Saturday, April 20, 2024
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रवीश जी मैने आपको 41 मिनट सुना, मेरे 883 शब्दों को बस 5 मिनट पढ़ लीजिए

रवीश जी, आपके ब्लॉग से प्रेरणा लेकर 2010 में ब्लॉगिंग शुरु की थी, आपकी ही वजह से सालों बाद आज वापस आ रही हूं

चलिए मान लिया कन्हैया उमर खालिद सब सही हैं गद्दार वो हैं जिन्होने उन्हे गद्दार बनाकर इस देश पर थोप दिया लेकिन महोदय क्यों आप देश के टुकड़े टुकड़े करने का दावा करने वाले उन नारों पर कुछ नहीं बोलते, बल्कि ये बताते हैं कि जब कश्मीर में ये नारे दशकों से लगते रहे तो जेएनयू में क्यों नहीं लग सकते?

आप उन चैनलों से पूछते हैं कि अगर वीडियो फर्जी निकल गया तो क्या फिर से वह उतने ही घंटे चिल्ला चिल्लाकर प्रोग्राम चलाएँगे जितने कन्हैया के विरोध में चलाए गए—मै आपसे पूछती हूँ रवीश जी कि हेडली की गवाही के बाद ये सच सामने आने के बाद कि इशरत जहाँ फिदायीन थी आपने कितने घंटे अपनी कुटिल मुस्कान और मध्यम आवाज़ में Prime Times किए?

या फिर आपके ही दोस्तों बरखा, सागरिका और राजदीप (जिनके नाम आप 41 मिनट में में कई बार दोहराते रहे) ने कितने घंटे के कार्यक्रम चलाए जब एक दशक तक मोदी को गुजरात दंगो का अपराधी बताने वाले आपलोगों के एजेंडे को धता बताते हुए न्यायपालिका ने उन्हे क्लीन चिट दे दिया? अर्णब और दीपक चौरसिया को नीचा दिखाकर खुद को महान साबित करने की जो कोशिश आपने कल की वो तब अपने इन दोस्तों के खिलाफ भी की होती जो SC के फैसले को भी दरनिकार करते हुए आजतक 2002 दंगों में मोदी को घसीटते रहते हैं. लेकिन आपने ऐसा नहीं किया तो क्या ये मान लिया जाना चाहिए कि आपकी भी मौन सहमति इसमें थी?

उमर खालिद को भागना नहीं चाहिए था आप ये कहते हैं लेकिन अपने इस 41 मिनट के भाषण में 2011 में यूपीए सरकार के तत्कालीन गृहराज्यमंत्री जितेंद्र सिंह का संसद में दिया गया वह लिखित जवाब क्यों नहीं दिखाते जिसमें यूपीए सरकार ने 23 संगठनों को ‘Naxal Outfit’ का दर्जा देते हुए उन पर प्रतिबंध लगा होने को माना था. क्यों नहीं बताते कि उन 23 संगठनों में आपके उमर खालिद का DSU भी था. आप कहीं भी ये ज़िक्र तक क्यों नहीं करते कि 3 फरवरी से 9 फरवरी के बीच उमर खालिद के फोन से किए और रिसीव किए गए 800 calls का क्या कारण था? वह 800 कॉल पाकिस्तान, कश्मीर, खाड़ी देशों और बांग्लादेश को क्यों किए गए?

आप भारत के संविधान की दुहाई देते हुए ये बताते हैं कि क्यों सेक्युलर होना गुनाह नहीं है, सबको बोलने का हक है. सहमत हूँ बिल्कुल नहीं है. लेकिन घुटने पर ज़रा ज़ोर डालिए और याद कीजिए संविधान के मुताबिक ‘Contempt of Court’ की वो परिभाषा जिसके दायरे में ‘Judicial Killing’ शब्द आता है और जिस पर 9 फरवरी का वह कार्यक्रम आयोजित किया गया था. बड़ी चतुराई से आप ये छुपा जाते हैं कि अब अदालत की अवमानना के आरोप में आपके प्यारे कन्हैया, उमर खालिद औऱ गिलानी को सुप्रीम कोर्ट में ये सफाई देनी होगी कि कैसे वह देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को धता बता कर उसके खिलाफ कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं.

खुद को महान दिखाने की कोशिश में आप बार बार ये बताते हैं कि बाकी चैनलों के जैसा कभी आपने भी किया होगा. उनकी तरह कभी आप भी आरुषि केस में जासूस बने होंग या कभी जज. सही है…लेकिन अच्छा होता Times now n India News के archive रखने के साथ साथ आप अपने भी Archive से कभी उन prime times की क्लिप निकाल कर हमें सुना देते जहाँ आप कभी काँग्रेस के तो कभी वामियों के प्रवक्ता की तरह व्यवहार करते हैं.

अरे रवीश कुमार, अर्णब और दीपक में हिम्मत तो है स्टैंड लेने की जो कभी बीफ मामले पर, तोगड़िया और आदित्यनाथ के भड़काउ बयानों पर बीजेपी के विरोध में होता है तो कभी कांग्रेस और वामियों की दोहरी राजनीति पर उनके विरोध में या फिर अरविंद केजरीवाल की कथित स्वच्छ राजनीति की परतें उधेड़ने की. आप घुटनों को थपथपाइए और याद कीजिए कि आपने ऐसा आखिरी बार कब किया था? कब आखिरी बार आपके अंदर का बीजेपी विरोधी प्रवक्ता (पार्टी बदल सकती है) एंकर के खोल से बाहर निकला था ?

एक वक्त वो भी था जब 2008 में महज़ 12 हज़ार की पहली सैलरी से 8 हज़ार रुपए का टीवी और 2100 रुपए का टाटा स्काई मैने सिर्फ इसलिए खरीदा था ताकि रवीश की रिपोर्ट देख सकूं. केबल कनेक्शन लेकर 1900 रुपए बचाए जा सकते थे लेकिन वह नहीं बचे क्योंकि केबल पर NDTV नहीं आता था. एक समय ये है जब आखिरी बार NDTV कब देखा था मुझे घुटना थपथपाने पर भी शायद याद न आए.

जाइए उन्हे अपनी इस भर्राई आवाज़ से बरगलिए जो ये जानते न हों कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करने वाले रवीश कुमार ने अपने एकाउँट से पश्यन्ती शुक्ला को 4 साल पहले सिर्फ इसलिए unfrnd कर दिया था क्योंकि कमेंट में जहाँ तारीफें सुनने की आदत रही हो वहाँ एक निम्न पत्रकार ने ये लिख दिया था कि- ‘सर आपसे सहमत नहीं हूँ, आप चाहें तो तर्क प्रस्तुत करूँ’

उन्हें अपने मासूम होनें की सफाई दीजिए जिनसे आपने 2010 की कुंभ की रिपोर्टिंग के दौरान मनसा देवी की पहाड़ी पर ये न कहा हो कि मै आधा बिहारी, आधा बंगाली हूँ और बंगाल का मतलब मुझपर वामपंथ का प्रभाव है. ये अलग बात है कि वामपंथ को आप सेक्युलर की श्रेणी में खड़ा करते हैं, और दक्षिणपंथियों को संघी कहकर बदनाम करते हैं.

जाइए जाकर उन्हे उल्लू बनाइए जो ये जानते न हों कि आप कितने ‘घाघ’ हैं,

साभार- http://pashyantishukla.blogspot.in/ से

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16 COMMENTS

  1. Aap jo bhi hai bhais ke aage been baja rahe hai.
    Raveesh ji bahut bade patrakaar ho gaye hai .
    Vaise bhi jayada unchai se sab chota hi nazar aata hai.

  2. बेहतरीन पश्यन्ती !
    जनमानस इन भेड़ की खाल पहने भेडियों को अनावृत्त कर ही देगा , आभासी जगत इसके लिये एक बहुत बड़ा प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध करा दिया है ! जहाँ देश की बात आयेगी वहाँ इनके सारे तर्क कुतर्क हैं !

  3. रवीश के पूरे कार्यक्रम का लब्बोलुआब ये था कि एक पत्रकार का काम ललकारना नहीं है, फटकारना नहीं है, धमकाना नहीं है, दुत्कारना नहीं है, उकसाना नहीं है, सिर्फ पूछना है, अंत अंत तक पूछना है लेकिन आजकल पत्रकार यही नहीं कर रहे। रविश ने किसी का न तो पक्ष लिया अौर ना विरोध किया, बस पत्रकारों को यही कहने की कोशिश की है कि वो पूछें। मैं रविश का इसलिये कायल हुँ क्योंकि वो प्राइम टाइम में अंत अंत तक पूँछते हैं जबकि अर्नब खुद जज बन जाते हैं पहले से स्वयं पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर निर्णय कर लेते हैं कि कौन ग़लत है कौन सही अौर जिसे वो ग़लत सोच लेते हैं उससे बस यही कहते हैं कि आज रात आप बोल दीजिये कि आप ग़लत हैं अगर वो अपनी सफाई देता है तो अर्नब देने नहीं देते। स्टूडियो में बुलाकर बेइज्‍जत करना उन्हे शोभा देता है जबकि भारत की ये परंपरा कभी नहीं रही। वो हमें उत्तेजित करते हैं इसलिये हम उन्हे पसंद करते हैं यह मानव पृवत्ति है कि हमें उत्तेजना हमेशा रास आती है भले ही वो कहीं भी हो।
    अगर यही मीडिया 1948 में होता तो नाथूराम गोडसे के साथ वीर सावरकर को भी गाँधी का हत्यारा बता चुका होता। भीड़ ने वीर सावरकर को पीट पीटकर मार डाला होता।
    आप समझने की कोशिश करें कि रवीश ने ये कहा है कि मीडिया जज बनकर भीड़ को उत्तेजित ना करे। ये काम न्यायालय पर छोड़ दे। सरकार का काम सरकार पर छोड़े।
    कृपया उस चश्मे को उतारें जिसका ज़िक्र किया गया है फिर लिखें।

  4. और …अभिव्यक्ति की आजादी के तहत मैं ये कहने में जरा भी संकोच नहीं करूंगा की …ये महाशय कांग्रेस के सबसे अच्छे दलाल है….और इनके चैनल का नाम New Delhi television होना चाहिए…

  5. pashyanti shukla ji ye aap nhi aapki jatiwadi vichardhara bol rhi hai, sach kya hai duniya samajh gyi hai, jo sarkar aur rss virodhi nara lagaye ki sanghwad s ajadi, manuwad se ajadi to bjp aur rss wale use deshdrohi ka certificate dekar jail bhej denge.

  6. पश्यंति जी आपका आर्टिकल बहुत शानदार है
    कमी चुक ये रह गयी
    जयचंद और उसके चमचे आज भी जिंदा है
    सत्ता के लिये अपनी माँ बहन पत्नी को भी नंगा करके ऐश कर लेगे तब भी यही कहेगें कम कपड़े पहने होंगे वरना वे तो साक्षात पुजारी है

  7. मेरी समझ में एक बात नहीं आती कि अगर बेमुला ने आत्महत्या कर ली , या जे एन यु में देश विरोधी लोगों पर पुलिस ने केस दर्ज कर दिया तो इसमें कई लोगों को राजनीति नजर आती है, इन सब में बी जे पी या आर एस एस कहाँ से आगया ? क्या बी जे पी ने उमर खालिद को भाषण देने के लिए कहा था, क्या बी जे पी ने बेमुला को छात्रावास से निकाला था ? क्या बी जे पी ने अफजल गुरु को फांसी दी थी ? यदि नहीं तो क्यों सब लोग देश के नाम पर एक और बटवारा चाहते हैं ? क्या देश भक्त होना जुर्म है ?

    किस को किस से आजादी चाहिए ? स्वतंत्र लोगों को आज़ाद भारत से आजादी चाहिए ? अफजल गुरु को सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा मिली थी संसद पर आक्रमण की साजिश के लिए, क्या ये लोग संसद और सर्वोच्च न्यायलय से भी ऊपर हैं ?

    मैं बी जे पी या मोदी का समर्थक नहीं हूँ , लेकिन मुझे अपने देश से प्यार है और इस पर मुझे गर्व भी है और मैं नहीं चाहता कि इस देश को कोई तोड़े या इसकी बेइज्जती करे . अपने देश में बैठकर इसके टुकड़े करने की सोचने वाले कम से कम देश भक्त तो नहीं हैं . अगर उन्हें इस देश से प्यार नहीं है तो छोड़ दें सब कुछ और बाकी लोगों को चैन से रहने दें .

    कुछ लोगों को देश की प्रगति की चिंता नहीं है, सिर्फ सत्ता कैसे आये और कैसे सरकार को बदनाम किया जाये इसके लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं. शायद इस बार का बजट सत्र भी ऐसे ही बर्बाद जायेगा , न कोई बिल पास होगा, न सरकार कोई काम कर पायेगी और इनको बहना मिल जायेगा की देखो बी जे पी ने दो साल में क्या किया ? देश की जनता सब देख रही है और सब की साजिश का पता है . आज की जनता अब उतनी बेवकूफ नहीं है. शायद इनको भी ये पता नहीं है हर देश विरोधी गतिविधि से इनकी ही छबि ख़राब हो रही है. अब भी मौका है देश की प्रगति में सब मिलकर हाथ बढ़ाएं .

  8. बहुत ख़ूब आइना दिखाया हे आपने ,क़ाबिले तारीफ़

  9. चरण स्पर्श पश्यन्ती जी _/\_
    आपके सुंदर विलेख को पढ़कर
    कोई और सुधरे अथवा ना सुधरे
    परन्तु
    देश का प्रत्येक
    देशप्रेमी अवश्य सुधरेगा,
    जेएनयु की घटना
    वाकई में
    अति निंदनीय है
    परन्तु
    रवीश जी

    रवीश जी के जैसे लोगों की दृष्टि में
    वो देशद्रोही अपराधी नहीं
    क्योंकि . . .
    अपराधी तो हम देशप्रेमी हैं
    और
    अब तो
    रवीश जी
    हम सभी को
    देशद्रोही का साथ ना देने के लिए
    सजा सुनाने वाले
    न्यायाधीश हो गए हैं ।

  10. Paahyanti ji aapne apne ma’am ke anurup hi charon Taraf gaur karte huye ,bade hi Sundar, tathyaparak vichar diye …Bahut accha

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