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अठ्ठर्गा गांव की शहीद महिलाएँ

हैदाराबद की निजामी रियासत में जहाँ तो मुसलमानों की जनसंख्या बहुल में होती थी, वहां तो हिन्दुओं पर जब चाहे और जैसे चाहे अत्याचार बड़ी सरलता से किये ही जा सकते थे| इस कारण वहां के हिन्दुओं को तो सिर तक नहीं उठाने दिया जाता था किन्तु जहाँ पर हिन्दू अधिकाँश में होते थे, वहां भी सरकारी बल के आधार पर हिन्दुओं पर खुले आम अत्याचार किये जाते थे| जिस व्यक्ति, जाति या समुदाय पर अत्याचार होते हैं, उस व्यक्ति, जाति या समुदाय के लोगों में वीरता के गुण स्वयमेव ही आने लगते हैं| इस प्रकार के लोग देश, धर्म और जाति की रक्षा के लिए सदा ही अपना बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं| यह ही कारण है कि मुस्लिम और तानाशाह निजाम की सत्ता में हैदराबाद की तहसील निलंगा, जो कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र था, में प्रत्येक हिन्दू परिवार का प्रत्येक बच्चा अपने में शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा प्रत्येक कन्या स्वयं में मां भवानी, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, अहिल्याबाई होलकर, की प्रतिमूर्ति दिखाई देती थी| इतना ही नहीं नन्हे नन्हे बालक-बालिकाओं में भी हकीकत राये, मुरली मनोहर जोशी, गोरा-बादल, अजित सिंह तथा जुझार सिंह की प्रतिमूर्ति भी दिखाई देने लगी थी| सब की एक ही इच्छा थी कि या तो वह सिर उंचा करके चलेंगे या फिर अपना बलिदान देंगे| इस से स्पष्ट होता है कि वहां के हिन्दू लोग मृत्यु को मात्र खेल ही समझते थे| अपने धर्म ग्रंथों के आधार पर वह जानते थे कि मृत्यु तो मात्र चोला बदलने के समान ही है| इस देह परिवर्तन का तो एक दिन आना निश्चित ही है| फिर क्यों न वीरों की मृत्यु प्राप्त की जावे?

निलंगा तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से अधिक होने के कारण रजाकार तथा परता कौन नामक मुसलमानों की दोनों संस्थाएं प्राय: हिन्दुओं के घरों को लूटना, उनकी महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ करना, कन्याओं को उठाकर ले जाना आदि घटनाओं को सम्पन्न करना अपना अधिकार समझते थे| इन भयंकर तथा वीभत्स घटनाओं के कारण इस क्षेत्र के हिन्दू लोगों में वीरता का रक्त संचार कर रहा था| क्या बालक, क्या वृद्ध , क्या महिला, क्या पुरुष बदले की अग्नि इन सब के हृदयों में सदा ही धधकती रहती थी| इस कारण यह सब सदा ही किसी अवसर की खोज में रहते थे| यह सब मुसलमानों की इस दुष्टता वाली प्रवृति का प्रतिकार लेने के लिए सदा ही तैयार रहते थे|

इस गाँव में कादिर खां नाम का एक अत्यंत दुष्ट प्रकृति का तथा धर्मांध मुसलमान निवास कराता था| वह प्रतिदिन महिलाओं का अपमान करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझता था| उन दिनों आज की भाँती घरों अथवा गलियों में पानी के नलों की व्यवस्था नहीं थी| इस कारण उन दिनों महिलाओं को पीने का पानी लेने कुओं अथवा नदी नालों पर जाना पड़ता था| यह धर्मांध गुंडा कादिर खां साधारणतया नदी के किनारे पर ही घूमता रहता था तथा अवसर लगते ही यहाँ कपडे धोने आई महिलाओं की इज्जत लूटना अपना अधिकार समझता था| निजाम की और से उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध कभी नहीं लगाया गया|

कादिर खां की इस खुले आम गुंडागर्दी के कारण यहाँ की महिलाएँ बेहद दु:खी तथा सदा भयभीत रहतीं थीं| अत: उससे बचने के लिए उन्होंने स्थानीय हिन्दु युवकों की सहायता से एक योजना बनाई| इस योजना के अनुसार वहां की महिलाओं ने स्थानीय युवकों को साथ लेकर एक दिन अवसर पाकर कादिर खां को यमलोक पहुंचा दिया| इस घटना से सब महिलायें अपने आप को गोरवान्वित अनुभव करने लगीं| इस घटना की पूर्ति में जिस महिला ने मुख्य भूमिका निभाई, उसके नाम को तो गुप्त रखा गया किन्तु इस घटना की पूर्ति के लिए जिन महिलाओं ने निर्भय हो कर भाग लिया, उनमें संगाई राधाबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है|

इससे यह ताथ्य सामने आता है कि राधाबाई एकमात्र एसी महिला थी, जिसने किसी प्रकार की, यहाँ तक कि अपने जीवन की भी चिंता किये बिना कादिर खां जैसे नीचों, घातकों, बलात्कारियों का अंत कर, देश, धर्म तथा जाति की रक्षा की| यद्यपि आज राधाबाई के जीवन के सम्बन्ध में कुछ भी परिचय उपलब्ध नहीं है तो भी इस प्रकार की स्वाभिमानी महिलाओं के सामने हम नात-मस्तक होते हैं|

डॉ. अशोक आर्य
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