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आतंक के साये में “अमरनाथ यात्रा “

महोदय

बाबा अमरनाथ जी के दर्शन करके धर्म लाभ लेने के लिये दशको से लाखों हिन्दू श्रद्धालु कष्टभरी यात्रा हंसते हंसते भक्ति भाव से करते आ रहें है । जगह-जगह उनकी सेवा-सुश्रुषा के लिए सैकडों शिविर लगाए जाते है ।प्रतिवर्ष इस विशेष अवधि में बाबा वर्फानी के दर्शन करने की हिंदुओं की शिव भक्ति अटूट है। इस भक्ति को तार-तार करने के लिये कश्मीर के अलगाववादी व आतंकवादी या कहे कि मुस्लिम कट्टरपंथी अनेक वर्षो से इस धार्मिक यात्रा में विभिन्न प्रकार की बाधायें डालते आ रहें है।यह विचित्र है कि हिन्दू धर्मावलम्बी अनेक कठिनाईयों के बाद भी इस यात्रा के लिये कटिबद्ध है तो वहां के मुस्लिम धर्मांध आतंकी अपने आतंक से उनको बाधित करने में भी पीछे नहीं । वहां की सरकार द्वारा इन आतंकियों के दबाव में प्रति वर्ष इस यात्रा की अवधि को भी कम किया जा रहा है तथा अनेक सरकारी सुविधाओं को हटाने के अतिरिक्त उनसे राजस्व भी लिया जाने लगा है।

विचारणीय बिंदु यह है कि हम हिन्दू इन आतंकियों के अत्याचारों को साम्प्रदायिक सौहार्द के नाम पर योंही सहते रहें और इन दुष्टो को हमारी उदारता व सहिष्णुता का कोई आभास ही न हो बल्कि उनकी क्रूरता ओर अधिक उग्र होती जाय तो फिर हम क्या करें ? हम अपने इष्ट की भक्ति में इतने लीन होकर अत्याचार सहकर भी मौन है, क्यों ? क्या हमको हमारे देवी-देवताओं की भक्ति से अन्याय सहने व कायर बनें रहने का कोई आत्मघाती सन्देश मिलता है या फिर दुष्टो का विनाश करके धर्म की रक्षा करके मानवता के उच्च मापदंण्डो की स्थापना करने का कर्तव्य बोध होता है? हम क्यों भूल रहे है कि शस्त्र धारी हमारे सभी देवी-देवताओं ने धर्म की रक्षार्थ शास्त्रो के साथ साथ शस्त्रो का भी उचित उपयोग किया था। क्या हमारी भक्ति हमको आत्मरक्षार्थ दुष्टो/आतंकियों से संघर्ष करने में बाधक है या फिर हम ही संसारिक सुखो के भोगविलास में लिप्त होकर आते हुए संकट की आंधी के प्रति उदासीन रह कर सरकार को कोसने के अतिरिक्त प्रभावशाली प्रतिकार करने से बचना चाहते है ?

जब अनेक भक्तजनों को इस धार्मिक यात्रा पर विभिन्न कष्ट भुगतने के साथ साथ आत्मग्लानि से भी आत्मसात होना पड़ता है तो, फिर वे सामूहिक रुप से इस अत्याचार का प्रतिरोध करने का साहस क्यों नहीं करते ? बड़ी विचित्र स्थिति है कि इतना सब कुछ जब अपनी ही मातृभूमि पर वर्षो से हो रहा हो और यह अत्याचारी सिलसिला थम ही नहीं रहा तो भी ये पीड़ित बंधू अपने अपने क्षेत्रों में वापस आ करइन कट्टरपंथियों के घृणास्पद व शत्रुता पूर्ण व्यवहार को उजागर करके कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन क्यों नहीं करते ? हमको स्मरण रखना चाहिये कि कुछ वर्षो पूर्व “अमरनाथ यात्रा” में कुछ सरकारी प्रतिबंध लगाये जाने पर जम्मू के हिन्दुत्ववादी नेता श्री लीलाधर ने अपने सहयोगियों के साथ इसका विरोध किया और उसके समर्थन में विश्व हिन्दू परिषद् , शिव सेना व अन्य हिन्दू संगठनों ने इसको राष्ट्रव्यापी आंदोलन बनाने में सकारात्मक भूमिका निभाई थी । परिणामस्वरूप देश के विभिन्न भागो से सैकड़ो जिलो में सामूहिक रुप से राष्ट्रवादियों द्वारा किये गए आंदोलनो ने राज्य सरकार को उन प्रतिबंधों को हटाने के लिए विवश कर दिया था । उस समय देश का वातावरण कश्मीर से कन्याकुमारी तक “अमरनाथ यात्रा” में आतंकियों व सरकार की दमनकारी नीतियों के प्रति पूर्णतः आक्रोशित था।

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि राष्ट्रवादी नेतृत्व के आभाव में भविष्य में अन्याय का प्रतिकार करने के लिये निरंतर जागृति नहीं बन पाई जिससे जम्मू-कश्मीर की सरकार व वहां के कट्टरपंथियों द्वारा अमरनाथ यात्रा को बाधित करने के कुप्रयास पुनः किये जाते रहें है।

क्या हम उन कट्टरपंथियों की विदेश जा कर हज़ यात्राओं के लिए अरबो रुपयों की सहायता करते रहे और वे हमें हमारी ही भूमि पर हमको अपने तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए बाधित करके उत्पीड़ित करते रहें तो फिर इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार का जिम्मेदार कौन ? क्या यह हमारे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं ? क्या धर्मनिर्पेक्षता के झूठे आडम्बर में हिन्दू ही पिसता रहें और अपनी संस्कृति व अस्तित्व को आतंकियों की धार्मिक कट्टरता की भट्टी में जलने दें ? बल्कि हम इसको “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” कहकर आंख बंद करके हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे..लेकिन कब तक ?

सधन्यवाद
भवदीय
;विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद