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कपिल मिश्रा ने कहा, क्यों आवश्यक था संकल्प मार्च

दिल्ली में 9 जुलाई 2022 को इस नारे के साथ संकल्प मार्च निकाला गया कि यह देश संविधान से चलेगा, शरीयत से नहीं! यह मार्च अत्यंत सफल रहा एवं कहा जा रहा है कि लाखों की संख्या में इसमें लोग सम्मिलित हुए थे। इस का आयोजन हिन्दू संगठनों ने किया था और इस संकल्प मार्च में लोगों का गुस्सा फूटकर सामने आया कि आखिर क्यों देश को शरीयत से चलाने जाने की जिद्द की जा रही है।

उदयपुर में कन्हैया लाल और अमरावती में उमेश कोल्हे की हत्या तो अभी की हत्याएं हैं और इनके घाव ताजा है, परन्तु जिहादी हिंसा का शिकार तो भारत आज से नहीं हो रहा है, बल्कि वह न जाने कब से इसी जिहादी हिंसा का शिकार होता आ रहा है।

ऐसे में यह संकल्प मार्च कहीं न कहीं क्या यह आश्वस्त करने के लिए था कि देश में संविधान का ही शासन चलेगा, शरियत का नहीं, जहाँ पर किसी भी बात पर नाराज होकर सिर काटा जा सकता है? जहाँ पर शैक्षणिक संस्थानों में मजहबी पहचान के लिए दंगे तक करा दिए जाते हैं और किसी भी साधारण वीडियो के चलते हिन्दू युवाओं की हत्या कर दी जाती है।

यह संकल्प मार्च इतने महीनों से घट रही घटनाओं का आक्रोश था, जो इस जनसमर्थन के रूप में उभर कर आया। इस संकल्प मार्च के सम्बन्ध में हमने भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा, जो हिंदुत्व के प्रखर समर्थन के चलते अंतर्राष्ट्रीय वाम लॉबी के पूरी तरह से निशाने पर रहते हैं, बात की थी। दिल्ली दंगों के दौरान उनके साथ जो किया गया, वह हम सभी ने देखा था, तो हमने उन तमाम विषयों पर बात की, जो हिन्दू और हिन्दू नैरेटिव के साथ जुड़े थे।

संकल्प मार्च के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया था कि “संकल्प मार्च किसी व्यक्ति का नहीं है और यह समस्त हिन्दू समाज का मार्च है। कन्हैया लाल जी की हत्या के बाद से जिस प्रकार से मस्जिदों से पत्थर बाजी और बाद में बयानबाजी हुई, तो उससे कहीं न कहीं यह सन्देश देने की एक वर्ग कोशिश कर रहा है कि यह देश शरियत से चलेगा, जबकि भारत में संविधान लागू है, तो हमारा कहना है कि यह देश संविधान से चलेगा, शरियत से नहीं।”

भाजपा नेता कपिल मिश्रा, वार्ता के उपरान्त

उन्होंने कहा कि “इन सभी बयानों के खिलाफ समस्त हिन्दू समाज का यह संकल्प मार्च है कि यह देश संविधान से चलेगा, इस देश में हम जिहादी सोच को पैर नहीं जमाने देंगे, इसी सोच को लेकर सडकों पर उतरने का निर्णय लिया गया है।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह किसी भी संगठन का मार्च नहीं है, बल्कि यह समस्त हिन्दू समाज का मार्च है, जो उस सोच का विरोध कर रहा है।”

आखिर सड़क पर क्यों उतरना! कई बार ऐसे भी प्रश्न लोगों के मस्तिष्क में आते हैं कि आखिर सड़क पर उतरना ही क्या अंतिम उपाय है और क्या क़ानून का पालन करने वालों को भी सड़क पर उतर कर ही बात रखनी चाहिए? यदि ऐसा है तो फिर उनमें और हममें अंतर क्या रहा? इस पर कपिल मिश्रा जी का कहना था कि “ऐसा नहीं है कि केवल हिंसा करने वाले लोग ही सड़कों पर उतर सकते हैं। जो भी व्यक्ति इस हिंसा का विरोध करता है और जो चाहता है कि यह देश क़ानून से चले, यह देश संविधान से चले, तो उसे भी अपनी बात रखने के लिए सड़क पर आना तो होगा ही। हम मात्र अपनी बात कहने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से सड़कों पर उतर रहे हैं।”

कपिल मिश्रा जी की यह बात इस सन्दर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है कि यदि विरोध करने वाले या हिंसा करने वाले सड़क पर उतरते हैं तो उनका विरोध करने वाले भी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने के आगे आएं। क्योंकि किसान आन्दोलन में हमने देखा था कि कैसे एक बड़ा वर्ग हिंसा को अपना ठिकाना बनाए रहा, देश और सरकार के विरुद्ध विषवमन करता रहा और 26 जनवरी को तो ट्रैक्टर मार्च के नाम पर दिल्ली में लालकिले पर ही तिरंगे का अपमान कर दिया था, और यही कारण था कि मुट्ठी भर लोग हिंसा का सहारा लेकर जीत गए, कृषि कानून सरकार ने रद्द कर दिए, जबकि उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति के अनुसार 86% किसान संगठन इन कानूनों से प्रसन्न थे।

तब भी प्रश्न उठे थे जो किसान संगठन इन कानूनों से प्रसन्न हैं, वह आगे आएं!

हमने कपिल जी से जब उनके साथ हुए पिछले विवादों जैसे दिल्ली दंगे और दिल्ली दंगों पर लिखी गयी पुस्तक को प्रकाशक द्वारा निरस्त किए जाने को लेकर हमने प्रश्न किया तो उन्होंने कहा कि यह एक बहुत बड़ी लॉबी है, जिसका एक ही एजेंडा हमेशा से रहता है कि किसी एक को खलनायक बनाओ और अपने तमाम पापों को उसके पीछे छिपाओ। दिल्ली दंगों के दौरान भी यही किया, मोनिका अरोड़ा जी की पुस्तक से सच सामने आ रहा था, तो उन्होंने उसमें हंगामा किया, जबकि हंगामे का परिणाम यह हुआ कि दूसरे प्रकाशक से तीस हजार कॉपी बुक हो गयी थीं।”

उन्होंने साफ़ कहा कि यह माफिया है और यह माफिया फिल्म और साहित्य में अभी तक अपनी जड़ें जमाए हुए है। और उन्होंने कहा कि यह माफिया नहीं चाहता कि कोई भी हिन्दू लेखक सत्य लिख पाए, सत्य दिखा पाए, कोई भी फिल्म सत्य दिखा पाए, और यह लोग भारत विरोधी कार्य करते हैं।

यह पूछे जाने पर कि वह कैसे बाहर निकलकर आए, उन्होंने कहा कि यह समाज ही था जो साथ खड़ा हुआ, यह समाज ही था, जिसने आगे आकर हाथ थामा, और यह हिन्दू एकता ही है, जो इन तमाम षड्यंत्रों का उत्तर है। और कन्हैया लाल जी की हत्या का जब हमें प्रतिरोध करना था तो हमने यही तरीका अपनाया। हमारा स्पष्ट मानना है कि हम किसी भी हिन्दू को अकेला नहीं पड़ने देंगे। हम साथ देंगे। इसी एकता से मैं बचकर निकलकर आया था और इसी से हम सभी बचेंगे, जब हम एक दूसरे का हाथ थामकर खड़े हो जाएं!”

कपिल मिश्रा जी ने जिस एकता और संगठित रहने की बात पर बल दिया, वही भाव कल अर्थात 9 जुलाई 2022 को आयोजित हुए संकल्प मार्च में दिखाई दिए। कल का संकल्प मार्च भारत के उस भाव को व्यक्त कर रहा था, जो उसने वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होते ही अपनाया था, एवं उसे क्रियान्वित किया गया था 26 जनवरी 1950 को, अर्थात जिस दिन संविधान देश में लागू हुआ था।

जिस संविधान के लागू होने का उत्सव पूरा देश हर 26 जनवरी को हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाता है, उसी संविधान को कुछ जिहादी तत्व नकारने पर लगे हुए हैं, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपने मजहब के अनुसार चाहते हैं, वह चाहते हैं कि उन्हें तो सब कुछ और हर किसी के विषय में बोलने की आजादी मिले, परन्तु उनकी किताब पर कोई न बोले!

आस्था का सम्मान हर किसी का सामूहिक उत्तरदायित्व है! नुपुर शर्मा ने यदि कोई अपराध किया है, या ऐसा कुछ बोला है जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था तो उसका निर्धारण न्यायालय में होगा, सुनवाई के उपरान्त होगा, परन्तु नुपुर शर्मा द्वारा इस आक्रोशित वक्तव्य से पूर्व जो कुछ भी हिन्दुओं के आराध्य महादेव के विषय में बोला गया, या लिखा गया, उसके विषय में हर कोई मौन रहा था। महादेव के विषय में अश्लील बातें की गईं, परन्तु वह सभी कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की आजादी के शोर में खो गईं!

साभार- https://hindupost.in/ से