Friday, March 29, 2024
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पंचमहाभूत लोकोत्सव के बहाने जीवनशैली की पड़ताल

आज से ठीक पांच दिन बाद कोल्हापुर के कनेरी गांव में एक बाढ़ आने वाली है- लोगों की बाढ़। एक अनुमान के अनुसार यहां 20 से 26 फरवरी के बीच लगभग 30 लाख लोग आएंगे। इसके अलावा करोड़ो लोग ऐसे होंगे जो यहां के समाचारों को मीडिया के माध्यम से सुनेंगे, पढ़ेंगे या देखेंगे। कनेरी गांव में श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ की ओर से जो पंचमहाभूत लोकोत्सव आयोजित हो रहा है, वह महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोआ की एक बड़ी घटना है। इसकी कई सारी बातें हैं जिस पर खूब चर्चा होगी लेकिन इसकी एक बात ऐसी है जो इतिहास का हिस्सा बनेगी। यह बात इस आयोजन की टैगलाइन में छिपी है। सौभाग्य से इस टैगलाइन पर काम करने की जिम्मेदारी स्वामी जी ने मुझे ही सौंप रखी थी।

पंचमहाभूत लोकोत्सव की टैगलाइन तय करते समय मुझे सबसे पहले रामचरित मानस की वह पंक्तियां याद आईं जिसमें भगवान राम कहते हैं, “छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।” भारत के लोकमानस में यह बात बहुत गहरे समाई है कि हमारा शरीर पांच तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) से बना है जिन्हें पंचमहाभूत कहा गया है। पांच महाभूतों का यह सिद्धांत अतीत में बौद्ध मतावलंबियों ने दूर-दूर देशों तक पहुंचा दिया। धीरे-धीरे यह सिद्धांत एक ऐसी कुंजी बन गया जिससे दुनिया के सभी रहस्य समझे और समझाए गए।

जापानी योद्धा मियामातो मुस्सासी ने इन्हीं पांच तत्वों को आधार बनाकर एक किताब लिखी जिसका नाम है “गोरिन-नो-शो”। पांच भूतों को समझने के फेर में मैंने मियामातों की इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद भी देखा। द बुक आफ फाइव रिंग्स के नाम से अंग्रेजी में छपी मुस्सासी की यह किताब मुझे बहुत पसंद आई। मुस्सासी का चरित्र मुझे इतना आकर्षक लगा कि मैंने 1984 में उस पर बनी एक जापानी टीवी सीरीज भी देख डाली। इससे मेरा शौक तो पूरा हो गया लेकिन टैगलाइन के काम में कोई प्रगति नहीं हुई।

गतिरोध की यह स्थिति जब कई दिन तक बनी रही तब मैंने अपने मित्र सोपान जोशी को याद किया। वे जनसत्ता अखबार के पूर्व संपादक श्री प्रभात जोशी जी के सुपुत्र हैं। पर्यावरण की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘डाउन टु अर्थ’ में उन्होंने कई वर्ष कार्य किया। फिर उन्होंने ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के सुप्रसिद्ध लेखक और गांधी मार्ग पत्रिका के संपादक श्री अनुपम मिश्र जी के साथ काम किया। सोपान जी ने स्वयं भी एक बहुत ही अच्छी किताब लिखी है जिसका नाम है ‘जल थल मल’। हिन्दी में पर्यावरण के विषय पर इतनी शोधपरक किताब मेरी जानकारी में कोई और नहीं है। सोपान जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कुछ पंक्तियों में उनका परिचय देना आसान नहीं है। मेरे लिए वे एक चलती-फिरती लाइब्रेरी के समान है।

मुझे सोपान जी की याद उनके एक लेख के कारण आई थी जिसे उन्होंने कुछ महीने पहले मुझे बड़े आग्रह के साथ पढ़ने के लिए दिया था। कोल्हापुर में मेरे पास वह लेख नहीं था, इसलिए मैंने सीधे उन्हें फोन किया और कुछ ही मिनट में वह लेख मेरे लैपटाप पर था। उस लेख का नाम है ‘कलियुग की दहलीज, अज्ञान का रास्ता’। लगभग पांच हजार शब्दों का यह लेख सदानीरा पत्रिका में ग्रीष्म 2022 के ‘एंथ्रोपोसीन’ विशेषांक में छपा था।

अपने लेख में सोपान जी ने अन्य बातों के अलावा 1992 के रिओ सम्मेलन और उसमें तब के अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज एच. डब्ल्यू बुश के उस चर्चित जुमले का उल्लेख किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि वे अमरीकीयों की रईस जीवनशैली से कोई समझौता नहीं करेंगे। उनका आशय था कि धरती और इसके पर्यावरण का जो होना है हो, वे तो अपनी जीवनशैली नहीं बदलेंगे।

मैंने तय किया कि रिओ सम्मेलन की इस घटना को मुझे अपनी टैगलाइन में शामिल करना है। रिओ की उस घटना को आज के परिप्रेक्ष्य में फिट करने की कोशिश करते हुए मेरा ध्यान जी-20 देशों पर चला गया जिसका अमेरिका भी एक सदस्य है। यह दैवी संयोग है कि वर्ष 2023 में इन देशों की अध्यक्षता भारत कर रहा है। जी-20 का संदर्भ आते ही मैं सोचने लगा कि क्यों न इस मौके का सदुपयोग करते हुए कुछ ऐसा कहा जाए जिससे पूरी दुनिया को एक संदेश जाए। पंचमहाभूत लोकोत्सव जी-20 की औपचारिक रचना में कहीं नहीं है, किंतु यदि उसके अध्यक्ष देश भारत में 30-35 लाख लोग इकट्ठा होकर पर्यावरण के मुद्दे पर कुछ समाधान प्रस्तुत करेंगे तो दुनिया का ध्यान उस पर जरूर जाएगा।

टैगलाइन का भाव मेरे ध्यान में आ चुका था किंतु शब्द अभी भी मेरी पहुंच से दूर थे। मुझे इस लोकोत्सव के माध्यम से जी-20 देशों को संदेश देना था कि भारत की जनता को यदि पर्यावरण और अपनी जीवनशैली में से एक को चुनना हुआ तो वह पर्यावरण को ही चुनेगी। हो सकता है कि भारत की देखा-देखी दूसरे बड़े देशों की जनता भी अपनी जीवनशैली को पर्यावरण के संदर्भ में जांचना-परखना शुरू कर दे। अगर जी-20 देशों की जनता अपनी जीवनशैली में आवश्यक सुधार करने के बारे में सोचना शुरू कर दे तो पर्यावरण के लिए भला इससे शुभ और क्या हो सकता है।

यह सब सोचकर मैंने पंचमहाभूत लोकोत्सव की टैगलाइन तय की- ‘एक संदेशा जी-20 को’। मुझे यह टैगलाइन अच्छी लग रही थी। स्वामी जी के हाव-भाव से लगा कि उन्हें भी यह पसंद है। किंतु जब मैंने इस बारे में अपने अन्य साथियों से बात की तो उनकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं थी। इस कारण मुझे एक बार फिर से नई टैगलाईन पर काम करना पड़ा। पिछली टैगलाइन के भाव में कोई समस्या नहीं थी, समस्या केवल शब्दों को लेकर थी। मैं अपने भावों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द नहीं चुन पाया था।

इसी बीच जीवनशैली के बारे में इंटरनेट पर कुछ और खंगालते हुए मुझे वाशिंगटन स्टेट युनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट मिली जिसमें मुझे अमरीकी जीवनशैली की एक झलक दिखाई दी। इस रिपोर्ट में युनिवर्सिटी ने बताया है कि अमरीका में लोग एक दिन में 815 बिलियन कैलौरी भोजन करते हैं जो उनकी जरूरत से 200 बिलियन कैलोरी अधिक है। यह इतना भोजन है जिससे 8 करोड़ लोगों का पेट भर सकता है। इसके अलावा अमरीकी प्रतिदिन 2 लाख टन खाद्य सामग्री कूड़े में फेंक देते हैं। कूड़ा पैदा करने में अमरीकी लोगों का जवाब नहीं है। एक औसत अमेरिकी 75 साल की उम्र तक 52 टन कचरा पैदा करता है। पानी की बात करें तो एक अमरीकी रोज 159 गैलन पानी ईस्तेमाल करता है जबकि दुनिया की आधी से अधिक आबादी केवल 25 गैलन में गुजारा कर लेती है।

अमरीकी समृद्धि के इस विद्रूप स्वरूप को जानकर मेरे मन में अनायास ही विचार आया कि जीवनशैली खराब तो सब खराब। तभी मुझे लगा कि अरे, इसी के विलोम में तो मेरी टैगलाइन छिपी है- जीवनशैली ठीक तो सब ठीक। अपने शरीर, इस धरती और संपूर्ण ब्रह्मांड में उपस्थित पांच भूतों को साधने का इससे बढ़िया कोई और तरीका हो ही नहीं सकता। बाद में मैंने जब चर्चा की तो सभी को यह लाइन पसंद आई। इस प्रकार सर्वसम्मति से पंचमहाभूत लोकोत्सव की टैगलाइन तय हुई- ‘जीवनशैली ठीक तो सब ठीक’।

आयोजकों की कोशिश है कि टैगलाइन के रूप में यह संदेश जन-जन तक पहुंचे। इस बारे में स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी कहते हैं, “भारत में एक परंपरा रही है कि यहां गंभीर से गंभीर बातें भी लोगों तक लोकोत्सवों एवं उससे जुड़े रीति–रिवाजों और प्रतीकों के माध्यम से पहुंचाई जाती हैं। इसी परंपरा का पालन करते हुए हम अपनी बात को लोकोत्सव या मेले के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएंगे। हम लोगों को बताएंगे कि वे प्रकृति से अलग नहीं हैं। वे भी उन्हीं पांच तत्वों से बने हैं, जिनसे यह प्रकृति बनी है। प्रकृति और मनुष्य दो नहीं एक ही हैं, इसे स्थापित करने के साथ ही हम जीवनशैली से जुड़े हुए उन पहलुओं को बदलने का प्रयास करेंगे जिनसे पर्यावरण को क्षति पहुंचती है। यह एक लंबी और अनवरत प्रक्रिया होगी। आगामी 20 से 26 फरवरी 2023 को कनेरी गांव में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव इसी प्रक्रिया की पहली कड़ी है।“

*विमल कुमार सिंह*
संयोजकः ग्रामयुग अभियान
फोन- 8840682591,
9582729571
ईमेल- [email protected]

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