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महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद जी का सम्मान

सन्यास आश्रम में महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद जी के संन्यास जीवन के पचास वनर्स्वष पूर्ण होने व श्री माता वैष्णो देवी ट्रस्ट के ट्रस्टी नियुक्त किए जाने पर पर सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर स्वामी विश्वेश्वरानंद जी ने कहा कि संन्यास आश्रम विगत 400 वर्षों से हमारी सनातन परंपरा का प्रतीक बना हुआ है। जिन संतों ने इस आश्रम की स्थापना की वह परंपरा उसी प्रामाणिकता के साथ आपना कार्य कर रहा है।

श्री देवेन्द्र फड़णवीस ने कहा कि स्वामीजी हमारी सनानत संस्कृति की हजारों वर्षों की परंपरा के जीवंत प्रमाण हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों साल पहले संन्यास की जो परंपरा शुरु की थी उसे स्वामीजी और इनके जैसे संन्यासियों ने आज तक जीवनत रखा है। संन्यास परंपरा को जीना अपने आप में एक चुनौती है और साधना भी। उन्होंने जिस प्रकार कार्यभार संभाला है। ऐसे में उनका अभिनंदन करना बेहद जरूरी है। मैं बेहद सौभाग्यशाली हूं। कि मुझे यहां आने का अवसर प्राप्त हुआ और अब हमें इन्हें सम्मानित करके और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।

इस आयोजन में मुख्य अतिथि नेता प्रतिपक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे। इस कार्यक्रम में हिंदू धर्म आचार्य सभा के संयोजक स्वामी परमात्मानंद सरस्वती महाराज, अमेरिका से स्वामी नित्यानंद सरस्वती महाराज, बदलापुर से स्वामी अभेदानंद गिरिराज महाराज, वृंदावन से स्वामी प्रंनवानंद सरस्वती महाराज, अयोध्या से रामानुजाचार्य स्वामी, स्वामी शंकरानंद सरस्वती महाराज और पद्मश्री ब्रह्मेशनन्द महाराज शामिल हुए।

स्वामी प्रंनवानंद सरस्वती महाराज कार्यक्रम के दौरान कहा की सनातन धर्म भारत की संस्कृति है। जिसे बीते 70 वर्षों से कहीं ना कहीं दबाया जा रहा था। लेकिन अब एक बार फिर से लोगों के मन में राष्ट्र के प्रति चेतना जाग रही है। सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है। जहां 5 वर्ष की आयु में प्रहलाद, नारद जी और 8 वर्ष की आयु में आदि गुरु शंकराचार्य बहुत छोटी उम्र में बहुत अधिकतर और मेहनत करके बहुत सी क्रांतियां की है। और उन्होंने मानव संस्कृति को सनातन धर्म को शिक्षा प्रदान की और आज भी वो पूज्य है। और परम पूज्य महाराज जी ने भी 13 वर्ष की छोटी आयु हरिद्वार ऋषिकेश दुर्गम हिमालय क्षेत्रों में विचरण करते हुए अनेकों प्रकार के कष्ट और पीड़ा सहते हुए वह 18 वर्ष की आयु में इस संस्थान में पहुंच गया।