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साइबर धोखाधड़ी की शिकायत तुरंत की तो धन होगा वापस

साइबर धोखाधड़ी के कारण आर्थिक नुकसान रोकने और डिजिटल भुगतान के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस तरह की धोखाधड़ी का पता लगाने और जांच करने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर- 155260 शुरू किया है।

इस पहल के तहत ऐसे अपराध रोकने या उन्हें हल करने के लिए राज्य पुलिस और बैंक पहली बार समन्वय के साथ काम करेंगे। यह हेल्पलाइन और इसका रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सभी प्रमुख बैंकों, भुगतान बैंकों, वॉलेट और ऑनलाइन व्यापारियों के समर्थन से भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (14सी) द्वारा शुरू किया गया है। इसमें शामिल होने वाले सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण बैंक हैं-भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, इंडसइंड बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, ऐक्सिस बैंक, येस बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक। पेटीएम, फोनपे, मोबिक्विक, फ्लिपकार्ट और एमेजॉन जैसे सभी प्रमुख वॉलेट और मर्चेंट भी इससे जुड़े हुए हैं। नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली कहा जाने वाला यह प्लेटफॉर्म फिलहाल सात राज्यों (छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) में सक्रिय है। देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी इसके दायरे में आती है। अंतत: इसे अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी शुरू किया जाएगा।

इस साल अप्रैल में अपनी सीमित शुरुआत के बाद से हेल्पलाइन 155260 धोखेबाजी करने वालों के हाथों में 1.85 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जाने से रोकने में सफल रही है। दिल्ली और राजस्थान ने क्रमश: 58 लाख और 53 लाख रुपये वापस पाए हैं।

साइबर सुरक्षा मामलों के वकील प्रशांत माली कहते हैं, ‘इस प्रयास के परिणाम सामने आ सकते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि वित्तीय धोखाधड़ी के मसले हल करने के लिए पहली दफा कोई केंद्रीकृत दृष्टिकोण तैयार किया जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि अधिकारियों को सतर्क रहना होगा और वे शिकायतों में ज्यादा देरी नहीं कर सकते हैं।

इस व्यवस्था की कारगरता के लिए उपयोगकर्ताओं को भी सतर्क रहने की आवश्यकता होगी और किसी संदिग्ध लेनदेन की जानकारी के साथ उन्हें तुरंत हेल्पलाइन पर कॉल करना होगा, ताकि पैसे पर तत्काल नजर रखी जा सके। अगर पैसा दूसरे बैंक खाते में स्थानांतरित कर दिया गया है, तो उस बैंक को सावधान किया जा सकता है और पास वापस स्थानांतरित किया जा सकता है।

हालांकि अगर पैसा सही मालिक को वापस स्थानांतरित किए जाने से पहले धोखेबाजी करने वाला व्यक्ति पैसा निकालने में सफल हो जाता है, तो यह मामला पुलिस के पास ले जाना होगा। एमएचए के बयान में इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है ‘ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में धोखाधड़ी सेपैसे के नुकसान को उसकी निगरानी करते हुए और धोखेबाज द्वारा पैसे को डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र से बाहर निकाले जाने से पहले इसके आगे प्रवाह को बंद करते हुए रोका जा सकता है।’ वरिष्ठ वकील और साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि कोई हेल्पलाइन मदद के लिए होती है। यह वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की आवश्यकता को समाप्त नहीं करती है। एक प्रायोगिक परियोजना में सरकार ने लोगों को सक्रिय रूप से आगे आने और धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने के लिए एक पोर्टल निर्मित किया था। लेकिन हमने पाया कि लोग केवल पैसे वापस दिलाए जाने में ही दिलचस्पी रखते हैं, ऐसी घटनाओं को रोकने में नहीं। ऐसा किए जाने के लिए लोगों को अपराध की सूचना भी देनी होगी। अलबत्ता दुग्गल मानते हैं कि यह हेल्पलाइन रिपोर्टिंग प्रणाली में संपर्क के पहले बिंदु के रूप में प्रभावी होगी।

जुलाई 2017 की आरबीआई की अधिसूचना के अनुसार अगर बैंक के किसी खाताधारक का पैसा धोखे से निकाला जाता है और वह व्यक्ति अपराध के 72 घंटे के भीतर इस घटना की सूचना देता है, तो बैंक को वह पूरी राशि उस खाताधारक को 10 कार्य दिवस के भीतर देनी होगी। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बैंक नेटवर्क से पैसा निकलवाया जाता है, तो यह हेल्पलाइन इस प्रक्रिया में तेजी लाएगी। दुग्गल कहते हैं कि ज्यादातर मामलों में खाताधारक बैंक को धोखाधड़ी की सूचना देने के बावजूद पैसा वापस पाने के लिए चक्कर लगाते रहते हैं। यह हेल्पलाइन इस क्षेत्र में उपयोगी होगी।

साभार https://hindi.business-standard.com/ से