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पाकिस्तान में इमरान ख़ान और जनरल बाजवा की जुगलबंदी मुश्किल में?

अब पाकिस्तान के सभी विपक्षी दल मिलकर पूरे देश में इमरान ख़ान की सरकार के विरोध में रैलियां कर रहे हैं. ये दल इमरान ख़ान के त्यागपत्र की मांग कर रहे हैं.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पिछले चार महीनों से अपने सबसे मुश्किल राजनीतिक चुनौती का सामना कर रहे हैं. पाकिस्तान के प्रमुख विपक्षी दलों ने एक साथ आकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक एलायंस (पीडीएम) बनाया है. अब पाकिस्तान के सभी विपक्षी दल मिलकर पूरे देश में इमरान ख़ान की सरकार के विरोध में रैलियां कर रहे हैं. ये दल इमरान ख़ान के त्यागपत्र की मांग कर रहे हैं. इसके लिए पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने तीन चरण के एक्शन प्लान का एलान किया है. इसमें देशव्यापी विरोध प्रदर्शन, जनसभाएं और रैलियां शामिल हैं. विपक्ष के इमरान विरोधी इस अभियान का समापन जनवरी 2021 में इस्लामाबाद के लिए ‘निर्णायक लॉन्ग मार्च’ की शक्ल में होना है.

पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के साझा ऑनलाइन भाषण के दौरान पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और अपदस्थ किए गए प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने विपक्षी गठबंधन के 26 विषयों वाले मांग पत्र की घोषणा की थी.

नवाज़ शरीफ़ ने पंजाब सूबे के गुजरांवाला शहर में पीडीएम के शक्ति प्रदर्शन के मंच का उपयोग करते हुए, पाकिस्तान के फौजी तंत्र से अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने का प्रयास किया. लंदन से एक वीडियो लिंक के माध्यम से अपना भाषण पढ़ते हुए, नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान आर्मी पर आरोप लगाया कि उनकी हुकूमत को फौज ने ही अपदस्थ किया.

नवाज़ शरीफ़ ने पंजाब सूबे के गुजरांवाला शहर में पीडीएम के शक्ति प्रदर्शन के मंच का उपयोग करते हुए, पाकिस्तान के फौजी तंत्र से अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने का प्रयास किया. लंदन से एक वीडियो लिंक के माध्यम से अपना भाषण पढ़ते हुए, नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान आर्मी पर आरोप लगाया कि उनकी हुकूमत को फौज ने ही अपदस्थ किया. फौज ने ही पर्दे के पीछे से साज़िश करते हुए इमरान ख़ान को प्रधानमंत्री बनाने का रास्ता साफ़ किया.

नवाज़ शरीफ़ का बयान, पाकिस्तान की फौज और खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों की उस चेतावनी के बाद आया था, जिसमें जनरलों ने अपने मुल्क के विपक्षी दलों को चेतावनी की थी कि वो अपनी सियासी लड़ाई में लोकतांत्रिक संस्थाओं को न घसीटें, वरना पाकिस्तान में अराजकता और क़ानून की अव्यवस्था देखने को मिल सकती है. इस चेतावनी के बावजूद, नवाज़ शरीफ़ ने जिस तरह से सीधे-सीधे फौज पर हमला किया, वो इस बात का संकेत है कि फौज के विरोध को लेकर इस बार पाकिस्तान के विपक्षी दलों के बीच एकता दिख रही है. विपक्षी दलों का पाकिस्तान आर्मी पर ये सीधा हमला, फौज के लिए भी एक संदेश है कि अब उनकी चेतावनी से विपक्षी दल घबराते नहीं हैं. विपक्षी दलों के सरकार विरोधी रुख़ पर फौजी जनरलों की चेतावनी का कोई असर नहीं होता.

दोहरी नीति

जब से पाकिस्तान का अलग राष्ट्र के तौर पर निर्माण हुआ है, वहां की सिविलियन सरकारें हमेशा ही फौजी बूटों के साए तले हुकूमत चलाती आई हैं. पाकिस्तान की सरकार में फौज की दख़लंदाज़ी इस कदर रही है कि, दुनिया की तमाम ताक़तें पाकिस्तान आर्मी को ही वहां की सत्ता का असली केंद्र कहती हैं. इनमें अमेरिका और चीन जैसे देश भी शामिल हैं. जब इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, तब से ही उन पर ये आरोप लग रहे हैं कि वो पाकिस्तान की फौज की मदद से देश के वज़ीर-ए-आज़म बने हैं.

पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) की सरकार ने पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा को प्रधानमंत्री की मीडिया प्रबंधन टीम का भी प्रमुख नियुक्त कर दिया है, जिससे कि देश की मीडिया और इसमें होने वाली परिचर्चा को फौज ही नियंत्रित कर सके.

पाकिस्तान की फौज ने चुनाव में धांधली करके उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया है. उसके बाद से ही पाकिस्तान की सरकार पर वहां की फौज का शिकंजा बढ़ता ही जा रहा है, ख़ास तौर से मौजूदा आर्मी चीफ (सीओएएस) जनरल क़मर जावेद बाजवा के नेतृत्व में तो फौज ने पाकिस्तान की हुकूमत को पूरी तरह अपने नियंत्रण में कर लिया है.

पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार पर वहां की फौज के सीधे नियंत्रण के कारण अब ये माना जाने लगा है कि पाकिस्तान में इस समय फौज बिना मार्शल लॉ लगाए ही शासन कर रही है. पाकिस्तान में इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के शासन काल के दौरान, नागरिक उड्डयन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ऊर्जा के नियामक आयोग के अध्यक्ष जैसे नागरिक संस्थानों के प्रमुख फौज के या तो मौजूदा या रिटायर्ड अधिकारी बन गए हैं.

पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) की सरकार ने पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा को प्रधानमंत्री की मीडिया प्रबंधन टीम का भी प्रमुख नियुक्त कर दिया है, जिससे कि देश की मीडिया और इसमें होने वाली परिचर्चा को फौज ही नियंत्रित कर सके. इससे भी आगे बढ़कर, इमरान ख़ान ने देश के मौजूदा आर्मी चीफ जनरल बाजवा का कार्यकाल तीन साल के लिए बढ़ा दिया, जबकि पाकिस्तान की न्यायपालिका ने इसे लेकर अपना ऐतराज़ भी ज़ाहिर किया था.

पाकिस्तान आर्मी के आला अधिकारियों ने सरकार में अपने बढ़ते प्रभाव का इस्तेमाल एक मौक़े की तरह करते हुए भ्रष्टाचार के नए प्रतिमान गढ़े हैं. अगस्त 2020 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा और उनके परिवार ने प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार के तौर पर अरबों रुपए की अवैध संपत्ति जमा कर ली. लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने भाई और पत्नी के नाम से विदेशों में भी भारी मात्रा में संपत्ति बना ली.

भ्रष्टाचार के आरोप

इस रिपोर्ट में आगे ये आरोप लगाया गया है कि देश के कई बिजली घरों के निर्माण का ठेका बिना टेंडर जारी किए ही लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा के रिश्तेदारों को दे दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक़, बाजवा के कुनबे को दिए गए पॉवर प्रोजेक्ट के ये ठेके पास-पड़ोस के भारत जैसे देशों में बन रहे ऐसे प्रोजेक्ट से 237 प्रतिशत अधिक लागत पर दिए गए. ऐसी ही गड़बड़ियों के आरोप दो कोयले पर आधारित बिजली घर बनाने के ठेकों में भी लगे हैं.

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, जब विपक्षी दलों ने इमरान सरकार के ख़िलाफ़ हंगामा मचाया तो जनरल असीम सलीम बाजवा ने प्रधानमंत्री के सूचना और प्रसारण संबंधी विशेष सलाहकार का पद तो छोड़ दिया, लेकिन वो अभी भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के प्राधिकरण के प्रमुख बने हुए हैं. पाकिस्तान आर्मी के अधिकारी, इस प्राधिकरण के ज़रिए भ्रष्टाचार करने में जुटे हुए हैं.

मौजूदा पाकिस्तान हुकूमत पर फौज का कंट्रोल इस हद तक है कि जब लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा के भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाली ये रिपोर्ट सामने आई, तो भी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पूरी तरह चुप्पी अख़्तियार कर ली. उन्होंने 12 अक्टूबर 2020 तक, जनरल असीम बाजवा का इस्तीफ़ा भी मंज़ूर नहीं किया था. इसके उलट, पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ हुकूमत ने नेशनल एकाउंटिबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) के ज़रिए विपक्षी दलों के नेताओं को भ्रष्टाचार और जवाबदेही के नाम पर हलकान करने का सिलसिला जारी रखा है.

इमरान ख़ान की सरकार, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई का वादा करके ही हुकूमत में आई थी. सत्ता में आने के बाद से पीटीआई की सरकार ने नेशनल एकाउंटिबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) के ज़रिए बहुत से विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार संबंधी जांच शुरू की है.

मौजूदा पाकिस्तान हुकूमत पर फौज का कंट्रोल इस हद तक है कि जब लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा के भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाली ये रिपोर्ट सामने आई, तो भी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पूरी तरह चुप्पी अख़्तियार कर ली.

इनमें पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़, उनका परिवार और उनकी पार्टी के नेता, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी, उनका परिवार और पार्टी के नेता, जमीयत उलेमा ए इस्लाम (जेयूआईएफ़) के प्रमुख मौलाना फ़ज़लुर्रहमान और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के ख़िलाफ़ जांच शामिल है. एनएबी ने हाल ही में नवाज़ शरीफ़ के भाई शहबाज़ शरीफ़ के ऊपर भी भ्रष्टाचार के आरोप तय किए हैं. इसमें 4.19 करोड़ डॉलर का मनी लॉन्डरिंग का केस भी शामिल है.

जिस तरह से इमरान ख़ान की सरकार ने एनएबी का दुरुपयोग करते हुए विपक्षी दलों को परेशान किया है, उसी वजह से आज देश के सभी दलों के नेता एक गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित हुए हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के झंडे तले, पाकिस्तान के तमाम विपक्षी नेताओं ने हाथ मिलाकर, इमरान ख़ान और फौज के बीच साठ-गांठ को उजागर करने का फ़ैसला किया है. पीडीएम ने यहां तक मांग की है कि लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा को बर्ख़ास्त किया जाए और उनके भ्रष्टाचार की पारदर्शी तरीक़े से ठीक वैसी ही तरह जांच की जाए, जैसी पाकिस्तान के विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ की जा रही है.

आगे बहुत चुनौती भरा दौर आने वाला है
11 दलों वाले पाकिस्तान के विपक्षी गठबंधन ने पीडीएम के बैनर तले, गुजरांवाला, कराची और पेशावर में तीन विशाल रैलियां की हैं. इसके बाद से ही पाकिस्तान की फौज और इमरान ख़ान की हुकूमत पर दबाव बढ़ने लगा है. पीडीएम के नेता अब पाकिस्तान की आर्मी पर सीधे हमला कर रहे हैं. वो इमरान ख़ान की सरकार को फौज की कठपुतली और रबर स्टैंप बताकर ख़ारिज कर देते हैं.

11 दलों वाले पाकिस्तान के विपक्षी गठबंधन ने पीडीएम के बैनर तले, गुजरांवाला, कराची और पेशावर में तीन विशाल रैलियां की हैं. इसके बाद से ही पाकिस्तान की फौज और इमरान ख़ान की हुकूमत पर दबाव बढ़ने लगा है. पीडीएम के नेता अब पाकिस्तान की आर्मी पर सीधे हमला कर रहे हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने तो एक क़दम और आगे जाकर लंदन से वीडियो लिंक के ज़रिए अपने भाषण में कहा कि, ‘हमारी लड़ाई इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ नहीं है. आज हमारा संघर्ष उन लोगों के विरोध में है, जिन्होंने इमरान ख़ान को उस गद्दी पर बिठाया है, जिन लोगों ने चुनाव में धांधली करके एक नाक़ाबिल इंसान को सत्ता में बिठाया और मुल्क को बर्बादी की राह पर धकेल दिया.’ फौज की ये सीधी आलोचना ने जनरल बाजवा और पीएम इमरान ख़ान, दोनों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इस वक़्त ये चुनौती इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि पाकिस्तान इस समय एक साथ कई सामाजिक आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इनमें महंगाई की ज़बरदस्त मार, आतंकी घटनाओं में वृद्धि, आतंकवाद और फ़िरक़ापरस्ती के ख़िलाफ़ बने नेशनल एक्शन प्लान (NAP) का लागू न होने जैसी समस्याएं शामिल हैं.

प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनकी पीटीआई सरकार ने विपक्ष की एकता को तोड़ने के लिए जो आक्रामक रुख़ अपनाया है और कई लोगों को गिरफ़्तार करके दूसरे सख़्त क़दम उठाए हैं, उनसे हालात और बिगड़ गए हैं. कराची में विपक्षी दलों के गठबंधन (पीडीएम) की दूसरी बड़ी जनसभा के बाद, इमरान ख़ान की सरकार ने नवाज़ शरीफ़ के दामाद रिटायर्ड कैप्टन मोहम्मद सफ़दर को गिरफ़्तार कर के विपक्षी दलों को जो डराने की कोशिश की वो नाकाम रही थी. कैप्टन सफ़दर, नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ के पति हैं. उन्हें पाकिस्तान के संस्थापक क़ायदृ-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना के मज़ार के नियमों की पवित्रता को क्षति पहुंचाने के आरोप में कराची के एक होटल से गिरफ़्तार किया गया था.

चूंकि सिंध सूबे में एक अन्य मुख़्य विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सरकार है, तो नवाज़ शरीफ़ के दामाद को गिरफ़्तार करके फौज ने गिरफ़्तारी का ठीकरा सिंध की सरकार और वहां की पुलिस के सिर फोड़ने की कोशिश की थी. इसका मक़सद विपक्षी दलों की एकता में दरार डालना भी था. ख़बरों के मुताबिक़, जब सिंध के पुलिस अधिकारियों ने कैप्टन मोहम्मद सफदर को गिरफ़्तार करने से इनकार दिया, तो पाकिस्तान रेंजर्स ने सिंध के आईजीपी को अगवा कर लिया और उन्हें ‘ज़बरदस्ती पाकिस्तान रेंजर्स के सेक्टर कमांडर के दफ़्तर ले गए जहां पर उन्हें कैप्टन मोहम्मद सफदर की गिरफ़्तारी के ऑर्डर पर दस्तख़त करने को मजबूर किया गया.’

विपक्षी दलों के लगातार बढ़ते दबाव के बाद, चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ (सीओएएस) जनरल क़मर जावेद बाजवा ने इस मामले की जांच का आदेश दिया और उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख से भी बात की. इस समय पाकिस्तान का फौजी अमला सियासी दलों के बीच संतुलन बनाने में जुटा हुआ है. इसकी वजह ये है कि आर्मी के जनरल नहीं चाहते कि वो किसी विवाद में फंसें. पाकिस्तान में अगले कुछ महीने बेहद महत्वपूर्ण हैं. देखना ये होगा कि इमरान ख़ान, अपने फौजी आक़ाओं से कैसे निपटते हैं और वो अपनी सरकार को बचाने के लिए विपक्षी गठबंधन पीडीएम में दरार डाल पाते हैं या नहीं.

ये लेख मूल रूप से साउथ एशिया वीकली South Asia Weekly में प्रकाशित हुआ था.

सभार- https://www.orfonline.org/ से