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किसान आंदोलन के मंच से पत्रकार का स्तीफा

एबीपी न्यूज के सीनियर रिपोर्टर रक्षित सिंह के किसान आंदोलन के मंच से इस्तीफे का वीडियो देखा। सच कहूं तो मुझे उनका एलान-ए-अंदाज फिलहाल तो महज एक स्टंट लगा। इस तरह के स्टंट का जो इतिहास रहा है वह यह कि क्रांतिकारी की छवि बनाकर लोकप्रियता और जनता की सिम्पैथी हासिल करना। फिर इसे सीढ़ी बनाकर अपनी राजनीति की राह आसान बनाना। आजकल यह पहचान यू-ट्यूब से पैसा कमाने का जरिया भी बन रहा है।

जैसे ही आपकी एक खास विचारधारा की छवि बनती है, उसके लाखों समर्थक रातो-रात आपके यू-ट्यूब चैनल के सब्सक्राइबर बन जाते हैं। हो सकता मैं गलत होऊं और रक्षित वाकई एक आदर्शवादी पत्रकार हों। कुछ समय बाद यह पता चल ही जाएगा कि वह एक आदर्शवादी पत्रकार हैं या फिर स्टंटिया।

पूर्व में कई पत्रकारों को रक्षित जैसा स्टंट करते देखा है, जो बाद में राजनीति में गए। या फिर अपनी लोकप्रियता का किसी राजनीतिक दल के लिए मोटा माल लेकर इस्तेमाल करते रहे। दिल्ली के ही कई पत्रकारों का स्टंट याद कर लीजिए। एक पत्रकार भाई ने तो प्रेस कांफ्रेंस में ही तब के गृह मंत्री पर जूता चला दिया था और वे एक खास समुदाय में पलभर में ही इतने लोकप्रिय हो गए कि आम आदमी पार्टी से विधायक भी बन गए।

यह सच है कि अब की पत्रकारिता का स्तर बहुत गिर गया है। मीडिया संस्थानों के मालिक सामचारो का कारोबार जूते के कारोबार की तरह ही करते हैं। विचारधारा के आधार पर मीडिया बुरी तरह बंट गया है। पत्रकार का जितना उंचा पद, उसे उतने ही समझौते करने पड़ते हैं। यह सच्चाई है। मेनस्ट्रीम के जो अच्छे पत्रकार हैं उन पर ऐसा दबाव रहता ही है। वे कई बार इस्तीफा भी देते हैं। दरबदर की ठोकर भी खाते हैं। कई साथियों ने तो अभाव में जान भी गंवाई है। लेकिन, उन लोगों ने रक्षित की तरह किसी जनसभा के मंच पर स्टंट करते हुए अपना इस्तीफा नहीं दिया।

साभार – वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडेय जी के फेस बुक पेज से