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मद्रास उच्च न्यायालय ने आधार लिंक को लेकर ट्वीटर, फेसबुक, गूगल को भेजा नोटिस

चेन्नई। मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए ट्विटर, फेसबुक, गूगल जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पूछा है कि इन कंपनियों को भारत में अपने प्लेटफार्म पर लोगों के आधार कार्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों को लिंक करने की क्या जरूरत है, इस पर वे प्रतिक्रिया दें। हाई कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट को आधार की वैधता को लेकर इस हफ्ते अपना फैसला देना है।

याचिका के संबंध में दायर किए गए हलफनामे में चेन्नई पुलिस ने दावा किया है कि ये सोशल मीडिया कंपनियां जानकारी मुहैया कराने में जांच एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं कर रही हैं। एंटोनी क्लीमेंट रुबिन नाम के एक व्यक्ति ने कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने सरकार द्वारा जारी पहचान दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड को सोशल मीडिया और ई-मेल में लिंक करने को लेकर जानकारी मांगी है। इसके साथ ही साइबर क्राइम पर नजर रखने के लिए एक टास्क फोर्स की बात भी उठाई है।

हाई कोर्ट ने शुरू में याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया था क्योंकि आधार कार्ड की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है। हालांकि, बाद में कोर्ट ने चेन्नई पुलिस से याचिका में उठाए गए बिंदुओं पर जवाब मांगा। मामले की अगली सुनवाई 24 सितंबर को होनी है।

अपने जवाब में चेन्नई पुलिस ने कहा कि यह सोशल मीडिया कंपनियों पर निर्भर करता है कि वह प्राप्त किसी भी साइबर अपराध की शिकायत पर जानकारी दे या नहीं दे। पुलिस ने कहा कि साल 2016-2018 के दौरान चेन्नई सिटी पुलिस की साइबर अपराध सेल ने सोशल मीडिया और ई-मेल कंपनियों से संबंधित इंटरनेट प्रोटोकॉल लॉग मांगने के लिए सोशल मीडिया और टेक कंपनियों को लगभग 1,940 अनुरोध भेजे थे। ये संख्याएं हैं, जो आंशिक रूप से ऐसे कंप्यूटर की पहचान करती हैं, जिसका उपयोग इंटरनेट पर कुछ पोस्ट करने के लिए किया जाता था।

पुलिस ने फेसबुक को 885 अनुरोध, ट्विटर को 101 अनुरोध, गूगल (जीमेल) को 788 अनुरोध, यूट्यूब को 155 अनुरोध और व्हाट्सएप को 11 अनुरोध किए थे। मगर, पुलिस को केवल 484 अनुरोधों पर ही प्रतिक्रिया मिली। इसमें से फेसबुक से 211, ट्विटर से एक, जीमेल से 268 और यूट्यूब से चार मामलों में जानकारी दी गई। व्हाट्सएप से कोई जवाब नहीं मिला था।

पुलिस ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा शेष 1,456 आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) के लिए दिए गए अनुरोध खारिज कर दिए थे। पुलिस ने कहा कि गूगल जैसी कंपनियां यह दावा करते हुए कुछ अनुरोधों पर आईपी लॉग साझा करने से इंकार कर रही हैं कि वे भारत के बाहर से जनरेट हुए थे। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं से जानकारी प्राप्त करने में भी समस्याएं थीं, क्योंकि कुछ इंटरनेट प्रोटोकॉल पते डायनेमिक थे। पुलिस केवल तभी कार्यवाही कर पाएगी जब किसी विशेष उपयोगकर्ता को जारी पोर्ट नंबर प्राप्त किया गया हो। यह संख्या विशिष्ट रूप से कंप्यूटर पर नेटवर्क-आधारित एप्लिकेशन की पहचान करती है।