1

कांचि कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की महासमाधि

कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती का बुधवार को 83 साल की उम्र में निधन हो गया। जयेंद्र सरस्वती काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वह 82 वर्ष के थे। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती हिंदू धर्म के बड़े गुरु, कांची कामाकोटि पीठ के पुजारी और 69वें शंकराचार्य थे। वे 1954 में शंकराचार्य बने थे। इससे पहले 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखेंद्ररा सरस्वती स्वामीगल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। उस वक्त वो सिर्फ 19 साल के थे। उनका जन्म 18 जुलाई 1935 में तमिलनाडु में हुआ था। पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का पद पर आसीन होने से पहले का नाम सुब्रमण्यम था।

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जनवरी माह में एक मठ में सांस लेने में तकलीफ और लो बल्ड प्रेशर की परेशानी के बाद बेहोश हो गए थे। जिसके बाद उन्हें चेन्नई के श्रीरामचंद्र अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि बाद में तबीयत में सुधार होने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।

कांची मठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। इस पीठ के दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में अनुयायी है। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को साल 1954 में तत्कालीन शंकराचार्य चंद्रशेखर सरस्वती का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। साल 1935 में जन्में जयेन्द्र सरस्वती ने साल 1994 में कांची कामाकोटी पीठ के प्रमुख का पद संभाला था। जयेन्द्र सरस्वती की मौत के बाद अब विजयेन्द्र सरस्वती उनका स्थान लेंगे।

1994 में कांची कामकोटि पीठ की कमान संभालने के बाद ये मठ्ठ आध्यात्मिक और आर्थिक शक्ति का बड़ा केंद्र बनकर उभरा। इस मठ के जरिए जयेंद्र सरस्वती ने जनकल्याण से जुड़े काफी काम किए। आसपास के क्षेत्रो में अस्पताल, स्कूल और मेडिकल कॉलेज खोले। एक वक्त वो अयोध्या विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे। उस वक्त उनका इतना बड़ा सम्मान था कि तमिलनाडु आने वाला कोई भी केंद्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति अपने कार्यक्रम में कांची मठ का दर्शन जोड़ना नहीं भूलता था।

कांची मठ के लिए ये साल कभी भी भुलाए न जाने वाला रहा। क्योंकि इसी साल जयेंद्र सरस्वती को शंकररमन की हत्या के जुर्म में जेल जाना पड़ा। शंकररमन वरदराजा पेरुमल मंदिर का मैनेजर था। जयेंद्र सरस्वती को दिवाली के दिन 11 नवंबर 2004 को गिरफ्तार किया गया था। वो पांच जनवरी 2005 तक जेल में रहे। उसके बाद वो जमानत पर बाहर आए। हालांकि आठ साल बाद पुडेचेरी की स्पेशल कोर्ट ने जयेंद्र सरस्वती के अलावा बाकी लोगों को मर्डर के अलावा बाकी आरोपों से बरी कर दिया गया। इस मामले में कोर्ट से बरी होने के बाद पुडुचेरी की सरकार ने आगे अपील नहीं की।

इस हत्याकांड में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और उनके उत्तराधिकारी विजयेंद्र सरस्वती के गिरफ्तार होने के बाद इस आध्यात्मिक मठ की रौनक गायब हो गई। जहां एक वक्त इस मठ में बड़े राजनेताओं, सितारों का मेला लगता था, वहीं लोगों ने कई सालों तक इससे किनारा कर लिया था। मगर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस मिथक को तोड़ा और वो मठ में दर्शन के लिए पहुंचे।

जयेंद्र सरस्वती दलितों को मंदिर में प्रवेश देने का अभियान चलाया, तो धर्म परिवर्तन का जमकर विरोध किया। पिछले चार दशकों से वो तमिलनाडु की सरकारों के कामकाज की खुलकर आलोचना करने वाले शख्स के रूप में उभरे तो उनके आलोचक कहते थे कि भाजपा और हिंदू संगठनों के फायदे की राजनीति करते हैं। तमिलनाडु में करुणानिधि और जयललिता से भी उनकी ठन गई थी। बाद में उन्हें जेल जाना पड़ा।
उनके जाने के बाद मठ के नए उत्तराधिकारी के लिए उसकी सनातन परंपरा का निर्वाह करना बड़ी चुनौती होगी।

जयेन्द्र सरस्वती के कार्यकाल में कांची कामाकोटी पीठ चैरिटेबल कामों में काफी आगे रही। इस दौरान पीठ ने कई अस्पताल और स्कूलों का निर्माण कराया। जयेन्द्र सरस्वती ने अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद में भी शांतिपूर्ण मध्यस्थता की कोशिश की थी।

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती उस वक्त विवादों में भी आए, जब साल 2004 में उन्हें कांचीपुरम वर्दराजन पेरुमल मंदिर के मैनेजर ए. शंकररमन की हत्या में आरोपी बनाया गया। इस दौरान शंकराचार्य सरस्वती को 2 माह न्यायिक हिरासत में भी बिताने पड़े। जिसे लेकर काफी बवाल हुआ था। उल्लेखनीय है कि साल 2013 में शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती समेत 22 अन्य लोगों को हत्या के आरोपों से मुक्त कर दिया गया था। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के निधन पर कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है।