1

कालजयी गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ के रचयिता को काल ने हमसे छीन लिया

कल 27 सितंबर 2020 की रात को गीतकार अभिलाष ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी स्मृति को सादर नमन। मार्च में उन्होंने पेट के एक ट्यूमर का ऑपरेशन कराया था। तभी से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। मध्य रात्रि में ही गोरेगांव पूर्व के शिव धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी बेटी और दामाद बैंगलोर में रहते हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा कलाश्री अवार्ड से सम्मानित सिने गीतकार अभिलाष का विश्व प्रसिद्ध गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ हिंदुस्तान के 600 विद्यालयों में प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। विश्व की आठ भाषाओं में इस गीत का अनुवाद हो चुका है और इसे वहाँ भी प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। इस गीत के मेल और फीमेल दो संस्करण हैं। एक में सुषमा श्रेष्ठ, पुष्पा पागधरे आदि की आवाज़ें हैं। दूसरे में घनश्याम वासवानी, अशोक खोसला, शेखर सावकार और मुरलीधर की आवाजें हैं।

संगीतकार कुलदीप सिंह ने इस गीत को एन चंद्रा की फ़िल्म अंकुश (1985) के लिए संगीतबद्ध किया था। इससे पहले फ़िल्म ‘साथ साथ’ में कुलदीप सिंह का संगीत सुपरहिट हो चुका था। चंद्रा जी को उस समय चंदू कहा जाता था। वे फ़िल्म जगत में एक स्ट्रगलर थे। एक दिन वे कुलदीप सिंह के पास गए और बोले- पापा जी, मैंने स्ट्रगल कर रहे कलाकारों की एक टीम बनाई है और उन्हें लेकर एक फ़िल्म कर रहा हूं। कुलदीप सिंह ने बिना पारिश्रमिक मांगे फ़िल्म ‘अंकुश’ का संगीत दिया। गीतकार अभिलाष ने गीत लिखे। फ़िल्म हिट हुई। गीत संगीत भी हिट हुआ। पब्लिसिटी में हर जगह सिर्फ़ एन चंद्रा का नाम था। इस फ़िल्म की सफलता के साथ चंदूजी एन चंद्रा बन गए। उन्होंने पीछे पलट कर दुबारा कुलदीप सिंह और अभिलाष की तरफ़ नहीं देखा। यही फ़िल्म जगत का दस्तूर है।

‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ गीत के अलावा अभिलाष जी के लिखे साँझ भई घर आजा (लता), आज की रात न जा (लता), वो जो ख़त मुहब्बत में (ऊषा), तुम्हारी याद के सागर में (ऊषा), संसार है इक नदिया (मुकेश), तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर (येसुदास) आदि सिने गीत भी बेहद लोकप्रिय हुए। अभिलाष जी 40 सालों से फ़िल्म जगत में सक्रिय हैं। गीत के अलावा उन्होंने कई फ़िल्मों में बतौर पटकथा-संवाद लेखक भी योगदान किया है। कई टीवी धारावाहिको़ं की स्क्रिप्ट लिखी है। उनके गीत, संगीत की दुनिया की अमूल्य थाती हैं।

संवाद लेखन और गीत लेखन के लिए अभिलाष को सुर आराधना अवार्ड, मातो श्री अवार्ड, सिने गोवर्स अवार्ड, फ़िल्म गोवर्स अवार्ड, अभिनव शब्द शिल्पी अवार्ड, विक्रम उत्सव सम्मान, हिंदी सेवा सम्मान और दादा साहेब फाल्के अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। अदालत, धूप छाँव, दुनिया रंग रंगीली, अनुभव, संसार, चित्रहार, रंगोली और ॐ नमो शिवाय जैसे अनेक लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिलाष ने अपनी क़लम की छाप छोड़ी है।

गीतकार अभिलाष स्क्रीन राइटर एसोसिएशन के ज्वाइंट सेक्रेटरी और आईपीआरएस के डाइरेक्टर का पद भी संभाल चुके हैं। साथ ही वे अपने प्रोडक्शन हाउस मंगलाया क्रिएशन के तहत टीवी के लिए कई धारवाहिकों का निर्माण भी कर चुके हैं। हिंदी सिने जगत में रचनात्मक योगदान के लिए गीतकार अभिलाष को गीत गौरव सम्मान से विभूषित किया गया।

गीतकार अभिलाष का जन्म 13 मार्च 1946 को दिल्ली में हुआ। दिल्ली में उनके पिता का व्यवसाय था। वे चाहते थे कि अभिलाष व्यवसाय में उनका हाथ बटाएं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। छात्र जीवन में बारह साल की उम्र में अभिलाष ने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। मैट्रिक की पढ़ाई के बाद वे मंच पर भी सक्रिय हो गए। उनका वास्तविक नाम ओम प्रकाश कटारिया है। उन्होंने अपना तख़ल्लुस ‘अज़ीज़’ रख लिया।ओमप्रकाश’ अज़ीज़’ के नाम से उनकी ग़ज़लें, नज़्में और कहानियां कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं।

‘अज़ीज़’ देहलवी नाम से अभिलाष ने मुशायरों में शिरकत की। मन ही मन साहिर लुधियानवी को अपना उस्ताद मान लिया। दिल्ली के एक मुशायरे में साहिर लुधियानवी पधारे। नौजवान शायर ‘अज़ीज़’ देहलवी ने उनसे मिलकर उनका आशीर्वाद लिया। साहिर साहब को कुछ नज़्में सुनाईं। साहिर ने कहा- मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं तुम्हारे मुंह से अपनी नज़्में सुन रहा हूं। तुम अपना रास्ता अलग करो। ऐसी ग़ज़लें और नज़्में लिखो जिसमें तुम्हारा अपना रंग दिखाई पड़े। साहिर का मशविरा मानकर वे अपने रंग में ढल गए। ओमप्रकाश’ अज़ीज़’ सिने जगत में बतौर गीतकार दाख़िल हुए तो उन्होंने अपना नाम अभिलाष रख लिया।

अभिलाष का कहना है कि अब सिने गीतों को भाषा बदल गई। सिने गीत फास्ट फूड बन गए हैं। इन्हें सुनकर दिल को सुकून नहीं मिलता। पहले गीतों में महबूब को ‘आप’ कहा जाता था। फिर ‘तुम’ पर आए और अब ‘तू’ लिखा जा रहा है। गीतों से शायरी ग़ायब हो गई है। ज़िंदगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब गीत बेचना पड़ता है। मोबाइल की एक कॉलर ट्यून के लिए उपभोक्ता को 30 रूपए महीना भुगतान करना पड़ता है। ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ गीत को दो करोड़ से अधिक लोगों ने अपनी कॉलर ट्यून बनाया है। कॉपी राइट अमेंडमेंट बिल 2012 पास होने के बावजूद इससे ज़बर्दस्त कमाई करने वाली टी सीरीज़ म्यूज़िक कम्पनी ने इसके गीतकार अभिलाष को कोई भुगतान नहीं किया।

गीतकार अभिलाष मृदुभाषी, मिलनसार और विनम्र इंसान थे। उन्होंने कई बेहतरीन ग़ज़लें और नज़्में लिखी हैं। अगर वह मंच पर जाते तो मंच की गरिमा बढ़ती। सिने गीतकार बनने के बाद उन्हें मंच पर कविता पाठ का कभी आकर्षण नहीं रहा। दोस्ताना महफ़िलों और आत्मीय समारोहों में वे कविता पाठ भी करते थे।

गीतकार अभिलाष मेरे पड़ोसी और मित्र थे। वे हमेशा हंसते मुस्कुराते रहने वाले इंसान थे। उनकी स्मृतियों को सादर नमन।

●#गीत : #इतनी_शक्ति_हमें_देना_दाता●
——————————————————

इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमज़ोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न..

हर तरफ़ ज़ुल्म है, बेबसी है,
सहमा सहमा-सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये,
जाने कैसे ये धरती थमी है
बोझ ममता का तू ये उठा ले,
तेरी रचना का ही अंत हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न..

दूर अज्ञान के हों अँधेरे,
तू हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर बुराई से बचते रहें हम,
जितनी भी दे भली ज़िन्दग़ी दे
बैर हो न, किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न..

हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाँटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करुणा का जल तू बहाकर,
कर दे पावन हरेक मन का कोना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न..

हम अँधेरे में हैं रौशनी दे,
खो न दें ख़ुद को ही दुश्मनी से
हम सज़ा पायें अपने किये की,
मौत भी हो तो सह लें ख़ुशी से
कल जो गुज़रा है फिर से न गुज़रे,
आनेवाला वो कल ऐसा हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे
भूल कर भी कोई भूल हो न..

इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमज़ोर हो न…

संपर्क
देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126
devmanipandey.blogspot.com

देवमणि पाण्डेय के फेसबुक पेज https://www.facebook.com/devmani.pandey.3 से साभार