1

ये कैसे किसान हैं?

पहले दिन से ये तथाकथित किसान और उनके सरगना इसी की फ़िराक में थे। हालात इनके हाथ से निकल गए-यह कहना सफ़ेद झूठ है। बल्कि सच्चाई यह है कि ये दंगा इनकी सुनियोजित साज़िश का हिस्सा है। और देश के साथ साज़िश एवं दंगे के आरोप में योगेंद्र यादव, दर्शनपाल और राकेश टिकैत समेत उन तथकथित चालीस किसान संगठनों के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा लगाना चाहिए।

इन्हें किसान कहना बंद करना चाहिए। ये किसान नहीं गुंडे, उपद्रवी, दंगाई और आतंकी हैं। और गुंडे और दंगाइयों से जिस भाषा में बात की जानी चाहिए अब इनसे इसी भाषा में बात की जानी चाहिए।

हाथों में लाठी और तलवारें लेकर पुलिस पर, महिलाओं पर, बच्चों पर, आम नागरिकों पर हमला करने वाले सहानुभूति के पात्र नहीं, वे किसान नहीं, अन्नदाता नहीं। लालकिले पर चढ़कर तिरंगे का अपमान करने वाले, गणतंत्र-दिवस के दिन संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले कतई किसान नहीं!

और अब इन ‘मी लॉर्डों’ को भी वातानुकूलित कक्षों में बैठकर कुछ भी फ़ैसला सुना देने से पहले नतीज़ों पर विचार करना होगा। क्या उन्हें मालूम नहीं था कि प्रदर्शन में आकर वे कलमा नहीं पढ़ेंगें, सज़दा नहीं करेंगें? क्या उन्हें नहीं पता था कि ट्रैक्टर पर रैलियाँ निकालने वाले लोग हल्ला-हुड़दंग-दंगा भी कर सकते हैं? फिर किस आधार पर उन्होंने इन्हें प्रदर्शन की अनुमति दी? रैली निकालने की अनुमति दी?

और जो-जो राजनीतिक दल, सूडो सेकुलर, तथाकथित बुद्धिजीवी इन कथित किसानों का समर्थन कर रहे थे, वे सभी इन गुंडों-दंगाइयों-आतंकियों के काले करतूतों में बराबर के हिस्सेदार हैं। राष्ट्र को इन्हें भी अच्छी तरह से पहचान लेना चाहिए। ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं। गुंडों-दंगाइयों-आतंकियों के पैरोकार हैं। ये वो दुमुँहे साँप है जिन्हें केवल डँसना ही आता है। केवल विष फैलना ही आता है।

अब पुलिस-प्रशासन को बल प्रयोग कर इनसे निपटना चाहिए। यह लोकतंत्र और राजधानी को बंधक बनाने की साज़िश है। ये लोग न जन हैं, न जन हैं। ये वे हैं जो मोदी से राजनीतिक रूप से लड़ नहीं पाए। जो लोकतांत्रिक तरीके से हार गए, वे अराजक तरीके से सत्ता पर काबिज़ होना चाहते हैं। चुनी हुई लोकप्रिय सरकार को अलोकप्रिय और अस्थिर करना चाहते हैं। पूरी दुनिया में भारत की छवि को बदनाम कर विकास को हर हाल में रोकना चाहते हैं। वे उभरता हुआ आत्मनिर्भर भारत स्वीकार्य नहीं। उन्हें कोविड की चुनौतियों से सक्षमता से लड़ता हुआ भारत स्वीकार्य नहीं। उन्हें चीन से उसकी आँखों-में-आँखों डालकर बात करता हुआ भारत स्वीकार्य नहीं। इसलिए ये न केवल मोदी के विरोधी हों, ऐसा भी नहीं। ये भारत के भी विरोधी हैं। इन्हें एक भारत, श्रेष्ठ भारत, सक्षम भारत, समर्थ भारत स्वीकार नहीं। यदि अभी भी हम नहीं जागे तो फिर कभी नहीं जागेंगे। यह सच्चे देशभक्त लोगों का, देश का विकास चाहने वाले लोगों के एकजुट रहने का समय है। यह अपनी सरकार को कोसने का नहीं, उसके साथ दृढ़ता के साथ खड़े होने का वक्त है।

प्रणय कुमार