Friday, March 29, 2024
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आइए ड्रग्स मुक्त भारत बनाएंः नशे के विरुद्ध जागरूकता पैदा करें संचार माध्यम

बौद्ध दर्शन में संसार की जटिलता को समझाने के लिए बुद्ध ने चार आर्यसत्यों की बात की है। ये सत्य हैं – संसार में दुख है। दुख का कारण है। इसका निवारण है। और इसके निवारण का मार्ग भी है। बुद्ध ने दुख के निवारण के लिए अष्टांग मार्ग सुझाया था, जिसमें सम्यक दृष्टि से लेकर समाधि तक के आठ सोपान हैं। भारत में नशे की समस्या को अगर इन चार आर्यसत्यों की कसौटी में कसकर समझना हो, तो पहले दो बिंदुओं, यानी भारत में नशा है और नशे का कारण भी है, इस पर कोई विवाद नहीं है। लेकिन बाद के दो सत्यों को अगर हम देखें, तो बेहद कम लोग हैं जो नशे के निवारण का मार्ग अपनाते हैं और इसका निवारण पूर्ण रूप से करते हैं।

किसी परिवार का बेटा या बेटी नशे के दलदल में फंस जाते हैं, तो सिर्फ वो व्यक्ति नहीं, बल्कि उसका पूरा परिवार तबाह हो जाता है। ड्रग्स और नशा ऐसी भंयकर बीमारी है, जो अच्छों अच्छों को हिला देती है। पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी का एक किस्सा मुझे पढ़ने को मिला। इस किस्से में प्रधानमंत्री लिखते हैं…कि जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, तो कई बार मुझे हमारे अच्छे-अच्छे अफसर मिलने आते थे और छुट्टी मांगते थे। तो मैं पूछता था कि क्यों? पहले तो वो बोलते नहीं थे, लेकिन जरा प्यार से बात करता था तो बताते थे कि बेटा बुरी चीज में फंस गया है। उसको बाहर निकालने के लिए ये सब छोड़-छाड़ कर, मुझे उस के साथ रहना पड़ेगा। और मैंने देखा था कि जिनको मैं बहुत बहादुर अफसर मानता था, उनका भी सिर्फ रोना ही बाकी रह जाता था।

इस समस्या की चिंता सामाजिक संकट के रूप में करनी होगी। हम जानते हैं कि एक बच्चा जब इस बुराई में फंसता है, तो हम उस बच्चे को दोषी मानते हैं। जबकि सच यह है कि नशा बुरा है। बच्चा बुरा नहीं है, नशे की लत बुरी है। हम आदत को बुरा मानें, नशे को बुरा मानें और उससे दूर रखने के रास्ते खोजें। अगर हम बच्चे को दुत्कार देगें, तो वो और नशा करने लग जाएगा। ये अपने आप में एक मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और चिकित्सकीय समस्या है। और उसको हमें मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और चिकित्सकीय समस्या के रूप में ही देखना पड़ेगा। नशा एक इंसान को अंधेरी गली में ले जाता है, विनाश के मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है और उसके बाद उस व्यक्ति की जिंदगी में बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं बचता।

युवाओं को नशे के खिलाफ जागरुक करने में मीडिया की अहम भूमिका है। और मीडिया अपना ये रोल बखूबी निभा रहा है। आज मीडिया को युवाओं का सही मार्ग दर्शक बनकर उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की आवश्यकता है। 18वीं शताब्दी के बाद से, खासकर अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन और फ्रांसीसी क्रांति के समय से जनता तक पहुंचने और उसे जागरुक कर सक्षम बनाने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मीडिया अगर सकारात्मक भूमिका अदा करे, तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है।

वर्तमान समय में मीडिया की उपयोगिता, महत्त्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। मीडिया समाज को अनेक प्रकार से नेतृत्व प्रदान करता है। इससे समाज की विचारधारा प्रभावित होती है। मीडिया को प्रेरक की भूमिका में भी उपस्थित होना चाहिये, जिससे समाज एवं सरकारों को प्रेरणा व मार्गदर्शन प्राप्त हो। मीडिया समाज के विभिन्न वर्गों के हितों का रक्षक भी होता है। वह समाज की नीति, परंपराओं, मान्यताओं तथा सभ्यता एवं संस्कृति के प्रहरी के रूप में भी भूमिका निभाता है। आज नशा देश की गंभीर समस्या बनता जा रहा है। समाज से नशे के खात्मे के लिए सामाजिक चेतना पैदा करने की जरूरत है। और यह कार्य मीडिया के द्वारा ही संभव है। नशे के खात्मे के लिए हम सबको एकजुट होना होगा, ताकि नशामुक्त समाज की रचना की जा सके। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक दिन में 11 करोड़ रुपए की सिगरेट पी जाती है। इस तरह एक वर्ष में 50 अरब रुपए हमारे यहां लोग धुंए में उड़ा देते हैं।

नशे में डूबे हुए उन नौजवानों को दो घंटे, चार घंटे नशे की लत में शायद एक अलग जिंदगी जीने का अहसास होता होगा। परेशानियों से मुक्ति का अहसास होता होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिन पैसों से आप ड्रग्स खरीदते हो वो पैसे कहां जाते हैं? आपने कभी सोचा है? कल्पना कीजिये! यही ड्रग्स के पैसे अगर आतंकवादियों के पास जाते होंगे! इन्हीं पैसों से आतंकवादी अगर शस्त्र खरीदते होंगे! और उन्हीं शस्त्रों से कोई आतंकवादी मेरे देश के जवान के सीने में गोलियां दाग देता होगा! उस गोली में कहीं न कहीं आपकी नशे की आदत का पैसा भी है, एक बार सोचिये और जब आप इस बात को सोचेंगे, तो आप निश्चित ही नशा मुक्त भारत के सपने को साकार कर पाएंगे। ‘ड्रग्स फ्री इंडिया’ के स्वप्न को साकार करने के लिए आज समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। व्यक्ति को स्वयं, उसके परिवार, यार, दोस्तों, समाज, सरकार और कानून सभी को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। किसी भी व्यक्ति को नशे की लत से बाहर लाना असंभव नही है। यह थोड़ा मुश्किल जरुर है। यदि समग्र प्रयास किए जाएं, तो यह काम आसान हो सकता है। हमारे समक्ष ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि लोग नशे की लत से बाहर आए और उन्होंने एक अच्छा नागरिक बन कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया। एक मजबूत भारत के लिए आवश्यक है कि हम भारत को ड्रग्स मुक्त देश बनाएं।

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि जब जीवन में निराशा आ जाती है, विफलता आ जाती है, जीवन में जब कोई रास्ता नहीं सूझता, तब आदमी नशे की लत में पड़ जाता है। जिसके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, इरादे नहीं हैं, वहां पर ड्रग्स का प्रवेश करना सरल हो जाता है। ड्रग्स से अगर बचना है और अपने बच्चे को बचाना है, तो उनको ध्येयवादी बनाइये, कुछ करने के इरादे वाला बनाइये, सपने देखने वाला बनाइये। आप देखिये, फिर उनका बाकी चीजों की तरफ मन नहीं लगेगा। इसलिए मुझे स्वामी विवेकानंद के वो शब्द याद आते हैं कि – ‘एक विचार को ले लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो। उस विचार को जीवन में उतार लो। अपने दिमाग, मांसपेशियों, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार से भर दो और अन्य सभी विचार छोड़ दो’। विवेकानंद जी का ये वाक्य, हर युवा मन के लिये है।

माता-पिता को भी सोचना होगा कि हमारे पास आज कल समय नही है। हम बस जिंदगी का गुजारा करने के लिए दौड़ रहे हैं। अपने जीवन को और अच्छा बनाने के लिये दौड़ रहे हैं। लेकिन इस दौड़ के बीच में भी, अपने बच्चों के लिये हमारे पास समय है क्या? हम ज्यादातर अपने बच्चों के साथ उनकी लौकिक प्रगति की ही चर्चा करते हैं? कितने मार्क्स लाया, एग्जाम कैसे हुए, क्या खाना है, क्या नहीं खाना है? कभी हमने अपने बच्चे की दिल की बात सुनने की कोशिश की है। आप ये जरूर कीजिये। अगर बच्चे आपके साथ खुलेंगे, तो वहां क्या चल रहा है ये आपको पता चलेगा। बच्चे में बुरी आदत अचानक नहीं आती है, धीरे धीरे शुरू होती है और जैसे-जैसे बुराई शुरू होती है, तो उसके व्यवहार में भी बदलाव शुरू होता है। उस बदलाव को बारीकी से देखना चाहिये। उस बदलाव को अगर बारीकी से देखेंगे, तो मुझे विश्वास है कि आप बिल्कुल शुरुआत में ही अपने बच्चे को बचा लेंगे। मैं समझता हूं, जो काम मां-बाप कर सकते हैं, वो कोई नहीं कर सकता। हमारे यहां सदियों से हमारे पूर्वजों ने कुछ बातें बड़ी विद्वत्तापूर्ण कही हैं। और तभी तो उनको स्टेट्समैन कहा जाता है। हमारे यहां कहा गया है –

5 वर्ष लौ लीजिये
दस लौं ताड़न देई
सुत ही सोलह वर्ष में
मित्र सरिज गनि देई
यानी बच्चे की 5 वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम और दुलार का व्यवहार रखें, इसके बाद जब पुत्र 10 वर्ष का होने को हो, तो उसके लिये अनुशासन होना चाहिये। और जब बच्चा 16 साल का हो जाये, तो उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार होना चाहिये। खुलकर बात होनी चाहिये। मुझे लगता है कि हमारे पूर्वजों द्वारा कही गई ऐसी अनेक बातों का उपयोग हमें अपने पारिवारिक जीवन करना चाहिए। मीडिया का आज एक महत्वपूर्ण अंग है सोशल मीडिया। हम में से जो लोग सोशल मीडिया में एक्टिव हैं, उनसे मैं आग्रह करता हूं कि हम सब मिलकर के Drugs Free India हैशटैग के साथ एक आंदोलन चला सकते हैं। क्योंकि आज ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया से भी जुड़े हुए हैं। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नशा मुक्ति के खिलाफ मुहिम की शुरुआत की है। मीडिया को नशामुक्त समाज बनाने की दिशा में अपने प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यक्ता है।

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)

प्रो. संजय द्वेिवेदी
Prof. Sanjay Dwivedi
महानिदेशक
Director General
भारतीय जनसंचार संस्थान,
Indian Institute of Mass Communication,
अरुणा आसफ अली मार्ग, जे.एन.यू. न्यू केैम्पस, नई दिल्ली.
Aruna Asaf Ali Marg, New JNU Campus, New Delhi-110067.
मोबाइल (Mob.) 09893598888

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