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मांसाहार बंद हो जाए तो 250 तक बढ़ती आबादी का पेट भरा जा सकता है

एक पौष्टिक और अच्छी सेहत के लिए कैसा भोजना होना चाहिए। हमारे भोजन में 35 फीसदी हिस्सा अनाज और कंद-मूल, 500 ग्राम फल एवं सब्जियां और पौधों से मिलने वाली प्रोटीन होनी चाहिए। लेकिन मांस से प्राप्त प्रोटीन की मात्रा 14 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
भोजन, ग्रह, स्वास्थ्य पर ईएटी-लांसेट आयोग द्वारा जारी किया गया आदर्श आहार है – न सिर्फ एक पौष्टिक और स्वस्थ आहार प्रदान करने के दृष्टिकोण से, बल्कि एक ऐसा आदर्श आहार भी है जो टिकाऊ है और धरती के स्वास्थ्य से समझौता नहीं करता है।

एनजीओ ईएटी और लांसेट मेडिकल जगत की काफी सम्मानित पत्रिकाएं हैं। इनके द्वारा किए गए अध्ययन का मकसद यह समझना था कि खासकर जब 2050 में विश्व की आबादी 10 अरब होगी, तब उन्हें पौष्टिक और टिकाऊ आहार कैसे मुहैया कराया जाए।

दुनियाभर में करने होंगे ये बदलाव

भारत सहित 16 देशों के 37 विशेषज्ञों के राय के आधार पर आयोग इस नतीजे पर पहुंचा कि – खानपान की आदतों में बदलाव, खाद्य उत्पादन में सुधार, और भोजन की बर्बादी को कम किए बिना – इस लक्ष्य को हासिल करना मुमकिन नहीं है।

इस अध्ययन में पाया गया कि पिछले 50 वर्षों में प्रमुख आहार पौष्टिक रूप से कम गुणवत्ता के हो गए हैं, इसलिए खाद्य प्रणाली में वैश्विक परिवर्तन की जरुरत है।

आयोग का कहना है कि उसके द्वारा बताए गए पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने से दुनियाभर में हर साल 10 करोड़ 9 लाख से लेकर 11 करोड़ 6 लाख समय से पहले होनेवाली वयस्कों की मौतों को रोका जा सकता है। जो कुल वयस्क मौतों का करीब 19-23.6 फीसदी के करीब है।

भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में स्टार्च वाली सब्जियों जैसे आलू और कसावा के बढ़ते उपयोग को लेकर चिंता जाहिर की गई है। दक्षिण एशिया में स्टार्च वाली कम पौष्टिक सब्जियों जैसे आलू आदि पर निर्भरता डेढ़ गुना ज्यादा है जबकि अफ्रीकी देशों में यह साढ़े सात गुना ज्यादा है।

रिपोर्ट में अमेरिकी देशों में रेड मीट के बढ़ते सेवन पर चिंता प्रकट की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिकी देशों में रेड मीट का सेवन तय सीमा से 6.5 गुना ज्यादा है। लेकिन भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में यह तय सीमा का आधा ही है।

दुनिया भर में कम से कम 8 अरब 20 करोड़ लोग भूखे हैं, और करीब 2 अरब लोग बहुत गलत भोजन खाते हैं। जिसकी वजह से असुरक्षित यौन संबंध, शराब, नशीली दवाओं और तंबाकू का इस्तेमाल करने से होने वाली बीमारी और मौतों से ज्यादा बीमार होते हैं और समय से पहले ज्यादा लोग मर जाते हैं।

“मांस की खपत में 50 फीसदी की कटौती करने का संदेश मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों के लिए है, क्योंकि भारत में मांस की खपत कम है, जहां मांस खाने वाले मुख्य रूप से फ्लेक्सिटेरियन हैं, मांस और मछली के सामयिक समावेश के साथ ज्यादातर पौधे आधारित हैं,” डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा,

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी, जो भारत के दो विशेषज्ञों में से एक थे, ने कहा, “मांस की खपत में 50% की कटौती करने का संदेश मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों के लिए है, क्योंकि भारत में मांस की खपत कम है, जहां मांस खाने वाले मुख्य रूप से फ्लेक्सिटेरियन हैं, जो ज्यादातर पौधे आधारित और कभी-कभी मांस और मछली खाते हैं।”

डॉ रेड्डी ने कहा, “भारत में मांस घास खाने वाले जानवरों से पैदा होता है, जो विकसित देशों में अनाज खाने वाले जानवरों की तुलना में कम पर्यावरणीय नुकसान वाले होते हैं। हमारे लिए संदेश यह है कि मछली मुर्गा से बेहतर है, और मुर्गा मांस से बेहतर है।”

धरती के स्वास्थ्य आहार को व्यापक रूप से अपनाने से अधिकांश पोषक तत्वों का सेवन भी बेहतर होगा, जिसमें स्वस्थ मोनो- और पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड शामिल हैं। साथ ही सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले सेचुरेटेड फैट की कम खपत से सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।

साभार- https://www.amarujala.com से