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सुरंगों और गुफाओं की रोचक एवं रहस्यमयी दास्तान

पुराने समय से लेकर वर्तमान समय तक सुरंगों और गुफाओं का महत्व बरकरार हैं। जब हम इनके इतिहास और महत्व को देखते हैं तो एक रोचक दास्तान और रहस्यमयी तथ्यों का पता चलता हैं। प्राचीन काल से आज तक हमें भूमिगत, पहाड़ी और समुंद्री सुरंगों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। पुराने समय में मध्य काल तक आज की तरह सड़कें नहीं होती थी। पैदल चलने से पगडंडिया बन जाती थी और घोड़ों एवं हाथियों के चलने से एक रास्ता बन जाता था। ये ही आवागमन के मार्ग हुआ करते थे। जंगल घने और इनमें हिंसक जानवर होने की वजह से गुजरना खतरनाक होता था। उनसे बचने के लिए मनुष्य ऐसे मार्ग अपनाता था जो सुरक्षित होते थे। जोखिम भरे आवागमन की समस्या के चलते प्रायः पहाड़ों को खोद कर सुरंग बनाई जाती थी। कुछ भूमि के अंदर बहते पानी की धारा से प्राकृतिक रूप से बन जाती थी। सुरक्षित मान कर इनका उपयोग आने-जाने के लिए किया जाता था।

अति प्राचीन समय से भारत में गुफा मंदिरों के रूप में मानव द्वारा विशाल पैमाने पर सुरंगें लगाने के प्रचुर उदाहरण देखने को मिलते हैं। कुछ प्राचीन गुफाओं के मुख्य द्वारों की उत्कृष्ट वास्तुकला आधुनिक सुरंगों के मुख्यद्वारों के आकल्पन में शिल्पियों का मार्गदर्शन करती हैं।अजंता, एलोरा और एलीफैंटा की गुफाएँ सारे संसार के वास्तुकलाविदों का ध्यान आकर्षित कर चुकी हैं।

बारूद का आविष्कार होने से पहले सुरंगें बनाने की प्राचीन विधियों में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई थी। सतरवीं सदी के उत्कीर्ण चित्रों में सुरंग बनाने की जो विधियाँ-प्रदर्शित हैं, उनमें केवल कुदाली, छेनी, हथौड़ी का प्रयोग और अग्रचालन के लिए नरम चट्टान तोड़ने के उद्देश्य से लकड़ियों की आग जलाना ही दिखाया गया है। संवातन के लिए आगे की ओर कपड़े हिलाकर हवा करने और कूपकों के मुख पर तिरछे तख्ते रखने का उल्लेख भी मिलता है। रेलों के आगमन से पहले सुरंगें प्राय: नहरों के लिए ही बनाई जाती थीं और इनमें से कुछ तो बहुत प्राचीन हैं। रेलों के आने पर सुरंगों की आवश्यकता विशेष तौर पर महसूस की गई।

अनुमान है कि संसार भर में शायद 5,000 से भी अधिक सुरंगें रेलों के लिए ही खोदी गई हैं। अधिकांश पर्वतीय रेलमार्ग सुरंगों में ही होकर जाते हैं। मेक्सिको रेलवे में 105 किमी लंबे रेलपथ में 21 सुरंगें और दक्षिणी प्रशांत रेलवे में 32 किमी की लंबाई में ही 11 सुरंगें हैं, जिनमें एक सर्पिल सुरंग भी हैं। संसार की सबसे लंबी लगातार सुरंग न्यूयार्क में 1917-24 ई. में कैट्सकिल जलसेतु के विस्तार के लिए बनाई गई थी। यह शंडकेन सुरंग 288 किमी लंबी है। कालका शिमला के छोटे से रेलमार्ग पर कई छोटी सुरंगें हैं, जिनमें सबसे बड़ी सुरंग की लंबाई करीब 1137 मीटर है।

गुप्त और मध्यकाल में बचने और भागने के लिए कई सुरंगें और गुफाएं बनाई गई थी जो आज तक मौजूद हैं। बहुत से राजा इन में खजाना छुपाकर रखते थे। इनमें से कुछ तो ऐसी है जिनमें हाथी, घोड़े और सैनिकों की एक पूरी टूकड़ी आसानी से इस पार से उस पार चली जाती थी। इतिहास में अनेक उदाहरण हैं, जब इनका उपयोग सुरक्षित रहने, युद्ध के लिए मन्त्रणा कर रणनीति तैयार करने, युद्ध सामग्री अस्त्र-शस्त्र,बारूद रखने आदि के लिए किया जाता था। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी सटीक उदाहरण हैं, जिन्होंने न केवल पहाड़ियों में सुरंगें-गुफाएं बनवाई वरण युद्ध के दौरान इनका खूब उपयोग किया। शिवजी की छापामार युद्ध प्रणाली में इनकी उपादेयता सर्वविदित है।

भारत के किलों और महलों में आज भी सुरंगें देखी जा सकती हैं। खनिज कार्य के लिये खानों में, नोसेना द्वारा जल में रक्षात्मक सुरंगें बनाई जाती हैं। सुरंगों का उपयोग आक्रमण एवं रक्षा दोनों के लिए किया जा सकता है। रक्षा के लिए उपयोग किए जाने पर ये बंदरगाह और तट की रक्षा करती हैं। ये तटीय जहाजों को शत्रु के आक्रमण से बचाती हैं। यदि सुरंग को आक्रमण के लिए प्रयुक्त करना है तो शत्रुतट से दूर बंदरगाह के प्रवेश मार्ग या अभ्यास क्षेत्र में सुरंगें बिछाई जाती हैं। इस प्रकार नाकेबंदी से सुरक्षा कर सकते हैं या शत्रु के जहाजों को डुबा सकते हैं। समुद्र तलीय सुरंगें साधारतया आक्रमण क्षेत्र के लिए ही होती हैं। सुरंग तोड़ने वालों के कार्य को अधिक दुष्कर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की सुरंगें एक ही क्षेत्र में रखी जाती हैं ताकि सुरंग हटाने के लिए एस के अधिक विधियों का प्रयोग करना पड़े। सुरंगों के फायर में अवरोध उत्पन्न करके शत्रु के सुरंग तोड़ने की समस्या को जटिल बनाया जाता है।

सुरंगों का निर्माण भारत के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व में किया जाता रहा हैं। विश्व की महत्वपूर्ण सुरंगों में माउंट सेनिस 14 किमी लम्बी , सेंट गोथार्ड 15 किमी , ल्यूट्शबर्ग , यूरोप के आल्प्स पर्वत में कनाट , कनाडा के रोगर्स दर्रे में मोफट 10 किमी एवं न्यूकैस्केड संयुक्त राष्ट्र अमरीका के पर्वतों की सुरंगें शामिल हैं। सुरंग निर्माण का बहुत महत्वपूर्ण कार्य जापान में हुआ है। वहाँ सन्‌ 1918-30 में अटायो और पिशीमा के बीच खोदी हुई सुरंग टाना दो पर्वतों और एक घाटी के नीचे से होकर जाती है। इसकी अधिकतम गहराई 395 मीटर और घाटी के नीचे 182 मीटर है। भारत में सड़क के लिए बनाई गई सुरंग जम्मू-श्रीनगर सड़क पर बनिहाल दर्रे पर है, जिसकी लंबाई 2790 मीटर है। यह समुद्रतल से 2184 मी. ऊपर है तथा दुहरी है, जिससे ऊपर और नीचे जाने वाली गाड़ियाँ अलग-अलग सुरंग से जा सकती हैं। भारत में आधुनिक समय में पिछले सालों में सड़क और रेल यातायात की दूरी कम कम करने के लिये सुरंगों का निर्माण किया जा रहा हैं। भारत की प्रमुख सुरंगें इस प्रकार हैं।

रोहतांग सुरंग “अटल टनल”
हिमाचल प्रदेश में यह 9.02 किमी. लम्बी में दो लेन की यह सुरंग रोहतांग दर्रा के नीचे 3878 मीटर की ऊंचाई पर बनाई गई है । इसे देश की सबसे ऊंचाई पर बनी रोड सुरंग माना जाता है। यह सुरंग पूरे साल मनाली से लाहौल और स्पिति वैली तक रोड सम्पर्क मुहैया कराती हैं। इसके निर्माण पर 1700 करोड़ रुपये व्यय किये गये हैं। इसके बनने से लेह-मनाली हाईवे की लंबाई इससे 46 किमी. कम हुई है और यात्रा का समय भी 4 से 5 घण्टे कम हुआ है। अब इस सुरंग का नया मैन “अटल टनल” कर दिया गया है,जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ही माह पूर्व किया था। यह सुरंग मनाली को वर्ष भर लाहौल स्पीति घाटी से जोड़े रखेगी, जबकि पहले घाटी करीब छह महीने तक भारी बर्फबारी के कारण शेष हिस्से से कटी रहती थी। इसका दक्षिणी किनारा मनाली से 25 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 3060 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि उत्तरी किनारा लाहौल घाटी में तेलिंग और सिस्सू गांव के नजदीक समुद्र तल से 3071 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सुरंग 10.5 मीटर चौड़ी है जिस पर 3.6 x 2.25 मीटर का फायरप्रूफ आपातकालीन निकास द्वार बना हुआ है। ‘अटल टनल’ से रोजाना 3000 कारें, और 1500 ट्रक 80 किलोमीटर की स्पीड से निकल सकेंगे।

पीर पंजाल सुरंग
एशिया की दूसरी सबसे बड़ी 11.215 किमी. लम्बी रेलवे की यह सुरंग जम्मू-कश्मीर में है,जिसे बनिहाल रेलवे सुरंग भी कहा जाता है। इसे हिमालय की पीर पंजाल रेंज से लेकर बनिहाल शहर के उत्तरी हिस्से तक बनाई गई है। इस सुरंग को पार करने में रेलगाड़ी को साढ़े नौ मिनट लगते हैं।

चेनानी-नशरी (पटनीटॉप)
जम्मू एवं कश्मीर के उधमपुर जिले के चेनानी को रामबन जिले के नशरी से जोड़ने वाली 9.2 किमी. लम्बी यह सुरंग भी एशिया की सबसे लंबी सुरंगों में से एक है। हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों के बीच बनी यह सुरंग जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा है। हाल ही में इसे खोला गया है और इसकी वजह से श्रीनगर और जम्मू के बीच का रास्ता सिर्फ दो घंटे में तय हो जाता है।

कार्बूड सुरंग
यह महाराष्ट्र के कोंकण रेलवे मार्ग पर भारत की दूसरी सबसे लंबी 6.5 किमी.की रेलवे सुरंग है जो रत्नागिरी के कोंकण तट पर स्थित है। यह सुरंग इस रेल मार्ग पर उकशी व भोखे रेलवे स्टेशन के मध्य बनाई गई है। इस सुरंग के कारण सम्पर्क (कनेक्टिविटी) मेें काफी सुधार हुुुुआ हैैै ।

नाटूवाड़ी सुरंग

महाराष्ट्र में ही करनजाड़ी और दीवान स्टेशनों के मध्य स्थित 4.3 किमी. लंबी कोंकण रेलवे मार्ग की दूसरी सबसे लंबी सुरंग है। यह वर्ष 1997 में एक पहाड़ी इलाके में बनाया गईं थी। इस सुरंग खुदाई के लिये उपकरण बाहर से मंगवाए गए थे।

टाइक सुरंग
महाराष्ट्र में यह सुरंग 4.07 किमी. लंबी सुरंग है जो सहयाद्री रेंज में रत्नागिरी और निवासर के बीच स्थित है। इस सुरंग में प्रवेश से पूर्व का नजारा बेहद खूबसूरत है।

बेरडेवाड़ी सुरंग
महाराष्ट्र के अडावली और विलावाड़े रेल स्टेशनों के मध्य स्थित यह सुरंग 4 किलोमीटर लंबी है। यह कोंकण रेलवे मार्ग का हिस्सा है और गोवा व कोंकण इलाकों में यात्रा करते वक्त यह बीच में पड़ती है।

घाट की घुनी सुरंग
राजस्थान में जयपुर में पूर्वी हिस्से से प्रवेश करने और बाहर निकलने के लिए सिर्फ यही सुरंग है। इसकी लंबाई 2.8 किमी. है। इसके आसपास कई ऐतिहासिक इमारते हैं और इसे झलाना हिल्स पर बनाया गया है। साथ ही पूरे रास्ते पर आधुनिक लाइटें भी लगाई गई हैं। राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र उदयपुर एवं बूंदी में भी सुरंगों का निर्माण किया गया है और देश के कई हिस्सों में सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है।

संपर्क
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार
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कोटा, राजस्थान
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