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पत्रकारिता छोड़ी, चावल की खेती से मुनाफा कमाया

इन दिनों जब तेलंगाना और आंध्रप्रदेश गंभीर कृषि संकट से जूझ रहे हैं और यहां के कई किसान आत्‍महत्‍या तक कर चुके हैं, वहीं हाल ही में कलम छोड़कर खेती को अपनाने वाले एक पत्रकार ने सफलता की नई इबारत लिखी है। उसने दोनों राज्‍यों के लोगों को समृद्धि का एक रास्‍ता भी दिखाया है और चावल की एक नई किस्‍म डायबिटीज राइस उगाई है।

पमार्थी हेमासुंदर (47) यहां के एक प्रमुख तेलुगू दैनिक अखबार में पत्रकार थे। कुछ माह पूर्व कृषि विश्‍वविद्यालय के अधिकारियों ने उन्‍हें डायबिटीज राइस की फसल उगाने के लिए कहा था। इसके बाद हेमासुंदर ने उस समाचार पत्र की नौकरी छोड़ दी थी। चावल की इस किस्‍म को भयंकर सूखे वाली परिस्थिति में भी उगाया जा सकता है और उससे अच्‍छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

खेती करने के अपने शुरुआती साल में ही हेमासुंदर ने आंध्रप्रदेश स्थित कृष्‍णा जिले के मछलीपट्टनम में करीब दस एकड़ में इस चावल की ‘RNR15048’ किस्‍म उगाने में सफलता हासिल कर ली। दूसरी किस्‍मों के मुकाबले इसे 40 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है और इसमें शुरुआती लागत दस हजार रुपये प्रति एकड़ से भी कम आई।

वर्ष 2013 में चावल की इस किस्‍म की खोज में शामिल रहे वरिष्‍ठ कृषि वैज्ञानिक बी मुरली ने बताया कि वे इस चावल को पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लोकप्रिय करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्‍हें यहां से अच्‍छी प्रतिक्रिया मिलने की उम्‍मीद है। उन्‍होंने बताया कि यह फसल सिर्फ 125 दिनों में तैयार हो जाती है जबकि अन्‍य किस्‍में 145 दिनों में तैयार होती हैं।

उन्‍होंने बताया कि इस चावल में अन्‍य सामान्‍य किस्‍मों की तुलना में 20 प्रतिशत कम कार्बोहाइड्रेड होता है। सामान्‍यत: डायबिटीज पीडि़तों को चावल कम खाने की सलाह दी जाती है लेकिन कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि इस किस्‍म के चावल को डायबिटीज से पीडि़त मरीज को कोई नुकसान नहीं होता है और वे इसे बिना डरे खा सकते हैं।

साभार- http://www.bangaloremirror.com/ से