Thursday, April 25, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चाकश्मीर की एक क्रांतिकारी जोगन थी ललद्दद

कश्मीर की एक क्रांतिकारी जोगन थी ललद्दद

मेरा उपन्यास *ललद्यद* कश्मीरी भाषा की आदि-कवयित्री ललद्यद के जीवन संघर्षों पर आधारित है।वह एक जुनूनी जोगन थी । इसी संसार में रहकर वह वहां पहुंची जहां संसार नहीं पहुंचता, जहां सारे धर्म और विश्वास पीछे छूट जाते हैं । जिस ”शिव” की तलाश में वह दर-बदर हुई, अंतत: वह भी अदृश्य हो गया और वह स्वयं भी विलीन हो गई एक शून्य में।

उसे शिव का नशा है । उसके अस्तित्व का आधार यही नशा है । शिव के प्रति उसका उन्माद हिंदी साहित्य में मीराबाई के दीवानेपन के समान है । मीरा भी उस कृष्ण के लिए पागल है जिसका आज के युग में देहरूप अस्तित्व नहीं । परंतु वह उसे अपना पति कहती है, उसके लिए सेज बिछाती है और उसे खुद को सौंपती है। यह सब कुछ उसने अपनी कविता में लिखा है । ललद्यद भी अपने एक ‘वाख’ में अपने प्रेमी, अपने शिव को ”मैं लल हूं मैं लल हूं” कहकर जगाती है और उससे समागम करके पवित्र होती है । ये दोनों कवयित्रियां मानसिक रूप से जहां पहुंची थीं, वहां सांस लेना और कविता करना एक समान है । कविता के बोल मुंह से यों निकलते हैं जैसे चूल्हे पर रखी चावलों की देगची से पानी उबलकर बाहर आ जाता हे । भीतर ही भीतर जो कष्ट है, जो पीड़ा है उससे कभी छुटकारा नहीं मिलता । उसे सहन करते हुए ही सांस लेनी पड़ती है । सांस आरी के समान दो फाड़ करती रहती है और जो चीखे निकलती हैं उसे कविता कहा जाता है । पंजाबी के महान सूफी कवि बुल्लेशाह ने कहा है कि जिनकी हड्डियों में इश्क रच-बस जाता है, वे जीते जी मर जाते हैं । ललद्यद भी कहती है, शिव और शक्ति के समागम देखकर मैं अमृत की झील में डूब गई, मैं जीते जी मर गई । क्या अमृत की झील में डूबकर भी कोई मरता है? यहां लल की कविता अपने उत्कर्ष पर है ।

इस उपन्यास में जितनी घटनाएं हैं, उनमें से कुछ को लल के वाखों में से ढूंढ-ढूंढकर निकाला गया है, और कल्पना द्वारा उनको विस्तार दिया गया है । कुछ घटनाओं को लोकोक्तियों से उलीचा गया है। हर घटना का कहीं न कहीं कोई संकेत है । बहुत ही कम सामग्री ऐसी है जो कथा को आगे बढ़ाने के लिए परिकल्पित की गई है । कथा को आगे बढ़ाते समय लल का संपूर्ण चित्र हमेशा मेरे समक्ष रहा है । इस सत्य को यों भी कहा जा सकता है कि वाखों की नींव पर लल के चरित्र ने इन घटनाओं का निर्माण करने के लिए मुझे प्रेरणा दी और इन घटनाओं ने छैनी और हथौड़े के समान लल के चरित्र को मूर्त्तिमान किया । इस सारी प्रक्रिया को इतिहास की पृष्ठभूमि ने अपना समर्थन दिया है । यदि यह समर्थन न मिलता तो सत्य का चेहरा इतना उजला न होता।

यह उपन्यास लिखते हुए मैं उन मुकामों से गुजरा, जहां से गुजरकर एक साधारण माता-पिता की पुत्री, एक साधारण सास-ससुर की बहू और एक साधारण पति की पत्नी उस शून्य तक पहुंची, जहां कुछ नहीं सिवाय शून्य के । वहां तक पहुंचने की प्रक्रिया का बखान करते हुए, क्या बखान करने वाले को भी उसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है? क्या वह भी उस शून्य तक पहुंच जाता है? यह बड़ा कठिन प्रश्न है । यह तो केवल अनुभव का क्षेत्र है । कोई पूछ सकता है कि क्या आग का वर्णन करते हुए कोई जल जाता है? सभी लेखकों का अपना अपना अनुभव है । मेरे मन में इतना लालच अवश्य था और इच्छा थी कि मैं उस प्रक्रिया से गुजरूं, जिसमें से लल गुजरी थीं । परंतु मैं उसमें कितना डूबा, इस संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकता। यह तो एक यत्न था अपनी इच्छा को पूरा करने का । बीच-बीच में आनंद के उन क्षणों का अनुभव भी हुआ, जिनके बारे में कभी सोचा नहीं था । मेरे इस श्रम का पुरस्कार वही कुछ क्षण हैं।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार