Friday, March 29, 2024
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अपने मकसद में कितना कामयाब रहा फिक्की फ्रैम का सालाना जलसा

फिक्की फ्रेम्स फेडरेशन आफ चैम्बर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज और भारतीय फिल्म जगत की साझा वार्षिक पहल है, यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जिस पर फिल्म और मनोरंजन जगत के प्रतिनिधि, फेडरेशन के दिग्गज और सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के प्रमुख एकत्रित हो कर समस्याओं पर चर्चा करते हैं और सरकार को अपनी रीति नीति की दिशा तय करने में मदद मिलती है। बहुत लोगों को शायद यह सुन कर हैरानी होगी कि धीरे धीरे करके भारतीय मनोरंजन उद्योग का अर्जन डॉलर 17 बिलियन यू एस डॉलर तक पहुँच गया है, इसी के साथ अब यह व्यवसाय कोई 19 लाख रोजगार अवसर प्रदान कर रहा है। यही वजह है पिछले दस वर्षों में यह इवेंट देखा जाय तो एशिया की इस प्रकार की सबसे बड़ी इवेंट बन गयी है जिसमें हालीवूड से लेकर ब्रिटिश, कनाडा , ऑस्ट्रेलिया मनोरंजन के नामचीन लोग अपने लिए संभावना तलाशने के लिये शामिल होते हैं। 

इस बार ऐसा लगा कि दुनिया भर के लोगों को तो बालिवुड और भारतीय मनोरंजन व्यवसाय वेहद महत्वपूर्ण लगता है लेकिन अपनी ही सरकार को विशेष चिंता नहीं है, गौर तालाब बात यह है कि अरुण जेटली, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री, जर्नल वी के सिंह , विदेश राज्यमंत्री डा राहुल खुल्लर अध्यक्ष ट्राई , बिमल जुल्का, सचिव केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, देवेन्द्र फड़नवीस, मुख्य मंत्री महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण सरकारी लोग आमंत्रित किये जाने के वावजूद परिदृश्य पर नहीं दिखाई दिए. सुचना मंत्रालय के एक अवर सचिव को भेज कर सरकारी कर्तव्य की इतिश्री समझ ली गयी. शायद यही वजह है कि मनोरंजन जगत के महत्वपूर्ण लोगों के चेहरे पर सरकारी पहल को ले कर हताशा साफ़ दिखाई दी. इन दिनों दुनिया भर में सरकारें अपने देश की आमदनी बढ़ने के लिए पर्यटन पर फोकस कर रही हैं , इस के लिए अपने यहाँ शूटिंग के लिए फिल्म निर्माताओं को सब्सिडी, निर्बाध शूटिंग अनुमति , आवश्यक मूल बहुत ढांचा प्रदान करने की होड़ में दिखती हैं , अपने यहाँ हाल यह है कि बाहर के देशों की फिल्मों की बात कौन करे , अपने ही निर्माताओं को विवश हो कर शूटिंग के लिए बाहर जाना पड़ता है। मुझे इस प्रसंग में राकेश रोशन, ऋतिक रोशन की कृश श्रंखला की पहली फिल्म की याद आ गयी , वे लोग कहानी की डिमांड के अनुसार नैनीताल में शूटिंग के लिए गए, वहां स्थानीय प्रशासन और स्थानीय जनता ने क्रू को इतना सताया कि शूटिंग बीच में ही छोड़ कर आना पड़ा , बाकी शूटिंग कनाडा जा कर बिना किसी परेशानी के पूरी की और जहाँ तक मेरा ख्याल है इस के लिए वहां की सरकार ने सब्सिडी भी दी। 

फिल्म टूरिज्म की क्षमता के दोहन विषय पर आयोजित सत्र में माइक एलिस, अध्यक्ष , एशिया पैसिफिक मोशन पिक्चर एसोशिएशन , कालीन बॉरोज , प्रमुख स्पेशल ट्रीट प्रोडक्शंस , रिचर्ड बेले , कनाडा के मुंबई स्थित काउंसिल जनरल , थॉमस एल वाजदा, अमेरिका के मुंबई स्थित काउंसिल जनरल शामिल थे, वहीं फिल्म जगत की और से फिल्म और टीवी प्रोडूसर्स गिल्ड के अध्यक्ष मुकेश भट्ट शामिल थे. चर्चा में वालसा नैयर सिंह मुख्य सचिव पर्यटन एवं संस्कृति , महाराष्ट्र शासन आमंत्रित किये जाने के वावजूद शरीक नहीं हुए. जहाँ माइक एलिस और रिचर्ड बेले ने हॉलीवुड की अनेक फिल्मों के कनाडा और विशेषकर वहां के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य में शूटिंग किये जाने से इस क्षेत्र में पर्यटन की आय में वृद्धि के बारे में बताया.यही नहीं केन्द्रीय यूरोप के चेक गणराज्य , हंगरी , बुल्गारिया , क्रोशिअ और खूबसूरत माल्टा भी फिल्मों को शूटिंग के लिए सब्सिडी और अन्य सुविधा प्रदान कर रहे हैं। जब मुकेश भट्ट की बारी आयी तो उन्होंने सीधे सीधे भारत सरकार को आइना दिखा दिया। उनका कहना है की फिल्म को शूटिंग की अनुमति देने के मामले में सरकार के विभिन्न विभाग जिस तरह से फिल्म वालों को परेशान करते हैं और जिस तरह का भ्रष्ट आचरण करते हैं वह बहुत ही उबाऊ, थका देने वाला है, नतीजन फिल्म बनाने की कीमत बढ़ जाती है और समय भी ज्यादा लगता है। 

उन्होंने स्पष्ट कहा कि याही कारण है कि देश में बेहतरीन लोकेशन होने के वावजूद ज्यादातर निर्माता विदेशों में शूटिंग करना पसंद करते हैं , अपना उदाहरण देते हुए बताया कि वे स्वयं पिछले बीस वर्षों में 35 देशों में शूटिंग कर चुके है जहाँ उन्हें अपने शेडूल के अनुसार बिना किसी परेशानी के काम करने का मौक़ा मिला। मुकेश का कहना है कि यदि सरकार स्थिति को लेकर ज़रा भी गंभीर है तो फिर फिल्म कमीशन का गठन करे जिसमें राजनैतिक लोग न रखें जाएँ। राज्य सरकारें ऐसे ही राज्य स्तर पर कमीशन गठित करें , कमीशन आवयशक परमिशन प्रदान करने के लिए सिंगल विंडो के रूप में काम करें। विदेशी फिंकारों को भी अनुमति देने के मामले में त्वरित निर्णय लिए जाए. इस पर श्रोताओं में से हेमंत संगानी ने उनसे पूछा कि जहाँ एक और भारतीय फिल्म निर्माता विदेश में शूट करने जाते हैं तो वहां के वेहतऱीन दृश्यों को कैद करते हैं वहीं विदेशी निर्माता भारत आ कर यहाँ की केवल गंदगी ही शूट करने आते हैं ऐसा क्यों ? इसका उत्तर भी सब्सिडी में छुपा हुआ है।

लेखक वरिष्ठ फिल्म व संगीत समीक्षक हैं -ये लेख उनके चर्चित ब्लॉग http://desireflections.blogspot.in/  से साभार लिया गया है 

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