Saturday, April 20, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेभारत में ‘लावण्या’ जैसी कितनी मासूम धर्मांतरण का शिकार होती रहेगी?

भारत में ‘लावण्या’ जैसी कितनी मासूम धर्मांतरण का शिकार होती रहेगी?

तमिलनाडु के एक ईसाई मिशनरी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ रही एक बालिका द्वारा आत्महत्या किये जाने के मामला विगत कुछ दिनं में सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है । तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया में इस पर चर्चा न के बराबर थी । लेकिन सोशल मीडिया में यह मामला जोर सोर से आने बाद अब तथाकथित मेन स्ट्रीम मीडिया भी कुछ दिखने लगा है । इस 17 साल की लडकी की आत्महत्या की घटना ने भारत की सेकुलरिजम, भारत की शासन व्यवस्था किस ढंग से हिन्दू विरोधी है उसको बेनकाब कर दिया है ।

यह घटना तमिलनाडु के तंजाबुर जिले की है । जिले के थिरुकटापली में एक ईसाई मिशनरी संस्था द्वारा संचालित एक स्कूल है जिसका नाम सक्रेड हार्ट स्कूल । वैसे तो सक्रेड हार्ट का मतलब पवित्र हृदय होता है लेकिन इस स्कूल का हृदय बिल्कुल भी पवित्र दिखाई नहीं देती । इस स्कूल में एम. लावण्या नामकी लडकी अध्ययन कर रही थी । इसी स्कूल के पास ही मिशनरियों द्वारा संचालित सेंट माइकल बालिका छात्रावास है जहां पर वह रह रही थी।

ईसाई मिशनरी संस्थाएं लोगों की सेवा करने का दावा करती हैं । आम तौर पर भारत के लोग यह मानते हैं कि सेवा का मतलब निस्वार्थभाव से किसी की सहायता करना । लेकिन मिशनरियों की सेवा इस तरह की सेवा नहीं होती । उनकी सेवा का मतलब है कि कुछ लोगों की सहायता कर उन्हें अपने पूर्वजों, अपनी संस्कृति व अपने जडों से काटना तथा उनके गले में सलीव लटकाना । लावण्या के मामले में भी मिशनरी संस्थाओं ने इसी तरह की सेवा की ।

इन मिशनरी संस्थाओं के अधिकारियों ने इस नाबालिग लडकी पर क्रिश्चियनिटी में कनवर्ट होने के लिए बार बार दबाव बनाया। लेकिन लावण्या ने अपनी संस्कृति अपने पूर्वजों को छोडने से साफ मना कर दिया । इसके बाद स्कूल व होस्टल प्रशासन ने उनका प्रताडित करना शुरु कर दिया । वह पोंगल पर घर जाना चाहती थी । उसे जाने की अनुमति नहीं दी गई । उसे टायलेट व वर्तन साफ करने के लिए कहा गया । उत्पीडन इतना बढ गया कि उसने जहर पीकर आत्महत्या कर ली। लेकिन वह ईसाइयत में कनवर्ट नहीं हुई ।

अपनी मौत से कुछ समय पूर्व लावण्या का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वाइरल हो रहा है। हालांकि वह तमिल में बोल रही थी। उसने जो कहा यदि उसका अनुवाद किया जाए तो इस प्रकार होगा । मेरा नाम लावण्या है । वे (स्कूल) वाले मेरे माता पिता की उपस्थिति में कहा था कि मुझे क्रिश्चियनिटी में कनवर्ट करना है । इससे वे मेरी पढाई मे आगे सहयोग देगे । मैने उनकी बात नहीं मानी । इस कारण मेरा उत्पीडन किया जा रहा था ।

यह वीडियो सामने आने के बाद उस मिशनरी स्कूल के काला कारनामा सामने आ गया है । लावण्या को किस स्तर का उत्पीडन किया होगा जिससे वह आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर हुई होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है । इसे आत्महत्या माना जाए या हत्या ?

वैसे ईसाई मिशनरियों के इतिहास के बारे में जो जानता है उसे पता है कि यह उनके लिए किसी प्रकार की नई बात नहीं है। प्रेम, करुणा व सेवा की बातें करने वाले मिशनरी संस्थाओं का इस तरह के काले कारनामों की लंबी सूची मिल जाएगी । यदि हम तमिलनाडु का ही उदाहरण लें तो ऐसे ढेंरों उदाहरण मिल जाएंगे ।

स्थानीय तमिल मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2006 के नवंबर के माह में कैथोलिक मिशनरिज द्वारा संचालित एक स्कूल में सुकन्या नामक छात्रा की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई थी । लोगों में इसे लेकर बढ रहे गुस्से को देखते हुए उस समय के स्थानीय डीएमके मंत्री ने स्कूल के एक कर्मचारी का स्थानांतरण करने के लिए कहा था जिसे चर्च ने यह कह कर अस्वीकार दग दिया कि उनकी संस्था अल्पसंख्यक संस्था है । बाद में 2007 में फारेनसिक जांच में छात्रा के साथ यौन उत्पीडन किये जाने की पुष्टि हुआ थी । इसी तरह 2009 के फरवरी माह में मिशनरी स्कूल में पढने वाली एक 12 साल की छात्रा रंजीता ने आत्महत्या कर ली थी । वह स्कूल में बाइबेल ठीक से नहीं पढ पायी थी और उसके टीचर उसका इस कारण लगातार अपमान कर रही थी। इस कारण बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी ।इसलिए यह मामला केवल एक लावण्या का नहीं है । सेवा, प्रेम व करुणा की बातें करने वाली संस्थाओं के मजहबी उन्माद ने अनेक लावण्याओं की लील लिया है ।

गोवा में जब पुर्तगालियों का शासन था तब वहां के निवासियों को क्रिश्चियनिटी में कनवर्ट होने के लिए किस ढंग से उत्पीडन किया जाता था उस संबंध मे आज भी पढने पर शरीर कांप उठता है । गोवा इनक्वुजिसन के नाम से यह कुख्यात है ।

यहां एक सवाल आता है । तब हम गुलाम थे । लेकिन अब हम स्वतंत्र हैं । अब किसी ईसाई देश के हम गुलाम नहीं है । स्वतंत्रता के इतने साल बीत जाने के बाद भी भारत के हिन्दुओं की स्थिति वैसी क्यों है । पर्तुगाली शासन काल में जिस ढंग से भारतीयों पर अत्याचार हो रहा था, वैसी समान स्थिति आज भी क्यों है । इसमे परिवर्तन क्यों नहीं आया है । चर्च व मिशनरी संस्थाओं के मजहबी उन्माद के कारण उस समय भी जानें जा रही थी और आज भी लावण्याओं की जानें जा रही है । क्या भारत के लोगों को अपने पूर्वज, अपनी सभ्यता, संस्कृति की रक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है । लावण्या की मौत ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है ।

‘मेरा ईश्वर ही श्रेष्ठ है तथा तुम्हें मेरे रास्ते पर आना ही होगा । तुम्हें मेरे रास्ते पर लाना मेरा मजहबी ड्यूटी है । ’ यही भावना इसके पीछे का मूल कारण है । महात्मा गांधी इस भावना को भलीभांति पहचानते थे । उन्होंने कहा था कि मेरे पास सत्ता होती तो चर्च का मतांतरण का सारा धंधे को ही बंद कर देता । लेकिन हम गांधी जी की इस बात की अनदेखी करते आ रहे हैं । अब जब देश स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव मना रहे हैं तब गांधी जी की बात को मान कर पूरे देश में कनवर्जन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए। अन्यथा इस मजहबी उन्माद के कारण लावण्याओं की जानें जा रही थी, अब भी जा रही हैं और आगे भी जाती रहेगीं। यह बात हमें समझनी चाहिए ।

Attachments area

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार