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जलपुरुष ने तोड़ी चुप्पी

’’यह सरकार सुनती नहीं, तो हम क्या बोलें ?’’

’’केन-बेतवा लिंक बुंदेलखण्ड को बाढ़-सुखाड़ में फंसाकरमारने का काम है।’’

’’विकेन्द्रित जल प्रबंधन ही बाढ़-सुखाड़ मुक्ति का एकमात्र उपाय है।’’

’’रचना ही वह विकल्प है, जो समता की लड़ाई में गरीबों को आगे लेकर आयेगा।’’
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प्र. सुना है कि पानी के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार आजकल आपके मार्गदर्शन में काम रही है ?

उ. मेरा सहयोग तो सिर्फ तकनीकी सलाहकार के रूप में है। वह भी मैं अपनी मर्जी से जाता हूं।

प्र. उ. प्र. सरकार अपने विज्ञापनों में आपके फोटो का इस्तेमाल कर रही है। ऐसा लगता है कि आप अखिलेश सरकार से काफी करीबी से जुड़े हुए हैं। पानी प्रबंधन के मामले में क्या आप सरकार के कामों से संतुष्ट हैं ?

उ. कुछ काम अच्छे जरूर हुए हैं। लेकिन सरकार के प्लान ऐसे नहीं दिखते कि वे राज्य को बाढ़-सुखाड़ मुक्त बनाने को लेकर बनाये व चलाये जा रहे हों। बाढ़-सुखाड. तब तक आते रहेंगे, जब तक कि आप पानी को ठीक से पकड़ने के काम नहीं करेंगे।

प्र. क्या अच्छे काम हुए हैं ?

उ. उ.प्र. सरकार ने महोबा में बिना किसी ठेकेदारी के 100 तालाबों के पुनर्जीवन का काम किया है। महोबा की चमरावल नदी और झांसी की गांधारी नदी के पुनर्जीवन का काम भी शुरु कर दिया है। नदी के मोड़ों पर डोह यानी कुण्ड तथा नदी के बेसिन में तालाब, चेकडैम आदि बनाने का काम शुरु हो गया है।

प्र. उ. प्र. सरकार ने वाटर रिसोर्स ग्रुप नामक किसी आस्टेªलियाई विशेषज्ञ संस्था के साथ मिलकर हिण्डन नदी पुनर्जीवन की भी कोई योजना बनाई है ?

उ. हां, अभी हिण्डन किनारे के किसान, उद्योगपति और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर चेतना जगाने का काम कर रहे हैं। जानने की कोशिश कर रहे हैं कि हिण्डन पुनर्जीवन के लिए आपस में मिलकर क्या-क्या काम कर सकते हैं। नदी के दोनो तरफ के सभी शहरों और गांवों में एक प्रदर्शनी लगाई जा रही है।

हमने सरकार से कहा है कि नदी का इसका हक़ कैसे मिले; इसके लिए काम हो। लोगों में भी इसकी समझ बने। सरकार कह रही है कि यह काम करेंगे। अब करेंगे कि नहीं; इसकी प्रतीक्षा है।

प्र. जब मालूम हो कि हिण्डन के शोषक, प्रदूषक व अतिक्रमणकर्ता कौन हैं, तो उन पर सीधी कार्रवाई करने की बजाय, प्रदर्शनी, डाक्युमेन्टेशन, नेटवर्किंग में जनता की गाढ़ी कमाई का धन बर्बाद करने को क्या आप जायज मानते हैं ?

उ. समाज में नदी की समझ, नदी पुनर्जीवन की तरफ बढ़ने का ही काम है। सरकार ने सहारनपुर में पांवधोई नदी øहिण्डन की सहायक नदी} के दोनो ओर कब्जे हटाने का काम किया है। 54 परिवारों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई है। कई उद्योगांे के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है।

प्र. केन-बेतवा को लेकर उमा भारती जी की जिद्द को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?

उ. केन-बेतवा लिंक बुंदेलखण्ड के लिए एक अभिशाप साबित होगा। यह बुंदेलखण्ड को बाढ़-सुखाड़ में फंसाकर मारने का काम है। इससे इलाके में बाढ़-सुखाड़ घटने की बजाय, बढ़ेगा।

प्र. मगर सरकार के लोग तो कह रहे हैं कि केन-बेतवा नदी जोड़ विरोधी बातांे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

उ. वे यह कैसे कह सकते हैं ? प्रो. जी. डी. अग्रवाल, प्रो. आर. एच. सिद्दिकी, श्री परितोष त्यागी और रवि चोपड़ा जैसे देश के चार नामी वैज्ञानिकों और मैने मिलकर केन-बेतवा नदी जोड़ का ज़मीनी वैज्ञानिक अध्ययन किया था। उसी अध्ययन के आधार पर केन-बेतवा नदी जोड़ का काम दस साल से रुका पड़ा है; नहीं तो इसे लेकर राज्य-सरकारों के बीच का एग्रीमेंट तो 15 साल पहले ही हो गया था। उन्हे समझना चाहिए कि बाढ़-सुखाड़ मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है पानी का विकेन्द्रित प्रबंधन।

प्र. किंतु आपने तो उमाजी की जिद्द के खिलाफ कोई बयान दिया हो या मुहिम शुरु की हो; ऐसा मैने ऐसा नहीं सुना।

उ. अरे, हम तो पिछले 15 साल से नदी जोड़ परियोजना का विरोध कर रहे हैं। बतौर सदस्य, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की बैठकों में भी नदी जोड़ परियोजना का खुलकर विरोध किया था। अब लगता है कि केन्द्र की यह सरकार तो संवेदनहीन सरकार है, तो संवेदनहीन के बीच में क्या बोलना। अपनी ऊर्जा लगाने को कोई मतलब नहीं। यूं भी मैं खिलाफ मोर्चाबंदी नहीं करता। मैं सिर्फ सरकारों को सजग करने का दायित्व निभाता हूं। जन-जोड़ अभियान चलाकर मैं यही दायित्व निभा रहा हूं।

प्र. लेकिन मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते तो आपने गंगा-यमुना को लेकर खूब मोर्चाबंदी की थी। क्या मोदी जी के आते ही नदियों के सब मसले सुलझ गये; नदी के शोषण, अतिक्रमण, प्रदूषण व पानी के व्यावसायीकरण संबंधी सब चुनौतियां खत्म हो गईं ?

उ. नहीं, इस मोदी शासनकाल में तो ये सभी मुद्दे और भी गंभीर हो गये हैं। कांग्रेस शासन गंगा को मां नहीं कहता था, लेकिन उन्होने लोहारी-नाग-पाला परियोजना रद्द की; भागीरथी इको संेसटिव ज़ोन घोषित किया; गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर मां जैसा सम्मान दिया। गंगा को लेकर उनकी कथनी-करनी में उतना अंतर नहीं था, जितना मोदी सरकार की कथनी-करनी में है। कांग्रेस सरकार में नदी का समाज बोलता था, तो सरकार सुनती थी। यह सरकार सुनती ही नहीं, तो हम क्या बोलें ?

प्र. कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस शासन के समय आपकी गंगा निष्ठा और थी और मोदी शासन के समय कुछ और ?

उ. नहीं ऐसी बात नहीं है। गंगा के प्रति मेरे मन का दर्द पहले से अब ज्यादा है। झूठ को झूठ सिद्ध करने के लिए कभी-कभी थोड़ा इंतजार करना पड़ता है। दूसरों के बारे में तो मैं नहीं कहता, मैं इंतजार ही कर रहा हूं। यह भी कह सकते हैं कि तैयारी कर रहा हूं।

प्र. क्या तैयारी कर रहे हैं ?
उ. समय आयेगा, तो उसका भी खुलासा करुंगा।

प्र. कहीं ऐसा तो नहीं कि आई बी रिपोर्ट के बाद प्राप्त अनुदान के अनुचित उपयोग और खातों की जांच के जरिए एनजीओ सेक्टर की मुश्कें कसने के लिए जो कोशिश मोदी सरकार ने की है; यह सन्नाटा.. यह चुप्पी उसी कार्रवाई के डर के कारण हो ?

उ. राजेन्द्र सिंह पर किसी दान-अनुदान, जांच या रिपोर्ट का कोई दबाव नहीं है। राजेन्द्र सिंह एक स्वैच्छिक कार्यकर्ता है, जिसे अपना साध्य मालूम है। साध्य को साधने के लिए जो साधन चाहिए, वह उसकी शुद्धि का पूरा ख्याल रखता है।

प्र. मैं आपकी व्यक्तिगत बात नहीं कर रहा; फण्ड आधारित पूरे एनजीओ सैक्टर की बात कर रहा हूं।

उ. हां, यह सही है कि बीते दो सालों में कोई हलचल नहीं है, लेकिन आपको याद होगा कि बीती पांच मई को हमने चुप्पी तोड़ी। देशभर से लगभग सात हजार लोग संसद मार्ग पर पहुंचे। जल सुरक्षा को लेकर सरकार को आगाह किया।

आपकी यह बात भी सही है कि मोदी जी की सरकार ने समाज में एक डर पैदा कर दिया है। अपनी तानाशाही दिखाकर संवेदनशील लोगों को भी भयभीत करने की कोशिश की है। जो डर से नहीं माने, उन्हे लोभ-लालच में फंसाने की कोशिश कर रही है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसे पैदा किया डर, ऐसे लोभ का वातावरण ज्यादा दिन नहीं टिकता। भारत के लोगों ने ज़मीन के मसले पर लड़कर सरकार को झुकने को मज़बूर किया। देखना, पानी के मसले पर भी लोग खड़े होंगे।

प्र. जो समाज, अपनी समाज व प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियांे के प्रति लापरवाह दिखाई दे रहा है; ऐसा समाज अपनी हकदारी के लिए खड़ा होगा, आपकी इस उम्मीद का कोई आधार तो होगा ?

उ. समाज को दायित्वपूर्ण बनाने के लिए वातावरण निर्माण की एक प्रक्रिया होती है। वह प्रक्रिया उद्देश्य के साथ-साथ उद्देश्य प्राप्ति के मार्ग में रुकावट पैदा करने वाली शक्तियों को पहचानकर शुरु की जाती है। ऐसी शक्तियां पिछली केन्द्र सरकार में भी थी, इस केन्द्र सरकार में भी हैं। लेकिन पिछली सरकार में दूसरी तरह की शक्तियां थीं, इस सरकार में दूसरे तरह की हैं। ऐसी शक्तियों के खिलाफ लड़ने वाले लोग अभी बिखरे हुए हैं। सरकार ने भी उन्हे बिखेरने का काम किया है। वे अब जुड़ने भी लगे हैं।

ज़मीन के मसले पर तरुण भारत संघ श्री पी.व्ही. राजगोपाल जी के संघर्ष से जुड़ा, तो पानी के काम में पी. व्ही., निखिल डे, मेधा जी समेत देश के कई प्रमुख संगठन अब आपस में जुड़ रहे हैं।

प्र. कहीं यह एकजुटता संगठनों द्वारा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए तो नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस शासन के समय आपकी गंगा निष्ठा और थी और मोदी शासन के समय कुछ और ?

उ. नहीं ऐसी बात नहीं है। किसी व्यक्ति या संगठन का अस्तित्व का अस्तित्व कभी महत्वपूर्ण नहीं होता; महत्वपूर्ण होता है दायित्व की पूर्ति। यह एकजुटता अपने दायित्व की पूर्ति के लिए है।

जहां तक गंगा की बात है, तो गंगा के प्रति मेरे मन का दर्द अब पहले से भी ज्यादा है। किंतु झूठ को झूठ सिद्ध करने के लिए कभी-कभी थोड़ा इंतजार करना पड़ता है। दूसरों के बारे में तो मैं नहीं कहता, मैं इंतजार ही कर रहा हूं। यह भी कह सकते हैं कि तैयारी कर रहा हूं।

प्र. क्या तैयारी कर रहे हैं ?

उ. समय आयेगा, तो उसका भी खुलासा करुंगा।

प्र. क्या आप भाजपा विरोधी हैं ?

उ. मेरा किसी पार्टी से कोई विरोध नहीं। जो भी सरकार पानी प्रबंधन की दिशा में कुछ अच्छा काम करने की इच्छा प्रकट करती है, मैं उसके साथ सहयोग को हमेशा तैयार रहता हूं। महाराष्ट्र में जिस सरकार के साथ मिलकर मैने ’जलायुक्त शिवार’ योजना पर काम किया, वह भाजपा दल के नेतृत्व वाली ही सरकार है। लातूर को फिर से पानीदार बनाने का काम भी हम इसी सरकार के साथ मिलकर कर रहे हैं। जलायुक्त शिवार का मतलब ही है, बेपानी जगह को फिर से पानीदार बनाना।

प्र. भारत की राजनैतिक पार्टियों में सबसे ज्यादा नंबर किसे देंगे ?

उ. भारत की मुख्य राजनैतिक पार्टियों में फिलहाल कोई पार्टी ऐसी नहीं, जिसे देश की परवाह हो; जो देश की जनता-जर्नादन के प्रति संवेदनशील हो।

प्र. विकल्प क्या है ?

उ. रचना; रचना ही वह विकल्प है, जो समता की लड़ाई में गरीबों को आगे लेकर आयेगा। लेकिन उसमें अरविंद केजरीवाल जैसे कार्यकर्ताओं से बचना होगा, जो रचना की शक्ति को अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते।