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रामचरितमानस का अपमानः चुनाव की आहट सुन राजद्रोही सक्रिय

पहले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने त्रिपुरा की एक जनसभा में घोषण करी कि आगामी एक जनवरी 2024 को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन करेंगे, आप सभी लोग मंदिर के दिव्य दर्शन करने के लिए अभी से टिकट बुक करवा लें और उसके बाद भाजपा कार्यसमिति की बैठक में श्रीराम मंदिर के निर्माण और उसकी उद्घाटन तिथि को लेकर एक प्रस्ताव पारित हुआ। इन दो बातों ने देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी दलों और उनके नेताओें की चिंता बढ़ा दी है और उन्हें यह प्रतीत होने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सनातन हिंदू समाज का यह महत्व्पूर्ण कार्य पूरा हो जाने के बाद हिन्दू जनमानस में उनकी कोई हैसियत नहीं रह जाएगी। इसी भय के कारण उन्होंने अपना रामद्रोही गैंग सक्रिय कर दिया है और सनातन हिन्दू संस्कृति से सम्बंधित मान्यताओं, देवी- देवताओं, धर्मग्रंथों तथा आस्था के केंद्रो पर आक्रमण प्रारंभ हो गए हैं। इसका प्रारंभ हिन्दुओं के सर्वप्रिय ग्रन्थ रामचरित मानस पर आक्रमण के साथ हुआ।

ये आक्रमण बिहार से प्रारंभ हुआ और कर्नाटक होते हुए उत्तर प्रदेश तक पहुँच कर वहां के राजनीतिक वातावरण को कटु बना रहा है। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि रामचरित मानस नफरत फैलाने वाला ग्रन्थ है। महागठबंधन के सहयोगी नेता जीतन राम मांझी भी उनके समर्थन में हैं, राजद नेता जगदानंद सिंह ने कहा कि अयोध्या का राम मंदिर नफरत की जमीन पर बन रहा है।कर्नाटक में एक वामपंथी लेखक के. एस. भगवान ने वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड की गलत व्याख्या ही कर डाली है और कहा कि भगवान राम रोज दोपहर को माता सीता के साथ शराब पिया करते थे।उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के जातिवादी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने तो रामचरित मानस को ही प्रतिबंधित कर ने मांग कर डाली है जिसके बाद उप्र की राजनीति में भूचाल आ गया है।

वास्तव में आज जो नेता रामचरित मानस की आड़ लेकर सनातन हिंदू संस्कृति को अपमानित करने का खतरनाक प्रयोग कर रहे हैं उनका राजनैतिक आधार ही इस प्रकार की बयानबाजी करके मुस्लिम तुष्टिकरण करना और हिंदू समाज को जाति के आधार पर बांटकर अपना राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करना रहा है। बिहार के शिक्षा मंत्री अभी तक अपने पद पर बैठे हुए हैं क्योंकि वह उस दल में है जिनके अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रा को बिहार में रोक लिया था और आडवणी जी को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया था।वहीं उत्तर प्रदेश में रामचरित मानस को बैन करने की मांग करने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य एक ऐसी पार्टी में है जिनके मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अयोध्या में दो नवम्बर 1990 को भीषण नरसंहार किया था।

स्वामी प्रसाद मौर्य के मानस द्रोही बयानों पर सपा नेता अखिलेश यादव ने चुप्पी साध ली है। रामचरित मानस को लेकर यदि सपा मौर्य व अन्य नेताओं पर कार्यवाही करती है तो मौर्य समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सपा से दूर चला जायेगा, वोट बैंक का ये लालच अखिलेश को कार्यवाही करने नहीं देगा। स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद सपा में दो धड़े हो गये हैं जिसमें एक मौर्य के साथ तो दूसरा विरोध में है और अखिलेश यादव मौन हो गये हैं। सपा विधयाक तूफानी सरोज व पूर्व सपा विधायक ब्रजेश प्रजापति स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ खड़े होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं और सपा की समस्या को गंभीर कर रहे हैं ।स्वामी ने मानस पर जो टिप्पणी की है उससे सनातन हिन्दू समाज का बड़ा वर्ग आहत हुआ है तथा उनके खिलाफ प्रदेश भर में आंदोलन हुए हैं, पुतले जलाये गये हैं और एफ़आई.आर. दर्ज की गई है, कोर्ट में याचिका भी लगा दी गई है लेकिन सपा मुखिया स्वामी को पार्टी से निकालने का साहस नहीं दिखा सके क्योंकि इनका राजनीतिक अस्तित्व ही हिंदू समाज के अपमान और उसे जाति वर्ग में बांटने में है।

रामचरित मानस का अपमान करने वाले यह लोग भूल जाते हैं कि रामचरित मानस हिंदूओं के लिए एक पवित्र ग्रंथ है, जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि रामचरित मानस को करोड़ों लोग नहीं पढ़ते वह ये भूल जाते हैं कि राम भारत के कण कण में हैं वो मानस पढ़ें या ना पढ़ें उसका अपमान नहीं सह सकते हैं। रामचरित मानस हिंदू समाज के लिए एक आशीर्वाद है जिसके प्रभाव से उसका जीवन सरल होता है। रामचरित मानस हर हिंदू के मन मानस में है।

संत तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना ऐसे समय में की थी जब भारत मुगलों के आधीन हो चुका था और हिंदू समाज मुगलों के भयंकर अत्याचारों से कराहते हुए घोर निराशा में डूबा हुआ था और उसे आशा की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ रही थी। तुलसीदास जी ने लोकभाषा में रामकथा लिख कर हिंदू समाज को रामभक्ति की वो किरण दिखाई जिससे उसमें नई चेतना, स्फूर्ति, उमंग व उल्लास का प्रादुर्भाव हुआ।जो लोग रामचरित मानस को नफरत फैलाने वाला व बकवास कहकर बैन करने की बात कह रहे हैं वह भूल रहे हैं हैं कि अगर आज मौर्य व निषाद जातियों की पहचान जनमानस के समक्ष है तथा उनका अस्तित्व बचा हुआ है तो उसका आधार रामचरित मानस ही है। निषाद राज केवट को कौन नहीं जानता?

रामचरित मानस में भगवान राम के वनवास का काल दलितों व समाज के पिछड़े लोगों के उत्थान का ही काल माना गया है।रामचरित मानस में राम और केवट के संवाद से ही स्पष्ट हो जाता है कि भगवान राम में समाज के किसी भी वर्ग के प्रति कोई भेदभाव नही था।भगवान राम ने वन में शबरी माँ के जूठे बेर खाये थे तो फिर यह रामचरित मानस कहां से नफरती हो गई।भगवान राम ने अपने वनवास में समाज के सभी वर्गों भेंट और मित्रता स्थापित की और सभी को सम्मान देते हुए अपनी विजय यात्रा सम्पूर्ण की।भगवान राम समन्वयकारी आचरण स्वभाव के थे और उन्होंने कहीं भी, कभी भी, किसी के साथ, किसी भी प्रकार का गलत व्यवहार नहीं किया तो रामचरित मानस नफरती और बकवास कैसे हो गया।

रामचरित मानस एक ऐसा महान ग्रंथ है जो समाज के हर व्यक्ति को अच्छे संस्कार ही सिखाता है। भारत का प्रत्येक परिवार राम सा आदर्श पुत्र ही चाहता है जिसमें अपने माता –पिता गुरू का सम्मान, भातृ प्रेम, त्याग और समन्वय जैसे गुण हों अतः रामचरित मानस का अपमान सम्पूर्ण भारतीयता और परिवार रूपी संस्था का भी अपमान है जिसे कोई भी स्वीकार्य नहीं करेगा।

रामचरित मानस पर विदेशी विचारकों ने भी अपने विचार व्यक्त किये हैं सीएफ एंड्रयूज जो भारत में मिशनरी नीतियों के सम्बंधित काम कर रहे थे उन्होंने लिखा है कि रामचरित मानस में वर्णित प्रभु श्रीराम जी के चरित्र के चलते लोग हिन्दू धर्म के साथ काफी हद तक जुड़ चुके हैं। एक अन्य विद्वान जे एम मैकफी ने जब रामचरित मानस का अनुवाद किया तो उन्होंने इसे उत्तर भारत का बाइबिल कहा और कहा कि, यह आपको हर गांव में मिलेगी, इतना ही नहीं, जिस घर पर यह पुस्तक होती है उसके स्वामी का आदर पूरे गांव में होता है।रामचरित मानस आज भी उसी प्रकार लोकप्रिय है।रामचरित मानस पर खड़े किए जा रहे विवाद के बहाने भारतीय समाज को तोड़ने का एक बहुत बड़ा प्रयास किया जा रहा है जो एक बार फिर विफल ही होगा।

आज रामचरित मानस पर जो हमला हो रहा है वह आगामी 2024 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए हो रहा है। यह एक बहुत खतरनाक राजनैतिक प्रयोग है क्योकि इन सभी आसुरी ताकतों को स्पष्ट हो गया है कि सनातन का नया केंद्र अयोध्या धाम होगा। यदि मानस के अपमान से क्षुब्ध लोग तुलसीदास के मन्त्र – “जाके प्रिय न राम बैदेही, तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्दपि परम सनेही’ को लेकर आगे बढ़ेंगे तो 2024 में ये रामद्रोही कहीं दिखाई नहीं पड़ेंगे।

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