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रिवाइव एलायंस की पहल से सुधर रही है लोगो की जिंदगियाँ

रिवाइव एलायंस असंगठित क्षेत्र में भारत के छोटे कारोबारियों और कामगारों की आर्थिक बेहतरी के लिए काम में जुटी है, जिनकी आजीविका कोविड-19 महामारी के कारण प्रभावित हुई।

रिवाइव एलायंस भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी लोकोपकार पहल में से एक है, जो कोविड-19 महामारी से आर्थिक तौर पर उबरने के प्रयासों पर काम कर रही है। इसे संहिता-कलेक्टिव गुड फ़ाउंडेशन (सीजीएफ) ने शुरू किया है और यह नवप्रेरित वित्तीय मॉडल के माध्यम से महामारी से प्रभावित बहुत छोटे और छोटे व्यवसायों की मदद कर रही है। इससे वित्तीय एवं डिजिटल समावेश के साथ ही दीर्घकालीन सशक्तिकरण भी हो पाता है।

यूएसएड इंडिया में पार्टनरशिप परामर्शदाता इमराना खेडा के अनुसार, रिवाइव एलायंस का फ़ोकस ‘‘असंगठित क्षेत्र की दीर्घकालीन रिकवरी में मदद करना है, जहां पर कोविड-19 महामारी के चलते लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है। ऐसा महिलाओं और युवाओं के मामलों में विशेष तौर पर हुआ है।’’ ऐसा अनुमान है कि भारत में वर्ष 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान 12 करोड़ 10 लाख भारतीयों का रोज़गार चला गया। खेडा के अनुसार, ‘‘इनमें से नौ करोड़ दस लाख लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत थे, जो अपनी खोई हुई आमदनी की बहाली के लिए अक्सर मुख्य धारा के वित्तीय स्रोतों तक नहीं पहुंच पाते।’’

रिवाइव एलायंस अनुदान उपलब्ध कराती है और ऐसे अनुदान भी जिन्हें वापस करना होता है, जिनमें बिना ब्याज के मदद की जाती है और वापसी कानूनन होने के बजाय नैतिक आधार पर होती है। ये ऋण या तो कामकाज के लिए पूंजी के तौर पर काम आते हैं या फिर लोगों के किसी कौशल के लिए फंडिंग में, जिससे कि वे अपने आय के स्तर को बढ़ा सकें। खेडा के अनुसार, ‘‘इस वित्तीय मॉडल में लाभार्थी प्रभाव सामान्य अनुदान के मुकाबले 5 से 7 गुना तक होता है।’’ यूएसएड की मदद से, रिवाइव एलायंस अपने प्रयासों को गति दे पाई है और अपने प्लेटफ़ॉर्म से इंटरनेशनल डवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन की क्रेडिट गारंटी को जोड़ पाई है।

संहिता-सीजीएफ में रिवाइव एलायंस की सीनियर मैनेजर सागरिका घोष कहती हैं, ‘‘जमीनी स्तर पर व्यापक नेटवर्क और संस्थानों के साथ मजबूत संबंध अहम होते हैं और उसी से सुनिश्चित होता है कि सही लोगों और व्यवसायों तक आवश्यक मदद पहुंचे।’’ उनके अनुसार, ‘‘असंगठित क्षेत्र के कामगार और विभिन्न उद्योगों के बेहद छोटे कारोबारियों पर हमारा फ़ोकस है। हम कंपनियों, फांउंडेशन, अन्य फंड देने वालों और सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम करते हैं जिससे कि सही समूह का चयन कर सकें। हमारे निर्णय मुश्किल में पड़े समुदायों और उद्यमियों की आवश्यकताओं पर आधारित होते हैं। हम व्यावसायिक इकोसिस्टम और सामाजिक उद्देश्यों के मद्देनज़र इसके लिए चयन करते हैं।’’

घोष इस बात पर ज़ोर देती हैं कि इस प्रक्रिया के तहत आवश्यक है कि समाधानों को विशेष स्वरूप दिया जाए, ‘‘वापस किए जाने वाले अनुदान के लिए मूल्य और भुगतान समय समेत।’’ इसके अलावा ‘‘किस तरह के कौशल पर काम करना है, डिलिवरी का क्या माध्यम होगा और सामाजिक सुरक्षा योजना, आदि मसलों को भी देखना होगा।’’

इसका एक उदाहरण भारत की बड़ी कंपनी गोदरेज के सामाजिक उत्तरदायित्व प्रोग्राम से जुड़े उद्यमियों का समूह है। इसके तहत 250,000 महिलाओं को ब्यूटिशियन के तौर पर प्रशिक्षित किया जा चुका है और उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण सहायता उपलब्ध कराई गई है। घोष के अनुसार, ‘‘जब कोविड-19 और लॉकडाउन ने इन उद्यमियों के काम को प्रभावित किया तो, इन महिलाओं को अनुदान वापसी के तहत मदद दी गई।’’

रिवाइव के प्रयासों में छोटे रिटेल स्टोर को ई-कॉमर्स को अपनाने में मदद करना भी आवश्यक काम रहा है। संहिता-सीजीएफ की सीईओ प्रिया नाइक स्पष्ट करती हैं, ‘‘छोटे ग्रॉसरी स्टोर, या भारत में जिन्हें किराना स्टोर कहा जाता है, रिटेल इंडस्ट्री और स्थानीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं और वे शहरी और ग्रामीण भारत के कुछ हिस्सों में आजीविका और आय का महत्वपूर्ण माध्यम हैं।’’ अपने समुदायों के करीब होने के कारण लॉकडाउन के दौरान वे बेहद महत्वपूर्ण थे। नाइक का कहना है, ‘‘लेकिन महामारी ने उनके पारंपरिक कामकाज के तरीके को प्रभावित किया और उन्हें ई-कॉमर्स एवं बड़ी शृंखलाओं से अधिक प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।’’

रिवाइव व्यापक कारोबारी सुधार के प्रयासों के तहत एक डिजिटलीकरण की मुहिम में मदद कर रही है, जिसे पे फ़ॉर परफॉर्मेंस जैसी वित्तीय पहलों या वापसी वाले अनुदान से भी प्रोत्साहन मिला है। नाइक के अनुसार, ‘‘रिवाइव एलायंस स्नैपबिज़ और ट्रस्ट फ़ॉर रिटेलर्स एंड रिटेल एसोसिएट्स ऑफ़ इंडिया या ट्रेन के साथ सामूहिक लोकोपकारी-व्यवसाय प्रयास कर रही है जिससे कि किराना स्टोरों में डिजिटल तौरतरीकों को अपनाया जाए।’’ उनका कहना है, ‘‘प्रभावी डिजिटल लेनदेन, बेहतर स्टॉक प्रबंधन और बेहतर ग्राहक सेवा के बूते ये छोटे किराना स्टोर अधिक कारोबारी कुशलता हासिल कर पाएंगे।’’

अब तक इस पहल में शामिल रहे प्रतिभागियों के लिए वित्तीय जागरूकता, पहुंच और साक्षरता की चुनौतियां रही हैं। घोष स्पष्ट करती हैं, ‘‘रिवाइव प्लेटफ़ॉर्म के लक्षित समूह मूल तौर पर ऐसे लोग और छोटे कारोबारी हैं जिनके पास औपचारिक वित्तीय मदद तक पहुंच नहीं है या बेहद कम है।’’ भारत में ऐसे बहुत-से उद्यमियों में महिलाएं हैं जो अपना व्यवसाय चलाने की आकांक्षा रखती हैं।

घोष कहती हैं, ‘‘प्लेटफ़ॉर्म की खोज एवं संचालन प्रक्रियाओं में संप्रेषण और जगरूकता अभियानों की भूमिका है और वित्तीय पहलों से मिली मदद के क्रम में यह व्यवहार और संस्कृति से सबद्ध है, कि क्या चीज़ काम करती है और लाभार्थियों से किस चीज़ की ज़रूरत रहती है।’’ फंडिंग के अलावा रिवाइव को इस तरह तैयार किया गया है कि व्यावसायिक या व्यावसायिक-लोकोपकारी तज़र् पर पूंजी तक और पहुंच हो पाए।

घोष के अनुसार, ‘‘रिवाइव को बहुत-बार बड़ी विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ा है।’’ उनका कहना है, ‘‘कोविड-19 की दूसरी लहर और उसके बाद के लॉकडाउन के दौरान उन्हें लगातार सामंजस्य बनाना पड़ा जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभार्थियों की प्रगति बंद न हो जाए और उन पर भुगतान का बोझ न पड़े।’’

प्रोग्राम के पहले दौर की सफलता के बाद उम्मीद के कई कारण दिखते हैं। घोष के अनुसार, ‘‘किसानों के हमारे समूह में हमने लौटाने वाले अनुदान की वापसी शप्रतिशत देखी है। इस तरह सारी रकम के वापस आने से किसानों के दूसरे समूह की मदद की जा रही है। दूसरे समूहों में, जहां अनुदान का वापस भुगतान अभी जारी है, ब्यूटिशियन उद्यमियों के मामले में वापसी 92.33 प्रतिशत और स्ट्रीट वेंडर के मामले में यह 76 प्रतिशत है।’’

सफलता का एक और पहलू रिवाइव द्वारा मदद किए जाने वाले लोगों और व्यवसायों की विविधता है। घोष के अनुसार, ‘‘मिलकर समूह के चयन करने की हमारी रणनीति के कारण हम ब्यूटी उद्यमियों, स्ट्रीट वेंडर, छोटे किराना स्टोर, सैनिटेशन कामगार, विक्लांगता से जूझने वाले उद्यमियों, किसानों और कपड़ा क्षेत्र के कामगारों, आदि को उबरने में मदद कर रहे हैं।’’ नाइक का कहना है कि अगले साल के लिए ‘‘रिवाइव अपने मिशन को डबल कर देगी और अधिक असंगठित क्षेत्र के कामगारों और छोटे उद्यमियों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाएगी। मदद का दायरा बढ़ाने के साथ ही इसमें गहराई भी लाई जाएगी।’’

(नतासा मिलास स्वतंत्र लेखिका हैं। वह न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।)

फोटोग्राफ: साभार संहिता सोशल वेंचर्स

साभार- https://spanmag.com/ से