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इस स्कूल में ढाई साल के बच्चे भी देव भाषा ‘संस्कृत’ में बात करते हैं

आमतौर पर अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करे, लेकिन हम आज आपको एक ऐसे स्कूल में ले जा रहे हैं, जहां बचपन से ही बच्चों को संस्कृत सिखाई जाती है. खास बात यह है कि यह कोई हिंदी मीडियम या संस्कृत पाठशाला नहीं है, बल्कि यह आईसीएसई बोर्ड से जुड़ा लखनऊ के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल है.

लखनऊ: विश्व की तमाम भाषाओं में से संस्कृत सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा है. कहते भी हैं कि संस्कृत संस्कारों की भाषा है. भारतीयों को संस्कृत का ज्ञान होना बहुत जरुरी है, जिससे हमारे आस्तित्व की रक्षा हो सके. इसी को ध्यान में रखते हुए राजधानी लखनऊ के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक आईसीएसई बोर्ड से जुड़े सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल में बच्चे बचपन से ही अंग्रेजी की जगह संस्कृत सिखाई जा रहा है. यहां हिंदू-मुस्लिम या फिर किसी भी जाति या धर्म का बच्चा हो, सभी को संस्कृत सिखाई जाती है. एलकेजी, यूकेजी जैसी कक्षाओं के बच्चे तो फर्राटेदार संस्कृत में बात करते हैं.

राजधानी लखनऊ के गोमती नगर में संचालित सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल में प्री प्राइमरी से आठवीं तक की कक्षा के सभी बच्चों को कक्षा में अनिवार्य रूप से संस्कृत सिखाई जाती है. अच्छी बात यह है कि बच्चे तो बच्चे अब तो अभिभावक भी बच्चों को संस्कृत सिखाने के इच्छुक रहते हैं. स्कूल की शिक्षिका नेहा बताती हैं कि यहां प्लेग्रुप यानी ढाई साल के बच्चे जब स्कूल आते हैं, उसके साथ ही उनकी संस्कृत की शिक्षा भी शुरु हो जाती है. जिस तरीके से बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाओं का ज्ञान दिया जाता है, उसी तरीके से खेल-खेल के माध्यम से बच्चों को संस्कृत भी सिखाई जाती है. छोटी-छोटी चीजें जैसे कि शरीर के नाम, फलों के नाम, रंगों के नाम, रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के नाम से शुरुआत होती है. कहानी, गीतों के माध्यम से भी संस्कृत पढ़ाई जाती है.

दूसरी शिक्षिका अनन्या बताती हैं कि जब शिक्षिका क्लास में संस्कृत के शब्द बताती हैं तो उसके साथ ही बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी के शब्द भी बताए जाते हैं किस शब्द भी सिखाए जाते हैं. ऐसे में छोटे बच्चों के लिए अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत तीनों भाषाओं को जोड़ना और समझना आसान हो जाता है.

सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल में संस्कृत शिक्षा की शुरुआत साल 2003 से की गई. हालांकि अब इसके नतीजे पूरी तरह से सामने आने लगे हैं. स्कूल के इस पूरे कार्यक्रम का संचालन कर रहे संपदानंद मिश्र ने बताया कि बच्चों को इस देवभाषा का ज्ञान देने के लिए विद्यालय के स्तर पर विशेषज्ञों की एक टीम बनाई गई है. इस टीम में देश-विदेश के संस्कृत के विद्वान शामिल हैं, उनकी मदद से करिकुलम बनाया है. अमूमन देखने में यह आता है कि छोटी कक्षाओं में ग्रामर की पढ़ाई शुरू करने से बच्चों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. कई बार तो उस विषय को पढ़ने में बच्चों की रुचि ही खत्म हो जाती है. इसको ध्यान में रखते हुए हमने विशेषज्ञों की एक टीम के सहारे करिकुलम देववाणी तैयार किया. खास बात यह है कि इस कार्यक्रम में कक्षा 5 तक कोई ग्रामर नहीं पढ़ाई जाती है. बच्चे हंसते खेलते एक्टिविटी के माध्यम से इस भाषा को सीखते हैं. जब उनका ज्ञान विकसित हो जाता है, तब उन्हें व्याकरण के बारे में जानकारी दी जाती है. उन्होंने बताया कि अब इसके नतीजे खुलकर सामने आने लगे हैं.

शिक्षिका नेहा कहती हैं कि संस्कृत भाषा सभी भाषाओं का मूल है. ऐसे जब बच्चे इसे सीखते हैं तो उन्हें अन्य भाषाओं को समझना पढ़ना और आसान हो जाता है. इसके अलावा इसे हम कई बार बच्चों को थेरेपी के रूप में भी सिखाते हैं. जो बच्चे तुतलाते हैं तो संस्कृत के अभ्यास से उनके शब्दों का उच्चारण बेहतर हो जाता है.

कक्षा नौ के छात्र सारांश कहते हैं कि उन्होंने यहां प्लेग्रुप में दाखिला लिया था. आज तक वह संस्कृत सीखते हैं. छात्रा कृणाली नायक कहती हैं कि वह कक्षा 6 में इस स्कूल में आईं. उसके पहले कभी भी संस्कृत को नहीं पढ़ा था लेकिन, इस भाषा को सीखने के बाद जीवन में एक शांति आई है, ज्ञान विज्ञान के रास्ते खुले हैं और जीवन में बदलाव महसूस किया है.

साभार- https://www.etvbharat.com/h से