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बड़ी देर कर दी मेहरबाँ आते आते …

वाशिंगटन डी सी में डोनाल्ड ट्रम्प के आग लगाऊ भड़काऊ भाषण और उसके बाद उसके समर्थकों द्वारा कैपिटल हिल पर जो हिंसा का तांडव किया गया उसे पूरी दुनिया ने देखा. लोकतंत्र के साथ किए गये ट्रम्प के इस घटिया और क्रूर मजाक का ख़ामियाज़ा अमेरिका सत्ता परिवर्तन के बाद भी काफ़ी समय तक झेलता रहेगा।

इस पूरे घटनाक्रम में मैंने एक ख़ास बात नोट की , पिछले चार साल से मुँह में दही जमा कर बैठे रिपब्लिकनों में से कुछ ने अपनी चुप्पी तोड़ दी, ख़ास तौर पर सत्तासीन उप राष्ट्रपति माइक पेंस का कल का बयान यह उनकी पार्टी को झुंड में बदलने वाले सनकी क़िस्म राष्ट्रपति ट्रम्प के खिलाफ पहला ताकतवर असहमति स्वर था . अगर रिपब्लिकन पहले से ही अपने दिल की आवाज़ सुन कर पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जीवित रखते तो स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती।

दरअसल ट्रम्प की लगातार मनमानी और आलोकतांत्रिक सनकों की आग से अमेरिका कुछ हद तक बचा रहा उसके लिए श्रेय वहाँ के चौथा खम्भे मिडिया और शीर्ष व्यवसायियों को जाता है जिन्होंने सारे दबावों के बावजूद सच को सच कहने की हिम्मत की है।

आपको क्या लगता है ट्रम्प के सत्ता से हटने के बाद अमेरिका में सब कुछ ठीक हो जाएगा ? सही उत्तर है – नहीं. सच यह है कि अमेरिका के शुरुआती दिनों से वहाँ का श्वेत समुदाय अपने आप को काले , भूरे , पीले लोगों से श्रेष्ठ मानता रहा है , अपनी इसी हेकड़ी के चलते उसने ग़ैर श्वेत के साथ ज़बरदस्त भेदभाव किया , यहाँ तक कि लम्बे समय तक मताधिकार से भी वंचित रखा , वहाँ एक लम्बी लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने किसी तरह अश्वेतों को समान अधिकार दिया, जिसे अपनी तथाकथित जातीय श्रेष्ठता के कारण श्वेत जनसंख्या का बड़ा वर्ग आज तक मन से स्वीकार नहीं कर पाया है. ट्रम्प ने उसी वर्ग को साथ लेकर अपने लिए एक पक्का वोट बैंक तैयार करने की लगातार कोशिश की है जिसमें काफ़ी हद तक कामयाब भी रहा. अगर ट्रम्प सत्ता से हट भी जाता है वह विपक्ष में रह कर भी हवा देता रहेगा. अगर रिपब्लिकनों को सचमुच एक सर्वमान्य राष्ट्रीय दल बना रहना है तो ट्रम्प की इस विभाजनकारी नीति को मूक समर्थन देना बंद करना होगा . यह काम मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं है उसके लिए पार्टी को वैकल्पिक लीडरशिप तैयार करनी होगी.

मैं एक लम्बे समय से अमेरिका आता जाता रहता हूँ और वहाँ के राजनीतिक घटनाक्रम को क़रीब से समझने की कोशिश करता हूँ . वहाँ के प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के ज़्यादातर अमेरिकी अपने आप को डेमोक्रेट पार्टी के क़रीब पाते हैं , लेकिन भारत में कुछ ऐसी छवि बनी हुई है की ट्रम्प भारत और भारतियों के मित्र हैं , जब कि सचाई यह है कि अमेरिका में रहने वाले भारतियों के जीवन को सबसे ज़्यादा अनिश्चित ट्रम्प ने अपने शासन काल में बनाया. इन अधिकांश प्रवासी भारतीयों के सोच के ठीक उलट भारत में इस बीच में एक ऐसा वर्ग उभरा है जो ट्रम्प की जीत के लिए हवन और यज्ञ करता दिखा है. जो आगे चल कर अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।

ट्रम्प ने जिस तरह से अपने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ किया , ख़ास तौर से कोविड को ग़ैर सम्वेदनशील तरीक़े से निपटने की कोशिश की और निरंकुश शासन चलाया, इस सब के लिए ट्रम्प से कहीं ज़्यादा उनकी रिपब्लिकन पार्टी का बड़ा वर्ग ज़िम्मेवार है जिसने पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को तिल तिल करके मरने दिया और अपने आप को देश और दुनिया की नज़र में उपहास का पात्र बना लिया।

इतना सब कुछ होने के बाद भी अमेरिका में आशा की किरण इस लिए बाक़ी है क्योंकि वहाँ का मीडिया नागरिकों और उनके सरोकारों के प्रति सजग और जागरूक रहा है. शायद इसी कारण ट्रम्प की ज़बरदस्त धींगा मुश्ती के बावजूद चुनाव उसके पक्ष में नहीं हो पाए।

ट्रम्प का अमेरिका की राजनीति में उदय , उद्भव और पतन दुनिया के इतिहास का एक बड़ा सबक़ रहेगा।

(लेखक स्टैट बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और लंबे समय तक अमरीका में रहे हैं )