Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेजलेबी कितनी सीधी है, कितनी मीठी है

जलेबी कितनी सीधी है, कितनी मीठी है

जलेबी पर कोई पोस्ट पढ़ना या देखना थोड़ा सा अचंभित होना स्वभाविक है, किन्तु वास्तविकता यह है कि जलेबी हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो की औषधि के साथ साथ बहुत ही स्वादिष्ट मिष्ठान भी है जो काफी गुणकारी भी है। आज आपको जलेबी के विषय में कुछ रोचक और दुर्लभ जानकारी देते हैं….

दुनिया के 90 फीसदी लोग जलेबी का संस्कृत और अंग्रेजी नाम नहीं जानते? सुबह जलेबी के नाश्ते में है बहुत गुणकारी, साथ ही जाने…. जलेबी से जुड़े दिलचस्प किस्से…..

क्या है जलेबी?

उलझनें भी मीठी हो सकती हैं,
जलेबी…… इस बात की मिसाल है।

जलेबी में जल तत्व की अधिकता होने से इसे जलेबी कहा जाता है। मानव शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, इसलिए इसे खाने से जलतत्व की पूर्ति होती है।

जलेबी को रोगनाशक ओषधि भी बताया है। गर्म जलेबी चर्म रोग की बेहतरीन चिकित्सा है।

जलेबी के विभिन्न नाम..

संस्कृत में कुण्डलिनी

महाराष्ट्र में जिलबी

बंगाल में जिलपी कहते है ।

जलेबी का भारतीय नाम जलवल्लिका है। अंग्रेजी में जलेबी को स्वीट्मीट (Sweetmeet) और सिरप फील्ड रिंग कहते हैं।

जलेबी के भेद वेद में भी लिखे है।

महिलाएं अपने केशों से “जलेबी जूड़ा” भी बनाती हैं।

जलेबी का जलवा…
बंगाल में पनीर की,

बिहार में आलू की,

उत्तरप्रदेश में आम की,

मप्र के बघेलखण्ड-रीवा, सतना में मावा की जलेबी खाने का भारी प्रचलन है।

कहीं-कहीं चावल के आटे की और उड़द की दाल की जलेबी का भी प्रचलन है।

ग्रामीण क्षेत्रों में दूध-जलेबी का नाश्ता करते हैं।

जलेबी के रूप अनेक….

जलेबी डेढ अण्टे, ढाई अण्टे और साढे तीन अण्टे की होती है। अंगूर दाना जलेबी, कुल्हड़ जलेबी आदि की बनावट वाली गोल-गोल बनती है।

जलेबी से तात्पर्य….

जलेबी दो शब्दों से मिलकर बनता है। जल +एबी अर्थात् यह शरीर में स्थित जल के ऐब (दोष) दूर करती है। शरीर में आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि एवं ऊर्जा में वृद्धि कर स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत करने में सहायक है। जलेबी के खाने से शरीर के सारे ऐब (रोग दोष )जल जाते हैं ।

जलेबी ओषधि भी है….
जलेबी अर्थात जल+एबी। यह शरीर में जल के ऐब, जलोदर की तकलीफ मिटाती है। जलेबी की बनावट शरीर में कुण्डलिनी चक्र की तरह होती है।

अघोरी की तिजोरी…..

अघोरी सन्त आध्यात्मिक सिद्धि तथा कुण्डलिनी जागरण के लिए सुबह नित्य जलेबी खाने की सलाह देते हैं। मैदा, जल, मीठा, तेल और अग्नि इन 5 चीजों से निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है। जलेबी खाने से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाॅंच फनवाले शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है।

अपने ऐब (दोष) जलाने, मिटाने हेतु नित्य जलेबी खाना चाहिये। वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म चाशनी सहित जलेबी खावें।

रोग निवारक जलेबी….
कम लोग यह जानते है जलेबी ओषधि भी है।
जो लोग सिरदर्द, माईग्रेन से पीड़ित हैं वे सूर्योदय से पूर्व प्रातः खाली पेट 2 से 3 जलेबी चाशनी में डुबोकर खाकर पानी नहीं पीएं तो सभी तरह मानसिक विकार जलेबी के सेवन सेे नष्ट हो जाते हैं।

जलेबी पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए यह चमत्कारी ओषधि है। सुबह खाने से पांडुरोग दूर हो जाता है।

जिन लोगों के पैर की बिम्बाई फटने या त्वचा निकलने की परेशानी रहती हो हो वे 21 दिन लगातार जलेबी का सेवन करें।

जलेबी का जलवा….

जलवा दिखाने की इच्छा रखने वालों को हमेशा सुबह नाश्ते में जलेबी जरूर खाना चाहिये, जिन्हे ईश्वर से जुड़ने की कामना हो, तब जलेबी खायें।

आयुर्वेदिक जड़ी बूटी भी है जलेबी…

जंगली जलेबी नामक फल उदर एवं मस्तिष्क रोगों का नाश करता है। भावप्रकाश निघण्टु में उल्लेख है –

जो जंगल जलेबी खावै,

दुःख संताप मिटावै।

जलेबी खाये जगत गति पावै!

जलेबी खाने वालों को ब्रह्मचर्य का विधिवत् पालन करना चाहिये ।

‘‘टपकी जाये जलेबी रस की’’

अतः आयुर्वेद में विवाह होने तक स्वयं पर अंकुश रखने का निर्देश है।

जलेबी केे फायदे…

जलने, कुढन में उलझे लोग यदि जानवरों को जलेबी खिलाये तो मन शांत होता है।

क्योंकि मन में अमन है, तो तन चमन बन जाता है और तन ही हमारा वतन है नहीं तो सबका पतन हो जाता है इसे जतन से संभालो।

जलेबी की क़ई कहावतें है…..

खाये जलेबी बनो दयालु
तहि चीन्हे नर कोई।
तत्पर हाल-निहाल करत हैं
रीझत है निज सोई।

जलेबी खाने से दया, उदारता उत्पन्न होती है। पहचान बनती है। आत्मविश्वास आता है।

टूटी की नही बनी है बूटी
झूठी की नही बनी है खूॅंटी
फूटी को नही बनी है सूठी
रूठी तो बने काली कलूटी

अर्थात – जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास अंदर से टूट जाये उसको ठीक करने की कोई बूटी यानी ओषधि आज तक नहीं बनी है। जो आदमी बार -बार बदलता है इनकी एक खूटी यानि ठिकाना नही होता। जिसकी किस्मत फूटी हो, जो भाग्यहीन हो, उसका भला सूफी-संत भी नही कर सकते और स्त्री रूठ जाये तो काली का भयंकर रूप धारण कर लेती है। अतः इन सबका इलाज जलेबी है।

रोज सुबह जलेबी खाओ।
भव सागर से पार लगाओ ।

खाली पेट करे मुख मीठा
विद्वान वाद-विवाद बसो दे झूठा …..

बाबा कीनाराम सिद्ध अवधूत लिखते हैं –

बिनु देखे बिनु अर्स-पर्स बिनु,
प्रातः जलेबी खाये जोई ।
तन-मन अन्तर्मन शुद्ध होवे
वर्ष में निर्धन रहे न कोई

एक संत ने जलेबी का नाता आदिकाल से वताया है-

पार लगावे चैरासी से, मत ढूके इत और।

जलेबी का नियम से प्रातःकाल सेवन करें, तो बार-बार के जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है। जलेबी के अलावा अन्य मिठाई की कभी देखें भी नहीं।

एक बहुत मशहूर कहावत है कि-

तुम तो जलेबी की तरह सीधे हो

एक लोक गीत है –

मन करे खाये के जिलेबी
जब मोसे बनिया पैसा माॅंगे, वाये दूध-जलेबी खिलादऊॅंगी

जलेबी बनाने हेतु आवश्यक सामग्री:-

मैदा 900 ग्राम, उड़द दाल 50 ग्राम पानी में गला कर पीस कर 500 ग्राम मैदा में 50 ग्राम दही मिलाकर दो दिन पूर्व खमीर हेतु घोल कर रखे शेष मैदा जलेबी बनाते समय खमीर में मिलाये शक्कर करीब 1 किलो 300-400 ML पानी में डालकर चाशनी बनाये। जलेेबी को बहुत स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में एक चम्मच नीबू का रस और केशर मिला सकते हैं।

जलेबी के खाने से लाभ….

एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा।

धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।।

(आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश पृष्ठ 740)

अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली, पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय को तृप्त करने वाली होती है।

जलेबी का अविष्कार…

दुनिया में सर्वप्रथम जलेबी का अविष्कार किसने किया यह तो ज्ञात नहीं हो सका। लेकिन उत्तरभारत का यह सबसे लोकप्रिय व्यंजन है। भारत की जलेबी अब अंतरराष्ट्रीय मिठाई है।

प्राचीन समय के सुप्रसिद्ध हलवाई शिवदयाल विश्वनाथ हलवाई के अनुसार जलेेबी मुख्यतः अरबी शब्द है।

तुर्की के मोहम्मद बिन हसन लेखक ने “किताब-अल-तबिक़” नाम की एक अरबी किताब में जलेबी का असली पुराना नाम जलाबिया लिखा है। 300 वर्ष पुरानी पुस्तकें “भोजनकटुहला” एवं संस्कृत में लिखी “गुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन है।

घुमंतू लेखक शरतचंद पेंढारकर जी ने जलेबी का आदिकालीन भारतीय नाम कुण्डलिका बताया है। वे बंजारे बहुरूपिये शब्द और रघुनाथकृत “भोज कौतूहल” नामक ग्रन्थ का भी हवाला देते हैं। इन ग्रंथों में जलेबी बनाने की विधि का भी उल्लेख है। मिष्ठान भारत की जान जैसी पुस्तकों में जलेबी रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे जल-वल्लिका नाम मिला है।

जैन धर्म का ग्रन्थ “कर्णपकथा” में भगवान महावीर को जलेबी नैवेद्य लगाने वाली मिठाई माना जाता है।

तो कब खिला रहे है आप मुझे जलेबी….??

-शर्मा सुरेश कांत, अनूप श्रीवास्तव की वॉल से साभार

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार