Friday, March 29, 2024
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लूट-खसोट का कोई मौका नहीं छोड़ा मनमोहन सिंह ऐंड कंपनी ने

यूपीए सरकार के कार्यकाल से जुड़े विवादों के सामने आने का सिलसिला जारी है। कोबरापोस्ट के एक ताजा खुलासे में मनोमहन सिंह नीत यूपीए सरकार द्वारा चर्चित स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में कुछ निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को तोड़ने मरोड़ने का आरोप लगाया है। कोबरापोस्ट के पास मौजूद आरटीई ऐक्टिविस्ट विवेक गर्ग के डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि सरकार ने प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव किया था। ऐसा तब किया जबकि इसके प्रति कई ब्यूरोक्रैट्स और मंत्रियों ने चिंता जताई थी।

देश के चार मेट्रो शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, कोलकाता को जोड़ने के लिए प्रधानंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 5846 किलोमीटर की स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना लॉन्च की थी। सत्ता में आने के बाद 2005-06 में यूपीए ने इस परियोजना का श्रेय लेने की होड़ में इसे 4 की बजाय छह लेन का बनाने का प्रस्ताव रखा और इसकी अनुमानित लागत 41,210 करोड़ रुपये रखी गई।

परियोजना को शुरू करने की जल्दबाजी में मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमिटी ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर (सीसीआई) ने छह लेन के स्पेसीफिकेशन को कम करने का निर्णय लिया था, जिसे चार लेन के लिए ट्रैफिक की क्षमता 40 हजार पैसेंजर कार यूनिट्स प्रति दिन से घटाकर छह लेन के लिए 25 हजार पैसेंजर कार यूनिट्स प्रति दिन कर दिया गया। यह पहली बार था जब किसी परियोजना को शुरू करने की जल्दबाजी में नियमों में बदलाव किया गया था

तब के केंद्रीय सड़क एंव परिवहन मंत्री कमलनाथ को पीपीपी मॉडल के तहत छह लेन के प्रॉजेक्ट को बनाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी। 41,210 करोड़ के इश प्रॉजेक्ट में से 35,692 करोड़ का योगदान प्राइवेट सेक्टर का था। शेष 5518 करोड़ को सरकार के सेस फंड से पूरा किया जाना था।

निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने वायाबिलेटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) के रूप में 5 फीसदी कंस्ट्रक्शन कॉस्ट देने का फैसला किया। अपवादस्वरूप कुछ मामलों में 10 फीसदी वीजीएफ दिया गया। लेकिन यूपीए सरकार ने अपने ही नियमों की अवहेलना की। सूत्रों के मुताबिक कुछ टॉप ब्यूरोक्रैट्स के विरोध के बावजूद दो मामलों में वीजीएफ को 36 फीसदी कर दिया गया।

ओडिशा में एनएच-5 पर चंडीखोल-जगतपुर-भुवनेश्वर खंड के 67 किलोमीटर के दो निर्माण कार्यों के लिए ठेकेदार को प्रॉजेक्ट की कुल लागत 1047 करोड़ रुपये में से 36.96 फीसदी वीजीएफ यानी कि 387 करोड़ रुपये दिए गए। इसी तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में एनएच-2 पर वाराणसी-औरंगाबाद 192 किलोमीटर लंबे खंड के लिए 2848 करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट में वीजीएफ के रूप में 38.48 करोड़ रुपये दिए गए। इन दो मामलों से सरकारी खजाने को करीब 1483 करोड़ का नुकसान हुआ।

सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक नैशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने इन प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। लेकिन इससे पता चलता है कि यह वीजीएफ पर कैबिनेट कमिटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स (सीसीईए) द्वारा मंजर किए गए नियमों का उल्लघंन था। एनएच-2 स्थित छह लेन वाले वाराणसी-औरंगाबाद सेक्शन को 21 नवंबर 2008 को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमिटी (पीपीपीएसी) ने मंजूरी दी थी। इसे सीसीईए ने 28 जनवरी 2009 को मंजूरी दे दी।

एनएच-5 स्थित छह लेन वाले चंडीखोल-जगतपुर-भुवनेश्वर सेक्शन के लिए बोली की प्रक्रिया 2008-09 के दौरान शूरू हुई थी। 15 फर्मों ने इस प्रॉजेक्ट के लिए आवेदन 7 मई 2008 को जमा किया था। दो राउंड के बाद 15 में से सिर्फ तीन आवेदन कर्ता ही नीलामी के लिए सहमत हुए। 2 जनवरी 2009 को जब बोली खुली तो वीजीएफ के लिए सबसे कम बोली 387 करोड़ रुपये या टीपीसी का 36.96 फीसदी की थी। एक बार फिर से एनएचएआई ने इसे उचित ठहरा दिया।

सूत्रों के मुताबिक वीजीएफ लिमिट को 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ाए जाने का फाइनैंस मंत्रालय के कई सचिवों ने विरोध किया था लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक वीजीएफ में बढ़ोतरी के पीछे ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बड़ी भूमिका थी। 2009 में मनमोहन सिंह से मुलाकात के दौरान पटनायक ने वीजीएफ को बढ़ाकर 38 फीसदी किए जाने का दबाव डाला था। सूत्रों के मुताबिक पीएमओ ने 7 अगस्त 2009 को सड़क एंव परिवहन मंत्रालय को लिखे एक पत्र में कहा था कि नवीन पटनायक ने पीएम को अवगत कराया है कि कलकत्ता और चेन्नै को जोड़ने वाले एनएच-5 के ट्रैफिक में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार छह लेन के प्रॉजेक्ट को मंजूरी देने की हड़बड़ी में थी, जिसे कैबनेट से मंजूरी दिलाने के लिए 100 किलोमीटर के 65 हिस्सों में विभाजित कर दिया गया। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक इस मामले को लेकर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, चिदंबरम, कमलनाथ, सीबीआई डायरेक्टर या एनएचआई चेयरमैन को भेजे सवालों का कोई जवाब नहीं मिला था।

साभार- इकॉनामिक टाईम्स से 

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