंसापूर्ण दृष्टि से देखते थे। उनका विवाह का दिन फागुन पूर्णिमा निश्चित किया गया था।हिरण्‍यकश्‍यप जो अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद को समाप्त करने के कई प्रयासों में असफल हो चुका था। वो जानता था कि उसकी अग्निपूजक बहन होलिका, अग्नि के दुष्प्रभावों से मुक्त थी।

हिरण्यकशिपु को प्रह्लाद से मुक्ति का सफल उपाय दिखाई दिया उसने बहन को बुलाकर अपनी योजना को कार्यान्वित करने को कहा।योजना के अनुसार होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठैगी, वो बच जाऐगी प्रहलाद समाप्त हो जाएगा। भतीजे के वध के बारे में सुन कर होलिका चकित रह गई। एक पल को वह कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। वह प्रहलाद से बहुत प्रेम करती थी। ऐसे में उसने इस कार्य को करने से मना कर दिया। इतना सुनते ही हिरण्‍यकश्‍यप ने होलिका से कहा कि यदि उसने प्रह्लाद का मृत शरीर उसे नहीं सौंपा तो वह विवाह के लिए आने वाले उसके प्रेमी इलोजी को भयानक मृत्यु देगा।

अपने प्रेमी और भतीजे को बचाने के लिए होलिका नें अपने तप के द्वारा मूक भाव से आत्मबलिदान दिया और कोई कुछ भी नहीं जान पाया।

हिमाचली लोककथा के अनुसार, होलिका एक ऐसी प्रेमिका है जिसने अपने प्रेम को बचाने के लिए स्‍वंय की बलि दे दी। उनके प्रेमी इलोजी जब फागुनी पूर्णिमा को विवाह के लिए आए तो अपनी प्रेमिका की चिता देख आपा खोकर वहीं लेट गए। चिता की राख शरीर पर लपेट कर इलोजी नें विलाप किया। लोगों नें पानी से उनके शरीर की राख को हटाने का प्रयास किया पर इलोजी बार-बार राख अपने ऊपर मल लेते थे।उसकी याद में हिमाचल में आज भी कई स्थानों पर राख व कीचड़ एक दूसरे पर मल कर होलिका के बलिदान को याद करते हैं।राजस्थान के मारवाड़ में , हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका के होने वाले पति इलोजी राजा को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है।

इलोजी के बारे में ऐसी मान्यता हैं कि आजीवन होलिका की स्मृति में एकाकी तपस्वी का जीवन जीने वाले ये लोक-देवता, दम्पत्तियों को सुखद गृहस्थ जीवन और संतति परंपरा को बढ़ाने का वरदान देने में सक्षम हैं।

मैं सोचती हूँ कि अनिर्णय के क्षणों में, जीवन को किस राह पर ले जाएँ, इसके सहजता से चुनाव के लिए हमारे पूर्वजों नें हमें कितनी सुंदर विरासत दी है । हमारी संस्कृति नें देवता हों या दैत्य सबके जीवन से प्रेरणा देती घटनाओं को अपनी पारंपरिक स्मृतियों में जीवंत रखा है।

आज की पावन अग्नि हम सबके संकल्पों को पावन बनाए। शुभेच्छाएँ।

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(लेखिका डॉ स्वर्ण अनिल जानी मानी शिक्षाविद, शिक्षक, लेखिका, कलाकार, हिंदी,कंप्यूटर एवं संस्कृति अध्येता और वक्ता हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन – निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक एवं कलाकार के रूप में व भारत सरकार के मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दी है। सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक साहित्यिक व समसामयिक मुद्दों पर विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखन कर रही है। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।)