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जियो जीतने के लिए

कोरोना की खलबली अभी ख़त्म नहीं हुई है। महामारी में मानव की परीक्षा ऑनलाइन है। उसके आत्मविश्वास को बचाए रखने का सवाल मुंह बाए खड़ा है। ग्लोबल विलेज के नागरिक होने का दम्भ भरने वाले लोग अपने लिए घर पर ही सुरक्षित कोने की तलाश में हैं। अकेला रहने को विवश मानव भीड़ भरी दुनिया में अपनी आपाधापी के नतीजों पर सोचने मजबूर हो गया है। कोरोना महामारी ने सभ्यता के गुरूर को एकबारगी आईना दिखा दिया है। यह बड़े बदलाव का वक्त है। वास्तविक जीवन के प्रशिक्षण का दौर चल रहा है। कोरोना के साथ जीना पड़ेगा या कोरोना के बाद बदलना पड़ेगा। तीसरा कोई रास्ता दिख नहीं रहा है।

हमें समझना होगा कि मनुष्य और प्रकृति के बीच तालमेल ही सभ्यता की असल पहचान है। यह मनुष्य के धीरज की परीक्षा का काल है। अपनी और अपनों की पहचान आपदा के समय ही होती है। कोरोना की आपदा भी हमारे लिए पहचान का सही अवसर बनकर आयी है। खुद के लिए वफादारी का इम्तिहान जारी है। मुलाकातों की जगह पर दूरियों के रिश्ते भारी हैं। कोरोना वायरस ने आज पूरी दुनिया को रूककर सोचने मज़बूर कर दिया है कि हम गहराई से समझें कि गति जीवन के लिए है या जीवन गति के लिए। कोरोना काल ने हमें सिखाया है कि हमारी आमदनी का बड़ा हिस्सा दिखावे और बुरी लतों पर खर्च होता रहा है। अगर हम सचेत नहीं हुए तो कल हम चाहकर भी खर्च नहीं कर पाएंगे। जिनकी जरूरतें कम हैं, उन्हें चिंता नहीं है।

कोरोना ने बच्चों को अनाज की पैदावारी की जगहों के बारे में सोचने का मौका दिया भी दिया है। पहली बार खेतों की तरफ उनका ध्यान गया है, वरना हमारी आज की पीढ़ी तो यही समझती रही है कि अनाज बाजार से आता है। वह बाजार की देन है। बच्चे अब जाकर कहीं समझे कि बाज़ार में खाना बिकता है, पैदा नहीं होता। बच्चे एक हद तक जंक फूड के बगैर रहना सीख गए हैं। होम वर्क की जगह पर वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति में ढल रहे हैं। एक मामूली से वायरस ने हमारी तरक्की की सीमाओं को समझा दिया। हमारा गुमान आज गुमनाम सा हो गया है।

हमने पहली बार महसूस किया है कि मंदिरों-मस्जिदों, अल्लाह और ईश्वर से अधिक अस्पतालों, स्कूलों, स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों की जरूरत है। कोरोना योद्धा सही अर्थ में राम काज करने को हनुमान की तरह आतुर दिखाई पड़ रहे हैं। कोरोना रूपी रावण से श्रीराम रूपी उद्धारकों का संघर्ष चल रहा है। वानर सेना में वो तमाम लोग हैं जो आज भी जान जोखिम में डालकर जरूरी सेवाएं दे रहे हैं। कोरोना काल में हमने देखा कि दुनिया ठहरकर भी चल सकती है। बिना तेल जलाए चल सकती है। पर्यावरण के साथ छेड़ छाड़ किए बिना भी रहा जा सकता है। डालियों पर खिले फूल अपने जगह से ईश्वर को समर्पित हो सकते हैं। उन्हें उनके अपने घर से जुदा करने की ज़रुरत नहीं है।

कोरोना के बाद का समय मनुष्य के लालच का नहीं, जियो और जीने दो की आदत का होना चाहिए। सच मानिये, इस महामारी के बाद जीत का जितना श्रेय प्रशासन, चिकित्सा, मीडिया और अत्यावश्यक सेवाओं को जायेगा उतना ही जनता की सहनशीलता, समझदारी और संयम को भी जायेगा। हम जितना सकारात्मक रहेंगे उतने ही शक्तिशाली बनेंगे। अनंत धीरज होगा तो अनंत शांति भी मिलेगी। अधीर नहीं,अतिधीर होने का समय है यह। कोरोना को हराना है तो जियो, जीतने के लिए।

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