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खराब गले का बहाना बना ठगे 63 लाख रुपये

ई-फ्रॉड्स के लगातार बढ़ रहे मामलों की लिस्ट में एक और ताज़ा घटना जुड़ गई है।  टाईम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी है कि एक व्यापारी और नैश्नलाइज़्ड बैंक को 'खराब गले' वाले एक फ्रॉड ने 63 लाख का चूना लगा दिया। फ्रॉड ने व्यापारी की कस्टमर आईडी हैक कर ली और बैंक को लगातार फंड ट्रांसफर करने के लिए मेल करनी शुरू कीं। उसने कहा कि वह बैंक से पर्सनली बात नहीं कर सकता क्योंकि उसका गला खराब है। बैंक ने 63 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिये और वह पैसा लेकर चंपत हो गया।

बैंक ने बिना किसी विशिष्ट निर्देश के इन ई-मेल्स के आधार पर ही व्यापारी के फिक्स्ड डिपॉज़िट भी तोड़ दिये। हैरानी की बात यह है कि मेल पर फ्रॉड और बैंक का यह संवाद लगभग एक महीना चला, फिर भी बैंक ने अकाउंट होल्डर की जांच करने की कोई कोशिश नहीं की।

सांताक्रूज़ निवासी चंदर विदेशों में व्यापार करते हैं और इस बैंक की ब्रांच में उनका एक एनआरई (नॉन-रेजिडेंट एक्स्टर्नल रुपी) अकाउंट है। इसी बैंक में उनके व उनकी पत्नी के जॉइंट फिक्स्ड डिपॉज़िट भी हैं।

चंदर को इस धोखाधड़ी का पता 13 दिसंबर को चला, जब वह बैंक गए। उन्हें बताया गया कि उनकी रजिस्टर्ड ई-मेल आईडी से आई रिक्वेस्ट्स के आधार पर उनके अकाउंट से 60 हजार पाउंड्स (करीब 63 लाख रुपये) दो हिस्सों में विदेशी अकाउंट्स में ट्रांसफर किये गए।

चंदर के वकील और साइबर लॉ व सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट प्रशांत माली ने बताया, 'उस व्यक्ति ने कहा कि उसका गला खराब है इसलिए वह बोल नहीं सकता। उसने कहा कि लंदन में उसका ट्रीटमेंट चल रहा है इसलिए चंदर के अकाउंट से 40,000 डॉलर निकालकर एक प्राइवेट बैंक में ट्रांसफर किये जाएं।'

माली ने कहा, इसी निर्देश के आधार पर बैंक ने कुछ फिक्स्ड डिपॉज़िट तोड़े और डॉलर्स में अपनी लंदन ब्रान्च को भेज दिये ताकि पैसे उस नकली अकाउंट में क्रेडिट किये जा सकें। लेकिन ट्रांसफर करने के लिए पैसों का ब्रिटिश पाउंड्स में होना ज़रूरी है इसलिए ट्रांसफर नहीं हो पाया। इसके बाद बैंक ने 40,000 डॉलरों को करीब 30,000 पाउंड्स में कन्वर्ट किया और 21 नवंबर को लंदन ट्रांसफर कर दिये।

उन्होंने बताया, इस ट्रांसफर से फ्रॉड को और हिम्मत मिली और उसने फिर से एक मेल किया कि उसको अभी तक पैसा नहीं मिला और ट्रीटमेंट का खर्च चुकाने के लिए उसे लोन लेना पड़ा। उसने कहा कि फंड्स ट्रेस करने के लिए जांच की जाए और निकी वेंचर्स नाम की उसकी कम्पनी के नाम पर दोबारा पैसे भेजे जाएं। 5 दिन बाद बैंक अधिकारियों ने यह भी कर दिया। और तो और, एक मेल में बैंक ने फिक्स्ड डिपॉज़िट और मैच्योरिटी डेट्स की सारी जानकारी बिना मांगे ही उस फ्रॉड को दे दी।

हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने उस बैंक के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

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