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शिकारी का अधिकार” व्यंग्य पर साहित्य बगिया में चर्चा

नरेश जी ने कहा कि आरिफा जी का व्यंग वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की वास्तविक अभिव्यक्ति प्रतीत होता है-नागनाथ ,साँपनाथ जैसी उपमाओं को राजनीतिक दलों से अपनी सुविधानुसार जोड़कर देखा जा सकता है !अच्छे व्यंग्य के लिये रचनाकार को बधाई और आभार”

सुशीला जोशी जी ने कहा कि “आरीफ़ा जी का व्यंग पढ़ा जो राजनीतिक व्यवस्था पर है .व्यंग अपने आप में पूर्ण है किंतु आरिफ़ा जी न्याय व्यवस्था को खत्म करना शायद जँगल राज में जानवरों द्वारा ही सम्भव है जहाँ जानवर तन्त्र राज करता है लेकिन राजनीति में आज भी न्याय व्यवस्था के फैसलों पर राजनीति चलती दिखाई दे रही हैं जहाँ जंगल राज पैर पसारता है वहीँ न्याय की शरण रास्ता दिखती है चाहे वह भी खरीदी हुई हो या प्रभावित .अच्छा होता यदि अपने व्यंग में जँगल राजतन्त्र में जानवरों के कुछ सख्त फैसलों को शामिल करते जैसे किसी पर निर्भर न रहना , स्वतन्त्र निर्णय लेना , किसी से कुछ भी आशा न रखना , अपना शिकार स्वयं करना , किसी भी मौसम में कपड़े न पहनना , शिकार का सबको मौका देना , ताकतवर को ही जिन्दा रहने का हक होना और मरते दम तक औरों के लिये खड़े रहना , किसी प्रजाति के मांस के अतिरिक्त दूध न पीना और अपने ही झुण्ड में रहना आदि बातों पर भी व्यंग में विचार होता तो अधिक चुटीला होता”

भावना सिंह जी ने लिखा है कि “आरिफा जी जंगलराज के नियम कानून से भली प्रकार परिचित कराता व्यंग्य बहुत स्तरीय लगा
आरिफा जी उम्दा लेखन”

अमित सिंह ने लिखा है कि “लोगों के दिल में अपने लिए प्यार पैदा न कर पाने की कमी को साजिश और सत्ता की ताक़त से पूरा करने का रिवाज पुराना है.लेकिन हुक्मरानों का यह खेल तभी तक चलता है जब तक लोग बिखरे होते हैं.जब लोगों में एकजुटता आती है तो जुल्म और अन्याय का खेल खेलने वाले उसी हाल में होते हैं जैसे कोई बूढ़ा शेर असमर्थ होकर भूखे-प्यासे अपनी मृत्यु की तरफ तिल-तिल बढ़ता हो और उसमें इतनी ताक़त भी न बची हो कि अपने जख्मों पर भिनभिनाती मक्खियों को भी उड़ा सके. बहुत ही अच्छे तरीके से आरिफा जी ने व्यंग्य के माध्यम से जंगलराज को दिखलाया है बहुत खूब”

प्रहलाद श्रीमाली ने लिखा है कि आरिफा जी को अच्छी व्यंग्य रचना के माध्यम से जन गण को राजनीति और व्यवस्था की विसंगति के प्रति सजग रहने का संकेत देने के लिए धन्यवाद शुभकामनायें बधाई!”

फिरोज आलम ने लिखा है कि “जंगल राज मतलब भय और डरा धमकाकर चलने वाला राज* , ऐसा राज बहुत दिनों तक चलता है क्योंकि इसको समर्थन देने वाले और फायदा उठाने वाले की संख्या धीरेधीरे बढ़ने लगती है. जहाँ पर जंगलराज होता है वहाँ पर हर बड़ा जानवर अपने से छोटे को डराकर खुद को राजा समझता है जिससे उस जंगल का राजा बेफिक्र होकर और भी निरकुंश हो जाता है और कमजोर भुक्तभोगी वर्ग राजा को छोड़कर उसके चमचों से बचने और लड़ने की असफल कोशिश करते रहते हैं. जंगल राज चलता रहता है.आरिफा जी का व्यंग्य वर्तमान शासनव्यवस्था पर तीखा प्रहार करता है और लोकतंत्र को किसी ना किसी रूप में राजतंत्र के रूप में देख रहा है।

सरल शब्दों में आज के शासन और न्याय प्रणाली पर घातक प्रहार करके चेतनायुक्त व्यंग्य लिखने के लिए बहुत बहुत बधाइयां”

*फिरोज आलम जेन ने लिखा है कि “आरिफा जी का लेख आज की राजनीतिक और न्याय व्यवस्था पर प्रहार है. जंगलराज के माध्यम से वर्तमान राजनीतिक विसंगतियों पर सटीक व्यंग्य हेतु आरिफा जी को बधाई”

अवधेश सिंह ने लिखा है कि “आरिफा जी का व्यंग्य प्रयास के तौर पर काबिले तारीफ है. विषय नया नहीं है .इस कथ्य और पृष्ठभूमि पर पहले भी व्यंग्य कथाएं लिखी गई हैं ॥व्यंग्य दोधारी तलवार है और उसे कहन के स्तर पर उन्होंने अच्छा साधा है .लेकिन अतिरिक्त विस्तार से व्यंग्य का चुटीलापन कमजोर पड़ता है .यह कमजोरी इस व्यंग्य में भी है । मुबारकबाद इस बात के लिए कि उन्होंने एक कठिन विधा को चुना है और संभावनाएं दिखती हैं .”