Thursday, April 18, 2024
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Homeसोशल मीडिया सेममता बनर्जी को भाजपा से मात्र 60 लाख वोट ज्यादा मिले हैं

ममता बनर्जी को भाजपा से मात्र 60 लाख वोट ज्यादा मिले हैं

जो बुद्धिजीवी बंगाल में हो रही हिंसा पर चुप है , उसे कोई अधिकार नहीं है कि वो आगे किसी भी सांप्रदायिक हिंसा पर अपनी कलम उठाए।

बंगाल में बीजेपी को कुल 2 करोड़, 28 लाख वोट मिले है TMC से सिर्फ 60 लाख कम। ये साधारण बढत नहीं है बीजेपी के लिये। जिसे जरा भी बंगाल राजनीति की समझ है वो एक बार सोचेगा ये कैसे हुआ।

मैं बात खुद से शुरू करती हूँ , कोलकाता के एक साधारण हिंदी भाषी मध्यवर्गीय में जन्मी लड़की जिसने अपनी दादी को जब तक वो जिंदा रही (1993 तक) सिर्फ कांग्रेस को वोट देते देखा है ।
अपने पिता को कांग्रेस , फिर कम्युनिस्ट पार्टी ( एक मित्र थे मेरे पिता के मास्टर जी कहकर जो स्थानीय “नागरिक कमीटी” के सदस्य थे और यह उनके सम्पर्क में आने का प्रभाव था , ऐसा मेरा अनुमान है ) फिर TMC को वोट देते देखा है मैंने (2015 तक जबतक वो जिंदा रहे ) ।

2007 में जब मैं दिल्ली आयी तो यह शहर कुछ समझ नहीं आता था। लोग अलग थे , मिजाज अलग था, चुनौतियाँ अलग थी । एक महिला केन्द्रित पत्रिका , मेरी सहेली में मैंने नौकरी की दिल्ली में टिकने के लिये। वही नौकरी करते हुये 2007 में “मीडिया” विषय पढाना शुरू किया IIMC में एक अथिति प्रवक्ता के तौर पर. यहाँ छात्र – छात्राये बहुत ही diverse background से आते थे। बहुत कुछ सीखा मैंने उनसे। उनमें कुछ दक्षिण पंथी विचारधारा के थे औंर वे छाती थोक कर बीजेपी का समर्थन करते थे। उनका conviction मुझे आश्चर्य में डाल देता था। ये मेरे लिये एक नया अनुभव था। जो तीन दशको तक बंगाल में रहा हो , ruling party के नाम पर सिर्फ communist party को सिर्फ देखा हो उसके लिये इतने aggressive दक्षिणपंथी छात्रों को सम्भालना, पढाना और समझना बहुत challenging था। ऐसा नहीं कि सिर्फ दक्षिणपंथी विचारधारा के छात्र- छात्राएं थी , सभी विचारधारा के थे – कांग्रेसी , वामपंथी , अम्बेडकरवादी सभी। दक्षिणपंथी छात्रों पर इसलिये जोर देकर लिख रही हूँ कि 2007 में बीजेपी न केंद्र में थी न ही बहुत सारे राज्यो मे सत्ता पर । उस समय जो छात्र बीजेपी समर्थक या दक्षिणपंथी था वो भीतर से बीजेपी समर्थक रहा होगा। इनके ही या इन जैसो के बल पर आज बीजेपी सत्ता में है। कोई भी विचारधारा अपने युवाओं की ताकत पर खडी़ होती है। आज जो बीजेपी ज्वाइन कर रही है वो मलाइ खाने को कर रही है।

2008,2009,2010 तक मैंने एक निजी मीडिया संस्थान में पढाया। यहाँ मुझे सवर्ण, अगडी -पिछडी,सभी जाति सम्प्रदाय के छात्र-छात्राएं मिले। एक मिनी भारत था मेरी कक्षा। मैंने अपने छात्रों से बहुत कुछ सीखा। उन्होंने ने भी मुझे बहुत मान दिया। धर्म- जाति , लिंग के आधार पर मैंने अपने छात्रों पर कभी भेद नहीं किया। पर indiscipline कभी बर्दास्त नहीं किया। इस दौरान मुझे उत्तर -भारत को और उसकी राजनीति को समझने में बहुत सहायता मिली। आज कई छात्र मीडिया मैनेजमेंट का काम कर रहे है ,कुछ मीडिया में है। कुछ ने मीडिया छोड़ दिया।

2009 में बीजेपी ने पूरा जोर लगाया पर केंद्र की सत्ता में नहीं आई। पर 2014 तक बीजेपी जान लगा कर केंद्र की सत्ता तक पहुंच गई। सौभाग्य से या दूर्भाग्य से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह ऐतिहासिक जीत बीजेपी ने दर्ज की । जिस नरेंद्र मोदी या बीजेपी को भारत का so-called secular बुद्धिजीवी वर्ग खत्म होते हुए देखना चाहता था वो पूरी तरह से केंद्र में सत्ता में था। ये एक बहुत बडा़ denial mood था सेकुलर बुद्धिजीवि के लिये । काफी समय लगा उनको यह स्वीकार करने में कांग्रेस अब सत्ता में नहीं है , बीजेपी अब सत्ता में। इसके बाद वो दौर शुरू हुआ जिसमें दक्षिणपंथी विचारधारा वालों को भी बुद्धिजीवी माना जाने लगा। अब दुविधा यह थी की एक जो सेकुलर बुद्धिजीवी वर्ग बन गया था और इतने सालों से सभी narratives तय कर रहा थाso- called सत्ता पक्ष के जाने से वो कहाँ जाये। सभी सरकारी पदों से उनका बिदाई समारोह शुरू। लोगों को आश्चर्य होने लगा इन्हें क्यों हटाया जा रहा है। इसमे आश्चर्य की बात नहीं,
बीजेपी के आने के बाद अगर वो अपने लोगों को नहीं बैठायेगी तो किसे बैठयेगी। सेक्युलर लोगों ने भी कभी क्या दक्षिणपंथी वालों को जगह दी।

अब मूल मुद्दे पर आऊँ , बंगाल में बीजेपी का आना सरल नहीं था , न ही जाना सरल होगा। वो जमने आई है।

पर इसकी कीमत उसे अपने कार्यकर्ता की जान गांवा कर चुकाना पड़ रहा है। और ये खुन की होली सेकुलर बुद्धिजीवी वर्ग चुपचाप देख रहा है।

क्या बंगाल में जनता स्वतंत्र नहीं है कि वो किसे वोट दे ? ये निर्णय बुद्धिजीवी वर्ग कैसे ले सकते है या थोप सकते है कि आम जनता पर कि वो किसे वोट दे। सिर्फ बीजेपी को वोट देने भर से बंगाल या कहीं की भी जनता के जीने का हक कैसे कोई छीन सकता है।

जिस पार्टी के लिये जनता जान देने के लिये तैयार हो उसका टिकना तय है। लेकिन उनका खून होते हुए देख कर किसी का भी चुप बैठे रहना गलत है।”

साभार- https://www.facebook.com/madhavi.shree.5 से

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